शिल्पा, कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी, तभी उसके लिए एक फोन आता है, वह दौड़कर फोन की तरफ जाती है और फोन का नंबर देखकर, उसे ऐसे ही, बजने देती है। वह फोन को काटती भी नहीं है, तभी नित्या वहां आती है और उससे कहती है- इतनी देर से फोन बज रहा है, तुम अपना फोन उठाती क्यों नहीं हो ? किसका फोन है ?
किंतु शिल्पा उसकी बातों पर ध्यान नहीं देती, तैयार होकर, अपना सामान उठाती है और बाहर की तरफ निकल जाती है। पहले तो नित्या सोचती है, कि मैं ही फोन उठा लेती हूं, किंतु उसे लगता है यदि मैंने उसका फोन उठाया, तो कहीं ये नाराज न हो जाए। तब वह नंबर देखकर समझ जाती है, कि मधुलिका उसको फोन कर रही है। जब शिल्पा ने स्वयं ही फोन नहीं उठाया, और जानबूझकर उस फोन को यहीं छोड़ कर जा रही है तो अवश्य ही कुछ बात होगी। कुछ देर पश्चात फोन की घंटी अपने आप बंद हो जाती है। शिल्पा कॉलेज पहुंच जाती है और अपनी क्लास में व्यस्त हो जाती है। उसने जानना भी नहीं चाहा, आख़िर मधुलिका ने उसे फोन क्यों किया था ? उसे ,उससे क्या कहना था ? उसके मन में अंतरद्व्न्द चल रहा था। वह जानती है, कि इसमें मधुलिका की कोई गलती नहीं है किंतु न जाने क्यों ? अब उसे मधुलिका ही दुश्मन नजर आ रही है।
अपने क्लास खत्म करके, वह फिर से उसी पेड़ के नीचे आकर बैठ जाती है, आज वह कोई चित्रकारी नहीं कर रही है, बस यूं ही बैठे, रहने का मन है। तभी उसे दूर से, मधुलिका आई दिखलाई देती है, उसे देखकर वह उठकर चले जाना चाहती है, किंतु न जाने कैसे, बैठी रही,उसका कुछ भी करने का मन नहीं है। मधुलिका दूर से ही उससे कह रही थी - तुझे क्या हुआ है ? तूने मेरा फोन क्यों नहीं उठाया ? मैंने इतनी देर तक तुझे फोन किया था।
अच्छा, कब मुझे नहीं मालूम ! जरा अपना फोन देख ! कितनी मिस कॉल होंगीं ?
ओह ! आज मैं अपना फोन लाना ही भूल गई, शिल्पा ने बहाना बनाया। आज मैं जल्दी में घर से निकली थी, इसलिए फोन लाना भूल गई।
तू भी न... कैसी लड़की है ? आजकल लोग खाना भूल जाते हैं किन्तु फोन नहीं भूलते।
किंतु मैं ऐसे लोगों में से नहीं हूं, अच्छा तू बता ! तूने फोन क्यों किया था ?
गहरी स्वांस लेते हुए कहती है - अब क्या लाभ ?
फिर भी कुछ बात तो होगी।
तुझे इसीलिए फोन कर रही थी, कि तू अपनी स्कूटी से जाएगी तो मुझे भी साथ ले जाना।
वैसे न जाने क्यों, मधुलिका से शिल्पा का मन हट सा गया था,अब तक उसे दुःख हो रहा था , उसकी कोई सहेली उसके साथ नहीं है ,जब मधुलिका आई तो बहुत खुश थी, वह उसके बचपन की सहेली जो थी ? किंतु अब उससे मिलकर, उसे कुछ विशेष प्रसन्नता नहीं हुई और वह चाहती थी कि शीघ्र यहां से चली जाए। फिर भी अफसोस जताते हुए बोली -ओह !यह बात थी, तुझे तो पता ही है, सुबह के समय कितनी भाग -दौड रहती है, चित्रकला में हमारी ''प्रायोगिक परीक्षा '' भी थी इसलिए मुझे जल्दी आना पड़ा।
खैर कोई बात नहीं, मधुलिका लापरवाही से बोली -जब भगवान सहायता करना चाहता है तो कहीं न कहीं से सहायता मिल ही जाती है।
क्या मतलब ?
मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी, और मैं सड़क पर आकर ऑटो वाले की प्रतीक्षा में खड़ी थी , तभी वहां से कुमार को जाते हुए देखा , मैंने तो ध्यान भी नहीं दिया था , किंतु मुझे खड़े देखकर, वह मेरे करीब आया और बोला -यहां क्यों खड़ी हो ?
