सुनयना देवी ,किसी तांत्रिक बाबा की शरण में गयीं थीं ,उस दिन मुझे उनके बेटों का आज्ञाकारी होने का कारण पता चला था। मैं उस झोपडी के बाहर खड़ी ,बाबा और अपनी सास सुनयना देवी का वार्तालाप चोरी -छुपे सुन रही थी। तब उन्होंने अचानक उन्हें सावधान रहने के लिए कहा।
उन्होंने किससे सावधान रहने के लिए कहा ,शिखा ने प्रश्न किया।
उस समय तो मैं भी, नहीं समझ पाई थी,वे इस तरह उन्हें सावधान रहने के लिए क्यों कर रहे हैं ? शायद , वे बाहर की तरफ देख रहे थे। उन्हें बाहर देखते हुए देखकर, सुनयना देवी ने पूछा - क्या कोई बाहर है ?
जो भी होगा, अपने आप ही अंदर आ जाएगा,उनके शब्दों में अटल विश्वास था।
उन्होंने न जाने, ऐसा क्या मंत्र पढ़ा ?मैं अपने आपको रोक नहीं पा रही थी ,मुझे डर था यदि मेरी सास ने मुझे इस स्थान पर इस तरह देख लिया तो नाराज़ होंगी ,और यदि उन्हें पता चल गया ,मैंने उनका पीछा किया था तो न जाने घर में क्या कोहराम मचे ? न चाहते हुए भी ,मैंने उस झोपड़ी के अंदर प्रवेश किया। मुझे देखकर सुनयना देवी आश्चर्यचकित रह गईं और उन्होंने बाबा से पूछा - ये यहाँ कैसे ? वे इसे बाबा का ही, कोई चमत्कार समझ रही थीं।
तुम ,यहां ! मैंने एक क्षण बाबा के चेहरे को देखा , उनकी आंखें लाल थीं , वो कोई पहुंचे हुए 'तांत्रिक' थे, लंबी-लंबी जटाएं थीं , चेहरे पर भभूत थी ,मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे , मैं घबरा गयी थी कि सुनयना देवी को अपने आने का क्या कारण बतलाऊँगी ?इससे पहले की सुनयना देवी कोई सवाल करती और मैं जवाब देती, वो बाबा बोले - जय भोले !इसके मस्तक पर राजयोग है , राज करेगी, पांच पुत्रों की मां बनेगी।
तब सुनयना देवी को लगा, चलो !अच्छा ही हुआ, जो यह यहां आ गई , कम से कम इसे बाबा जी से आशीर्वाद तो मिल गया हालांकि उन्हें मुझे वहां देखकर आश्चर्य हो रहा था ,वो अभी तक ये नहीं समझ पाईं थीं कि मैं वहां अपनी इच्छा से गयी थी या फिर बाबा के चमत्कार से वहां पहुंची। बाबा से आशीर्वाद मिल जाने पर मन ही मन मैं ,प्रसन्न भी हो गईं। हमने बाबा से आशीर्वाद लिया, और बाहर आने लगे तभी बाबा दोबारा से बोले -'एक ही नारी राज करेगी।' यह नियम टूटना नहीं चाहिए, ''जिस दिन चारों पुत्रों की एक नारी नहीं होगी'', उस हवेली का अंत समय समझो ! तब वो मेरी तरफ देखते हुए बोले -तुम अपने पुत्रों के लिए भी, सुंदर बहू लाना। उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी, जिसका भाव में समझ नहीं सकी।
जब हम लोग घर वापस आ रहे थे, तब मैंने अपनी सास से पूछा था- यह कौन सा स्थान है और हम कहां पर हैं ? ऐसा गुप्त रास्ता कब और किसने बनवाया था ?
तुम क्या इस रास्ते से आई हो ?सुनयना देवी ने प्रश्न किया ,तुम्हें इस द्वार का कैसे पता चला ?
