'ज़िंदगी' जीना इतना आसान भी नहीं होता ,मेरी बच्ची !एकदम से भावुक होकर ,गहरी स्वांस लेते हुए दमयंती जी शिखा से बोलीं- जैसे, उन्होंने अपने जीवन में बहुत अनुभव किये हैं। कई बार बड़े -बड़े समझौते करने पड़ जाते हैं। जैसे मुझे भी ,एक समझौता अपनी ज़िंदगी के साथ करना पड़ गया ।
वो समझौता ! आपकी मजबूरी नहीं थी ,जहाँ तक मुझे लगता है -' आपकी जरूरत बन गया था ,यदि आप समझौता नहीं करतीं तो कहाँ जातीं ?अपने माता -पिता के घर...... ,जो पहले ही आपकी सासू माँ के दिए, लालच में आ चुके थे। यदि आप जातीं तो वो आपको समझाते ही ,वापस भेजने का प्रयास ही करते।आपको इन रिश्तों की अच्छाई -बुराई समझाते और तब तक समझाते रहते ,जब तक आप वापस जाने के लिए तैयार नहीं हो जातीं। मेरी तो ये बात समझ में ही नहीं आ रही ,जब आपके पापा स्वयं एक अच्छे बड़े व्यापारी थे ,आपको पढ़ने के लिए विदेश भेजा ,तब वो क्यों इस तरह लालच में आये ?
वो एक दर्द भरी कहानी है ,मेरे पापा का व्यापार तो बहुत अच्छा चल रहा था इसीलिए मुझे बाहर पढ़ने के लिए भेजा था किन्तु उनके मैनेजर ने न जाने, क्या घपला किया था ?उनका व्यापार डूबने लगा ,पापा पर काफी ऋण भी हो गया था , ये बात उन्होंने हमें यानि मेरी मम्मी और मुझे नहीं बताई थी। ऐसे समय में ठाकुरों के यहाँ से मेरे लिए रिश्ता आना ,उनके लिए तो जैसे -'डूबते को तिनके का सहारा ''हो गया था क्योंकि पापा की बहुत सारी जमीन ठाकुर साहब ने बिकवाने का वायदा भी किया और जब ठाकुर साहब ने पूछा -'इतनी अच्छी,मौक़े की जमीन आप क्यों बेच रहे हैं ?
तब ठाकुर साहब ! को पापा ने अपनी परेशानी बताई ,ज्यादा कुछ तो मालूम नहीं क्योंकि उन दिनों मैं अपनी ही परेशानियों में उलझकर रह गयी थी। तब शायद उन्होंने पापा की उस मैनेजर से पैसा निकलवाने में और शायद ,आर्थिक रूप से भी सहायता की हो।
इसका अर्थ तो यही हुआ ,आपके पापा ने उनके एहसानों तले दबकर ,उनके बेटे से आपका विवाह किया।
नहीं, ऐसा नहीं है ,क्योंकि वे मेरे लिए रिश्ता ये सभी बातें जानने से पहले ही लेकर आये थे ,उन्हीं दिनों मेरी मुलाक़ात ज्वाला जी से भी हो गयी थी और वो मुझे पसंद आ गए थे। इसमें किसी भी प्रकार की विवशता का तो प्रश्न ही नहीं उठता। वो तो तब उन्होंने एक अच्छे समधी की तरह पापा का साथ निभाया था । वो तो जब मैं वापस घर गयी तब सुनयना देवी जी ने ,उन्हें जो कुछ भी समझाया ,उसके आधार पर उन्हें मेरा यहाँ आना उचित लगा। वैसे हमारी कोठी ,जमीनें जो कुछ भी पापा की सम्पत्ति होगी ,उनके बाद तो सब मुझे ही मिलना था।मेरे पापा अथवा मम्मी को इन लोगों की धन -सम्पत्ति से क्या लेना देना ?हाँ, एक लालच हो सकता है ,कि यहां भी सब कुछ हमारी बेटी और उसके बच्चों का होगा।
आप आत्मसम्मान के साथ, कहीं दूर जाकर नौकरी कर सकतीं थीं ,और अपने सीमित साधनों द्वारा अपना और अपने बेटे का जीवन यापन कर सकती थीं।
