दमयंती जी, शिखा को बताती हैं - कि वो हवेली के एक गुप्त द्वार से, एक ऐसे स्थान पर जाकर, खड़ी हो गई थीं , जहां मैं, किसी को नहीं जानती थी। वह अनजान जगह क्या थी ? मैं यह जानने के लिये इधर -उधर देख रही थी,और जानने का प्रयास ही कर रही थी,कि यह कौन सी जगह है ? तब मैंने वहां घूमते लोगों को अपनी तरफ घूरते हुए देखा,जैसे मैं कोई इंसान नहीं ,कोई विचित्र प्राणी हूँ। तब मुझे कुछ अजीब सा लगा, मन ही मन मैंने अंदाज़ा लगाया,ये अवश्य ही, इनके गांव का ही कोई हिस्सा होगा किंतु उस समय मैं, अपनी सास सुनयना जी को ढूंढ रही थी, किंतु वहाँ आसपास या दूर तक, कहीं भी ,वे मुझे दिखलाई नहीं दे रही थीं। तभी मुझे कुछ दूर से, मंदिर की घंटियों का स्वर सुनाई दिया।
दमयंती जी ने अंदाजा लगाया ,अवश्य ही वो मंदिर में गई होगीं, किसी बाबा का जिक्र जो कर रहीं थीं हो सकता है, वो बाबा मंदिर में ही रहते हों । दमयंती अपने कदम उस दिशा की ओर मोड़ देती है, जहां से वह घंटी की ध्वनि सुनाई दे रही थी।
कुछ दूर चलने के पश्चात, वह एक भव्य मंदिर के सामने पहुंच जाती है, उसने आसपास देखा, और उसे आश्चर्य होता है ,इतना बड़ा और सुंदर मंदिर उस गांव में है और मैंने कभी देखा ही नहीं ,हो सकता है ,इस गांव में और भी दर्शनीय स्थल हों ,किन्तु यह गांव ऐसा लगता तो नहीं है। तब सीढ़ियों पर अपनी चप्पल उतार कर मैंने मंदिर के अंदर प्रवेश किया। मंदिर बहुत ही सुंदर था, मन ही मन मैं सोच रही थी, मैं इतने दिनों से यहां रह रही थी किंतु आज तक, यह मंदिर नहीं देखा।
अब मैं ज्वाला से हटकर ,बाहरी दुनिया को भी देखने लगी थी , उस नई जिंदगी में, धीरे-धीरे रमने का प्रयास कर रही थी, और अपने आपको उसी के अनुसार ढालने भी लगी थी। तब मैंने महसूस किया, कि'' ज्वाला सिंह'' के प्रेम के अतिरिक्त भी एक दुनिया है, जिससे अब तक वह अनजान थी। तुम ये कह सकती हो ,मेरा जो दायरा' ज्वाला के प्रेम 'तक ही सिमटकर रह गया था ,अब वो परिष्कृत हो रहा था क्योंकि मन में एक शांति सी आ गयी थी। मन विचलित नहीं था क्योकिं मुझे लगने लगा था ,'ज्वाला 'मुझसे दूर नहीं है ,वो कल भी मेरा था, आज भी मेरा ही है।
मंदिर की परिक्रमा करते हुए मेरी दृष्टि इधर -उधर किसी को ख़ोज रही थी किंतु मुझे कहीं भी कोई बाबा नजर नहीं आये और न ही मुझे सुनयना देवी दिखलाइ दीं। मैं निराश हो ,मंदिर के प्रांगण के एक कोने में रखी बैंच पर बैठ गयी। वहां मैं किसी को जानती भी नहीं थी और न ही किसी को जानने में मेरी कोई रूचि थी। मेरा उद्देश्य उन बाबा को ढूँढना था ,शायद मैं भी कुछ जानना चाहती थी। सुनयना देवी के आने का कारण ,और उन बाबा को भी परखना चाहती थी। मैं वापस लोेट ही रही थी ,तभी मेरी दृष्टि मंदिर से कुछ दूरी पर, पेड़ों के झुरमुटों पर गयी, वो शायद किसी का बाग़ था ,और वहां एक झोपड़ी भी नजर आ रही थी। अनायास ही मेरे क़दम उस ओर बढ़ चले। थोड़ा नजदीक गयी ,तब मैंने सोचा -शायद, यहां कोई बाबा रहते होंगे, मैं उसी दिशा की ओर मुड़ चली। मन में तो यही था, कि शायद यहां कोई' महापुरुष या संत' रहते होंगे।
जब मैं उस झोपड़ी के नजदीक गई, तो कुछ अस्पष्ट से स्वर सुनाई दे रहे थे ,अंदाजा लगाना मुश्किल था कि इस झोंपड़ी के अंदर कौन हो सकता है और कितने आदमी हो सकते हैं ? मैंने साहस किया और करीब गयी ,वहां द्वार पर ही मैंने अपनी सास की चप्पलें देखीं ,यह देखकर मैंने राहत की स्वांस ली ,मैं जानना चाहती थी ,ये किस बाबा से मिलने आईं हैं ?