मुझे नहीं पता ,मैं कहाँ से और कैसे आई ?जब मुझे होश आया तो मैं उस झोंपड़ी में आप दोनों के सामने थी।
अवश्य ही, ये बाबा का ही कोई चमत्कार है ,कहते हुए ,उन्होंने उनको ध्यान में रखकर श्रद्धा से हाथ जोड़ दिए। तब उन्होंने बताया - यह तो मैं नहीं जानती, यह गुप्त रास्ता कब और किसने बनवाया था? यह तो बहुत पहले हवेली में बना हुआ था, शायद ठाकुर साहब के पुरखों ने ही बनवाया होगा। यह गुप्त रास्ता, अपने गांव को छोड़कर, दूसरे गांव में निकलता है क्योंकि हमारा गांव तो छोटा सा ही है, और ठाकुर साहब नहीं चाहते कि इस गांव में, हमारा आना जाना हो। इसीलिए इस अनजान गांव में चुपचाप आकर, अपनी कुछ समस्याओं का हल निकाल लेती हूं और किसी को कुछ पता भी नहीं चलता। शायद दुश्मनों से बचने के लिए, इस रास्ते को बनवाया गया होगा किंतु अब यह हमारे काम आ रहा है।
क्या सच में, यहां पर कोई ऐसा गुप्त मार्ग है ? उत्साहित होते हुए शिखा ने पूछा। आश्चर्य होता है, कि आज के समय में भी ऐसी चीजें होती हैं।
क्यों नहीं होंगी , लोग बदल गए हैं, लेकिन चीजें तो वही है महलों के मार्ग आज भी वहीं होंगे, किंतु जिनका पता चल गया है उनको बंद करवा दिया गया है और अब महलों में कोई रहता ही नहीं, और यहां हवेली में हम लोग रहते हैं। इसलिए इसके विषय में किसी को मालूम ही नहीं होता बातें करते-करते वो पेड़ों के उस झुरमुट के करीब आ गई , जहां पर वह छोटा सा द्वार बना हुआ था। बाहर से कोई देखें तो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि यहां पर एक सुरंग का द्वार बना हुआ है। दोनों चुपचाप उन झुरमुट से होती हुई, उस सुरंग के मार्ग में पहुंच गईं।
तब दमयंती ने उनसे पूछा-ऐसे मार्गों में तो अक्सर, मशालें जलती थीं , यहां रोशनी का प्रबंध कहां से किया गया है ? अचानक ही खूब अंधेरा था और फिर रोशनी हो गई।
हां यह ठाकुर साहब ने, हमारी सुविधा को देखते हुए इसमें रोशनी का प्रबंध करवाया था कि जैसे ही द्वार बंद होगा रोशनी अपने आप आ जाएगी।
यह तो बहुत ही अद्भुत है। आज के समय में ऐसा कम ही देखने को मिलता है किन्तु सुनयना जी मन ही मन परेशान थीं, वो सोच रहीं थीं -उन बाबा ने ,मुझे सतर्क रहने के लिए क्यों कहा था ? कुछ देर पहले तो दमयंती कह रही थी -वो बाबा के चमत्कार से ही वहां पहुंची ,उसे कुछ भी स्मरण नहीं किन्तु अब रौशनी के विषय में जानना चाहती है। तब क्या ये झूठ बोल रही थी ?क्या ये सच में ही ,मेरा पीछा कर रही थी या फिर बाबा का चमत्कार था। सही बात क्या है ? वे अपने विचारों के ताने -बाने में उलझती चली गयीं। उन्हें उलझन में देख, दमयंती ने पूछा - क्या बात है ?आप कुछ परेशान लग रहीं हैं।
नहीं, ऐसा कुछ नहीं है और हाँ ये मार्ग हम दोनों [ठाकुर साहब और सुनयना देवी ]के सिवा कोई नहीं जानता और अब तुम जानती हो यहाँ तक कि इसके विषय में हमारे बेटे भी नहीं जानते हैं।
ऐसा क्यों ?
हमें इसकी कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई ,कि उन्हें बताया जाये ,अब हम उस दीवार के करीब थे ,जिससे हम उससे पार हवेली में प्रवेश करते ,मैं अपनी सास को ही देख रही थी और ऐसा कोई बटन ,मूर्ति ढूँढ रही थी,किन्तु वहां कुछ भी ऐसा नहीं था। तब उन्होंने एक विशेष स्थान को अपने हाथों से दबाया और धीरे -धीरे अपने आप ही मार्ग बनता चला गया और हम अंदर आ गए।
अब आप ये बताइये !क्या वो बाबा सच्चे थे ? उनके आशीर्वाद का क्या परिणाम रहा ?शिखा को अभी भी उन बाबा पर कोई विश्वास नही था।
इसका परिणाम तो तुम्हारे सामने ही है ,गर्वित के पश्चात गौरव हुआ जो उनके आर्शीवाद का ही फल था।
वो उनके आशीर्वाद का परिणाम नहीं, आपके समझौते का परिणाम था ,आखिर आपने उस जीवन से समझौता कर ही लिया था।