तुम क्या सोचती हो ?मैंने ऐसा सोचा नहीं था। बहुत सोचा था किन्तु जब परिस्थितियां बिगड़ती हैं ,तुम्हारे साथ कोई नहीं होता ,तब उन परिस्थितियों का लाभ उठाने वाले बहुत मिल जाते हैं। यहाँ मैं एक प्रतिष्ठित परिवार की बहु थी ,समाज में मेरा सम्मान था। सभी सुविधाएँ मुझे मिल रहीं थीं किन्तु हवेली से बाहर आते ही ,मेरी क्या कीमत रह जाती ?उसी तरह हो जाती ,जैसे इन पैसे वालों के यहाँ हर रात्रि कोई न कोई नई लड़की आती है। तुम क्या समझती हो ?वे लड़कियां कौन हैं ? ग़रीब तो नहीं होंगी क्योकिं ऐसी लड़कियों को तो ये अपने होटल में घुसने भी नहीं देंगे। हाँ ,वे विवश ,मजबूर अवश्य हो सकती हैं ,अपने इस जीवन को चलाने के लिए कुछ समझौते करने पड़ जाते हैं। वे कुछ रातों की या फिर एक रात्रि की रानी बन एक छोटी सी याद बनकर निकल जाती हैं। उस होटल की रात्रि कितनी रह्स्य्मयी होती हैं ? क्या तुम समझ पाओगी ?हर रात्रि उन लड़कियों की रातें न जाने, उन्हें किस मोड़ पर ले जाती हैं ?किसी को अपना बॉस खुश करना होता है ताकि वो उन्नति कर सके ,कोई अपने ही नहीं परिवार के पेट की आग बुझाने के लिए ,अपना तन बेचने के लिए अपने को विवश पाती है। हर किसी के चेहरे पर एक झूठी मुस्कान होती है ,वो नहीं जानती ,इस रात्रि के पश्चात अगले दिन का सूरज उनके जीवन में कैसी रौशनी बिखेरने वाला है ?
हम महिलाओं को अच्छा -बुरा सब सोचना पड़ता है ,मुझे इस जीवन से समझौता तो करना पड़ा किन्तु मैं ये भी तो देख रही थी -आनेवाले समय में मैं, स्वयं इस घर की मालकिन बनने वाली हूँ। जो कुछ भी मेरी सास संभाल रहीं हैं ,वो मुझे संभालना होगा और मेरे बाद तुम संभालोगी कहते हुए दमयंती ने शिखा की तरफ देखा किन्तु शिखा चुपचाप उन कमरों को देख रही थी जिनमें दमयंती जी ने, अपने समझौतों की न जाने कितनी रातें बारी -बारी से इन कमरों में बिताई हैं ?अब यही उनकी ज़िंदगी बन गया था और उसी ज़िंदगी को उन्होंने अपना लिया था ,उसी में अब उन्हें ख़ुशी नजर आ रही थी। दमयंती ने शिखा की तरफ देखा और पूछा -क्या सोच रही हो ?
क्या जीवन में समझौते आवश्यक हैं ?''जिस जीवन को समझौतों से जीना पड़े ,वह जीवन व्यर्थ है'' उसमें अपनी ख़ुशी कहाँ है ?
''ख़ुशी तो अपने मन की होती है ,जिस चीज में तुम अपना मन रमा लोगी वहीँ ख़ुशी नजर आएगी ,बस एक बार मन को समझाना पड़ता है ,मन समझ गया ,तो सब अच्छा ही अच्छा ही होता है।''
मेरी समझ में नहीं आ रहा ,जिस कार्य में हमारी रूचि ही नहीं है ,तब हम इस मन को कैसे समझा सकते हैं ?मान लो !एक बार समझा भी लिया ,उसके बाद क्या ?मन समय के साथ -साथ विद्रोही होता चला जायेगा और एक दिन उसे एहसास हो ही जाएगा ,अब तक तू जिस राह पर चल रहा था वो आरम्भ से ही गलत थी। ख़ैर ये सब छोड़िये !क्या आपने अपनी सास के विषय में पता लगाया कि वे कहाँ जाती थीं और क्यों जाती थीं ?क्या वो उसी बाबा के पास मिलने जाती थीं ,जाती भी थीं ,तो इसके पीछे उनका उद्देश्य क्या था ?
शिखा की बातें सुनकर ,दमयंती का चेहरा फीका पड़ गया था ,उन्हें लग तरह था ,जिस वजह से वे अपनी कहानी शिखा को सुना रहीं थीं ,वो बात शायद सरलता से नहीं हो पायेगी , उन्हें लग रहा था ,शिखा की अपने एक अलग सोच है ,वो इस तरह समझौता नहीं करेगी। चलो !अभी देखते हैं ,क्या होता है ?' समय को बदलने में समय नहीं लगता।' आइये !चलिए !हम भी दमयंती जी के साथ आगे बढ़ते हैं।