अब तक मैंने झोपड़ी के अंदर,नहीं देखा था किंतु वो जो इंसान था ,किसी से कह रहे थे -सुनयना ! यह तुम ठीक कर रही हो ,' हवेली एक नारी के दम पर ही टिकी रहेगी।'मुझे आश्चर्य हो रहा था ,जो शब्द मेरे लिए अब तक अस्पष्ट थे ,अब वो स्पष्ट सुनाई दे रहे थे ,जैसे वो इंसान मेरे ही सामने हो ,अंदर से स्वर सुनाई दिया ऐसे बहुत से उदाहरण हैं और जगह हैं, जहां पर एक नारी के कई पति होते हैं, उसे बुरा नहीं लगना चाहिए। यदि वह, इस परिवार में घुल- मिल जाती है और इस परिवार के सभी नियमों को मानती है तो इस परिवार की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। जहां तक मुझे लगता है, अबकी बार भी तुम्हें पौत्र की प्राप्ति होगी , तुम दोबारा से एक पोते की दादी बनोगी। इस बात की जानकारी तो मुझे हो गयी थी अंदर कोई बाबा और मेरी सास ही हैं।
बाबा !कभी-कभी मुझे लगता है , यदि इस तंत्र ने ,बच्चों पर असर नहीं किया तो क्या होगा ? और बच्चे अपनी मनमर्जी करने लगे, तब क्या होगा ?
तुम निश्चिंत रहो ! इस तंत्र का तोड़ इतनी आसानी से नहीं मिलेगा। बाहर तुम्हारे बच्चे कुछ भी करें ! किंतु घर के अंदर प्रवेश करते ही इस तंत्र के कारण, तुम्हारे आज्ञाकारी पुत्र बनकर रहेंगे।
बाबा ! क्या कोई ऐसा 'तंत्र' नहीं है, जिससे मेरी पुत्रवधू भी इस सबका विरोध न कर सके।
नहीं, उसके लिए तंत्र का प्रयोग आवश्यक नहीं है, उसे जो कुछ भी करना होगा स्वेच्छा से ही करना होगा। हो सकता है उसे यह बात अनुचित लगे, किंतु जब तुम्हें समझने लगेगी और इस परिवार को समझने लगेगी , तो इस तंत्र के बिना ही, तुम्हारी आज्ञाकारी बहू बन जाएगी।
उस दिन मुझे पता चला था, कि ठाकुर साहब, के जितने भी लड़के हैं, वो सब चुपचाप, घर में सुनयना देवी के इशारों पर ही क्यों चल रहे थे ? इस हवेली में उनके इशारों पर, और इस जगह पर वो कुछ भी कर सकते थे यदि मैं विरोध करती, तो भी कोई लाभ नहीं था क्योंकि उन लोगों को तो जैसे मुझसे कोई मतलब ही नहीं था, वो तो सुनयना देवी के लाये ,'तंत्र के कारण',मुझ पर बलात अधिकार जतला सकते थे। तभी तो, ज्वाला भी सब जानते हुए, विरोध करना चाह कर भी, विरोध नहीं कर पा रहा था और न ही उनमें, कोई ईर्ष्या या भेदभाव की भावना थी। देखने से तो लगता था, सभी स्वेच्छा से यह कार्य कर रहे हैं , लगता ही नहीं था कि वो किसी के हाथ की' कठपुतली' बने हुए हैं। आज मैंने सुनयना देवी का एक नया रूप देखा था लेकिन यह मेरे लिए अच्छा भी था , उनमें आपस में कोई झगड़ा नहीं, कोई बैर -भाव नहीं, सब अच्छे तरीके से चल रहा था वरना ऐसे हालातों में तो भाई -भाई का मुँह नहीं देखना चाहता है।
उन बाबा को शायद, किसी के बाहर होने का एहसास हुआ या वे मुझे अपना चमत्कार दिखलाना चाहते थे। मैं बाहर खड़ी उनकी बातें सुन रही थी। बाहर तो अकेली मैं ही खड़ी हुई थी और कोई नहीं था। तभी वो अचानक से तेज़ स्वर में बोले -'सुनयना !सतर्क रहना , उस हवेली में एक ही नारी का राज होगा।'