मैंने कहा -मुझे कॉलेज जाना है ऑटो की प्रतीक्षा कर रही हूं।
तब...... जिज्ञासा से शिल्पा ने पूछा।
तब क्या ? कुमार ने कहा- मैं भी तो कॉलेज ही जा रहा हूं, तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो,तुम मेरी मोटरसाइकिल पर बैठ सकती हो।
फिर तुमने क्या किया ?जिज्ञासा से शिल्पा ने पूछा।
क्या करती ? उसी के साथ कॉलिज आई हूं।
तुझे शर्म नहीं आई ,किसी अनजान लड़के के साथ , मोटरसाइकिल पर बैठते हुए ,
वो अनजान कहाँ है ?उस दिन उससे जान -पहचान तो हुई थी,मधुलिका अपनी ही धुन में बोले जा रही थी किन्तु उसने शिल्पा के चेहरे के भाव नहीं देखे जो तेजी से आ जा रहे थे।
बस इतनी सी जान- पहचान के कारण, तू उसकी मोटरसाइकिल पर बैठकर आ गई, मोहल्ले में किसी ने देख लिया तो या तुम्हारे घर से कोई देख लेता तो , मान लो ! तुम्हारी भाभी ही देख लेती तब क्या होता ? चार जगह तुम्हारी चर्चा करती। शिल्पा उसे घरवालों और मोहल्ले वालों के ड़र से, कुमार के करीब आने से रोकना चाहती थी और अपने को इतना नियंत्रित भी किए हुए थी ताकि मधुलिका को उस पर कोई शक न हो। तू ,कुमार को जानती ही कितना है ? कहीं और ले जाता तब क्या होता ?
उसकी बातों का असर मधुलिका पर हुआ. तब मधुलिका बोली - वह तेरा दोस्त है, इसीलिए मैंने सोचा, तू तो उसको अच्छे से जानती होगी, इसीलिए उसके साथ आ गई।
कॉलेज में ही, तो हमारा सीनियर है, इसमें क्या अच्छे से जानना? कभी -कभार यहां मुलाकात हो जाती है इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं उसकी मोटरसाइकिल पर घूमती फिरती हूं। कल को कुछ हो जाता तो तू मेरा नाम ले देती, कि मेरा दोस्त है। दोस्ती -वोस्ती कुछ नहीं है, बस एक छोटी सी जान -पहचान है, क्योंकि वह' कला प्रेमी' है , और कोई विशेष बात नहीं है। शब्दों को, मिठास में घोलते हुए ,वह उसे बता रही थी किन्तु अंदर ही अंदर उससे जलन महसूस कर रही थी। उसे कुमार पर भी क्रोध आ रहा था ,मुझे तो कभी मोटरसाइकिल पर बैठने के लिए नहीं कहा।
क्या सोच रही है ?
कुछ नहीं....... बस यही सोच रही हूँ ,तू थोड़ा जल्दी फोन कर देती तो हम दोनों साथ में ही कॉलिज आ जाते।
कहीं तुझे जलन तो नहीं हो रही ,मधुलिका हँसते हुए बोली।
मुझे क्यों जलन होने लगी ?वो तो मैं तेरे परिवार के विषय में सोचकर ऐसा कह रही थी ,हम यहां पढ़ने के लिए आते हैं ,ये लड़के ऐसे ही होते हैं ,हम किसी पर विश्वास नहीं कर सकते। मन ही मन दुआ कर रही थी ,कुमार अब यहाँ न आ जाए। तभी उसकी चौकन्नी नज़रों ने ,दूर से ही कुमार को आते देख लिया ,तब शिल्पा मधुलिका से बोली -आजा, चल चलते हैं ,मुझे आज एक विशेष चित्र बनाना है।
मैं अभी तो आई हूँ ,थोड़ी देर में चलेंगे।
अरे !यार !आज तू मेरी ही क्लास में चल, तुझे एक पेंटिंग दिखानी है ,उसे देखकर तुझे भी हंसी आएगी।
ऐसी कैसी पेंटिंग है ?उत्सुकता से मधुलिका ने पूछा।
जब यहाँ से चलेगी ,तभी तो पता चलेगा ,यहाँ जमकर बैठ गयी है, कहते हुए उसका हाथ पकड़कर खींचती है ताकि कुमार से ,मधुलिका को उससे दूर ले जा सके। तब मधुलिका भी उठती है और कहती है -तेरे लिए तो चलना ही पड़ेगा ,कहकर दोनों आगे बढ़ती हैं ,चोर नजरों से वह कुमार की तरफ देखती है ,कहीं वो यहाँ तो नहीं आ रहा है।