Mysterious nights [part 91]

ये' ज़िंदगी' ही एक समझौता है ,हम समझौते कब और कहाँ नहीं करते ?बालपन से लेकर तमाम उम्र समझौते  रहते हैं।  माना कि कुछ समझौते हम स्वेच्छा से करते हैं ,तो कुछ समझौते हमें ज़बरन करने पड़ जाते हैं।समझौता तो समझौता ही है।  ज़बरन किये गए समझौते ,हम स्वीकारना नहीं चाहते।  हो सकता है , कुछ समझौतों से कभी -कभी हमारी आजादी छीन जाती है ,हम परेशान रहते हैं। दफ़्तर या किसी भी ऐसे स्थान पर जहाँ पर हम कार्य करते हैं। जब हम अपने कार्यस्थल में कार्य करते हैं ,तब हमें  वहां भी ,कुछ न कुछ समझौते करने ही पड़ जाते हैं, वहां हमारी ऐसी क्या मजबूरी है ? जो हम वहां पर समझौता कर रहे हैं , मजबूरी ही तो है, हम कार्य करते हैं जिससे हमें आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। यदि हम कार्य नहीं करेंगे, तो जीविकोपार्जन के लिए, कुछ न कुछ तो अवश्य ही करना होगा और जहां भी जाएंगे वहां इसी तरह के समझौते करने पड़ ही जाते हैं।कुछ छोटे समझौते होते हैं ,तो कभी बड़े लाभ के लिए समझौता करना पड़ता है।  


अब तुम ही देख लो ! मान लो ! मैंने यह समझौता कर भी लिया, तो इसमें बुराई ही क्या थी ? जब सब कुछ मेरा ही होने वाला था। यह घर- परिवार ये लोग, सब मेरे ही तो अपने थे। मान लो ! मैं समझौता नहीं करती , तो अपने साथ -साथ दूसरों के जीवन में भी तकलीफ़ें बढ़तीं ,या फिर यहां कोई और आ जाती। जो उस रिश्ते से खुश होती, तो फिर वह, मैं ही क्यों नहीं हो सकती ? मैं तुम्हें यह कहानी सुना रही हूं, अब तो तुम बहुत कुछ समझ भी गई होगीं , इस विषय में ,अब तुम क्या सोचती हो ?

 मैं आपको पहले ही बता चुकी हूं,' यदि समझोेतों से ही जिंदगी जीनी है, तो यह जिंदगी व्यर्थ है, अपनी भी एक सोच होनी चाहिए , विचारों की आजादी होनी चाहिए।

 इस सबसे तुम्हें कौन मना कर रहा है ? तुम तेजस के लिए यहां आई थीं , हमने तुम्हारा ह्रदय से स्वागत किया। घर भी वही है, लोग भी वही है, बस तेजस नहीं है , अब तुम्हें थोड़ी सी, अपनी सोच को बदलना होगा। 

नहीं, अभी यह बात मेरे लिए अविश्वनीय है ,एक स्त्री के चार पति कैसे हो सकते हैं ? मेरी परवरिश ऐसा कुछ नहीं कहती ,ऐसा भी कुछ, हो सकता है। 

मान लो ! तुम यहां से चली जाती हो, तब क्या ? क्या तब भी तुम विवाह नहीं करोगी ? क्या तुम्हें ऐसा विश्वास है ?

वह तो समय बताएगा , कब किस परिस्थिति में इंसान क्या सोचने लगता है ? मैं किसी चीज का पहले से ही निर्णय  नहीं लेती हूँ। 

तभी तो कह रही हूं, जल्दबाजी मत करो ! बातों को समझो ! सुनो ! तब आगे बढ़ना। 

आप यह सब छोड़िए ! आपने यह तो बता ही दिया, कि कैसे आपके जीवन में, हरिराम जी आए, और गर्वित भी आया और जहां तक मुझे लगता है, ये कमरे भी इसीलिए बनाए गए होंगे। 

नहीं, पहले ये कमरे नहीं थे, इन कमरों के पीछे भी एक कहानी है। 

हंसते हुए शिखा बोली-आपकी कहानियाँ बहुत है ?

संपूर्ण जीवन ही एक कहानी है, उसके मध्य क्या-क्या घटित होता है ? जब तक किसी को पता नहीं चलता है  छुपा रहता है ,तो वही रहस्य बन जाता है। उसके पश्चात, यदि वह अपने जीवन के विषय में किसी को बताता है, या घटित घटनाओं को सुनाता है ,तो वह कहानी बन जाता है।

पहले की तरह ही, गर्वित के होने के पश्चात जैसे हरिराम जी का अध्याय पूर्ण हुआ और वो जगत सिंह जी की तरह ही मेरे जीवन से गायब हो चुके थे। बड़ी ही अजीब सी जिंदगी थी, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कौन अपना है और कौन अपना नहीं है ? तब फिर से ज्वाला ने मेरे जीवन में प्रवेश किया। पता नहीं,उनका प्रवेश शायद ,नियति ने पहले ही सोच रखा था। इन लोगों में क्या तालमेल था ? एक गायब होता था तो एक आ जाता था। 

उस दिन मैं कपड़े उतारने के लिए छत पर गयी थी ,मौसम कुछ ऐसा ही था ,सोच रही थी, बरसात हो सकती है ,कुंदन बाजार गया हुआ था ,पता नहीं, कैसे ? जैसे -जैसे मैं माँ बनती जा रही थी ,मेरा रूप -सौंदर्य दिन प्रतिदिन निखरता जा रहा था। मैं गहरी गुलाबी रंग की साड़ी में ,ऊपर छत पर गयी थी। अब  सुनयना देवी का मुझे पर इतना बंधन नहीं रह गया था ,वो समझ गयीं थीं कि मैं धीरे -धीरे इस घर -परिवार में अपने को ढाल रही हूँ। बलवंत सिंह जो पहलवान हुआ करते थे ,अक्सर बाहर ही रहते थे ,अभी गर्वित भी छोटा था। हवेली की छत से, मैंने जीप से किसी को आते देखा ,मैंने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया क्योकि यह तो रोज का ही था, कोई न कोई आता- जाता रहता ही था।

 अचानक ही तेज बरसात होने लगी ,पहले तो मैं उस बरसात से बचने के लिए भागती हूँ फिर किन्तु बरसात की  कुछ फुहारों ने ही, मेरा मन मोह लिया और मैं वापस आकर उस बूँदों को महसूस करने लगीं ,जो धीरे -धीरे मेरे रोम -रोम को पुलकित कर रही थीं। 

प्रकृति ऐसी ही है ,जो इंसान उससे जुड़ जाये,अपने सभी ग़म -परेशानी भूल जाता है । मैंने छत से आस -पास देखा ,हर एक पत्ता धूल रहा था ,जैसे किसी के ह्रदय की गंदगी को साफ कर एकदम स्वच्छ और निर्मल कर दे इसी प्रकार प्रकृति को धोकर ,इस बरसात ने सुंदर और स्वच्छ बना दिया था। सब कुछ धुला हुआ और स्पष्ट नजर आ रहा था।वो हरियाली आँखों को ठंडक पहुंचा रही थी। उस समय मैं भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी।अपने चेहरे पर गिरती बूंदों को महसूस करने के लिए चेहरा उठाये ,आँख बंद किये बैठी हुई थी ,तभी मुझे महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरे गीले अधरों  को छुआ ,मैंने झट से अपनी आँखें खोल दीं ,मेरे सामने ज्वाला खड़े मुस्कुरा रहे थे। आज तो भगवान से कुछ और भी मांगती तो मिल जाता ,तुम यहाँ कैसे ?मैं सिर्फ ज्वाला को ही तुम कहकर बुलाती थी बाकि मेरे लिए सभी आप तक ही सीमित रहे।

मैं घर पर आया था तुम्हें घर में न पाकर थोड़ा विचलित हो गया, इधर-उधर ढूंढा और छत पर आ गया। 

वैसे तो मेरा ध्यान भी नहीं रखते हो,मुझसे पूछते भी नहीं हो कैसी हूँ ? किंतु मुझ पर नजर अवश्य रखते हो , जब इतना ही ख्याल है, तो...... कहते हुए दमयंती रुक गई। 

मैं जानता भी हूं और समझता भी बहुत कुछ हूं , पता नहीं फिर भी मैं, अपने को विवश क्यों पाता हूं। 

दमयंती मन ही मन सोच रही थी, यह विवशता , सुनैना देवी के तंत्र के कारण ही है किंतु यह बात मैं किसी से कह भी नहीं सकती थी। पता नहीं, कैसा' तंत्र 'है ? उसके विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं थी बता देने से अनिष्ट की आशंका थी, इसीलिए मैं जानबूझकर मौन रही।

क्या सोच रही हो ?

 कुछ नहीं,

कुछ तो ऐसा है ,जो तुम्हारे मन को कचोट रहा है। 

सोच रही हूँ ,अभी तो तुम्हारे एक भाई अभी और हैं। 

   

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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