नित्या को भी, आज शिल्पा पर क्रोध आ गया था। तुम जो चाहती हो, वही करती हो, न ही किसी की सुनती हो,न ही समझना चाहती हो। अब तक अपने उद्देश्य के लिए मेरा इस्तेमाल करती आ रही हो। अपनी इच्छानुसार सब करना चाहती हो। अब तक तो मैं ,तुम्हारा साथ दे रही थी किंतु अब मैं इस झूठ में,इससे ज्यादा तुम्हारा साथ नहीं दे सकती, मेरी भी अपनी ज़िंदगी है ,अपने स्वार्थ के लिए तुमने मुझे, अपनी 'कठपुतली' बना दिया है । माना कि कुछ लोगों ने तुम्हारा दिल दुखाया है ,किन्तु अब तुम क्या कर रही हो ?परत दर परत तुम्हारा झूठ बढ़ता जा रहा है।
आज शिल्पा ने, जब नित्या की बातें सुनी तो उसे दुःख हुआ ,किन्तु उस पर जैसे नित्या की किसी भी बात का कोई असर नहीं हुआ ,हाँ ,ये बातें सुनकर शिल्पा कुछ उदास अवश्य हो गई, उसे लगता है- जब भी, वह कुमार के करीब जाना चाहती है, तभी कुछ न कुछ ऐसी बातें हो जाती हैं , ऐसा लगता है,वह उससे, बहुत दूर चली गई है। मन अनंत दुख की गहराइयों में, समाता चला जाता है, वह फिर से एक चित्र बनाने लगती है। जिस चित्र में दो चेहरे हैं, एक उसकी अंतरात्मा का चेहरा है, तो दूसरा उसका बाहरी चेहरा है। जो खुश रहने का प्रयास करता है किन्तु सुंदर नहीं है, उसकी अंतरात्मा सुंदर है, तब भी वह विषाद से भरी है।वो अकेलेपन से घिरी हुई है, क्या करें ? कुछ समझ नहीं आता।कुमार ही, उसे अपने जीने की एक उम्मीद लगता है किन्तु उसे दूर से देखकर ही, वो अपने को बहला रही है।
शिल्पा को उदास देखकर, नित्या को उस पर दया आई और उसका क्रोध थोड़ा शांत हुआ ,हुआ नहीं ,शिल्पा के लिए उसने ऐसा किया ,नित्या में यही तो खूबी है ,विपरीत परिस्थिति में भी ,वह शीघ्र ही अपने को संभाल लेती है। तब नित्या, उससे कहती है - अब तुम ,ऐसा करो ! तुम इस प्रतियोगिता में शिल्पा बनकर ही, हिस्सा ले लो ! तुम्हें अब अपना नाम छुपाना ही नहीं पड़ेगा, क्योंकि कुमार तो पहले से ही जानता है कि तुम एक अच्छी कलाकार हो, चित्रकारी करती रहती हो और मैं, उससे प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से मना कर देती हूं,वह भी परछाइयों के पीछे कब तक भागता रहेगा ? और धीरे -धीरे' तमन्ना ' को लोग भूल जायेंगे ,शिल्पा को पहचानने लगेंगे।
अपनी जगह बात तो, तुम्हारी सही है किंतु नाम बदलने का कारण तो यही था। मेरा यह रंग- रूप ! जिसके कारण मैंने बहुत कुछ सुना है।
क्या शिल्पा, अब चित्रकारी नहीं कर रही है, क्या लोग, उसका अपमान कर रहे हैं ? कुछ लोग ऐसे होंगे जो तुम्हारी जिंदगी में आए और तुम्हें दर्द देकर चले गए। हो सकता है, अब शिल्पा की जिंदगी में अच्छे लोग आएं , वे उसकी कला का सम्मान करेंगे और उससे प्यार भी करेंगे।
तुम्हारा यह मानना है, किन्तु मुझे लोगों का नहीं, कुमार का प्यार पाना है। क्या तुम जानती हो ? मधुलिका जो मेरे साथ स्कूल में पढ़ती थी, वह अब मेरे कॉलेज में ही आ गई है, उसे पढ़ाई भी कोई रुचि नहीं है किंतु उसे मजबूरी में पढ़ने के लिए आना पडा।
यह तो अच्छी बात है ,'एक से भले दो !
किंतु जो कार्य मैं , इतने महीनों में नहीं कर सकी वह कार्य मधुलिका ने आते ही कर दिया।
उसने ऐसा कौन सा महान कार्य कर दिया ?
वह उसकी मोटरसाइकिल पर बैठकर कॉलेज जाती है, मैं तो, आज तक नहीं गई ,विवशता से शिल्पा बोली।
उससे क्या फर्क पड़ता है ? क्या मोटरसाइकिल पर बैठने से, साथ में कॉलेज जाने से , वह उसे चाहने लगेगा ?तुम अपनी सोच को परिष्कृत करो !
ऐसा तुम सोचती और समझती हो, मधुलिका नहीं, क्योंकि उसे तो एक अच्छे लड़के की तलाश है, जिससे वह विवाह करके, बिना दहेज के ही, अपने घर से चली जाए। जब मेरे मुकाबले में मधुलिका खड़ी होगी, तो हम में से कुमार किसे चुनेगा ?
इसमें चुनने का प्रश्न कहां से आ गया ? जरूरी तो नहीं, वह तुम्हें छोड़कर मधुलिका से प्यार करें , या मधुलिका को छोड़कर तुमसे प्यार करें ,हो सकता है, उसकी चाहत कोई और ही हो। अभी तक तुमने उससे ज्यादा बात भी नहीं की है उसके विषय में ज्यादा कुछ जानती भी नहीं हो। अपने मन से ही कोई निर्णय तुम कैसे ले सकती हो ?
मुझे तो लगता है, हमसे ज्यादा तुम उसे जानने लगी हो।
देखो ! मुझसे ऐसी बातें मत करो ! इंसान को, इतनी पहचान तो हो ही जाती है ,जबसे वो मुझसे मिलने आ रहा है ,मैं उसमें अपने प्रति कोई प्रेम या लगाव नहीं देखती हूँ बल्कि वो मुझसे ऐसे बातें करता है ,जैसे उसे मुझ पर विश्वास नहीं है और मेरे विषय में बहुत कुछ जान लेना चाहता है। वो मेरे पास उस विज्ञापन को नहीं लेकर नहीं आया वरन उसके मन में ,मेरे प्रति जो प्रश्न उठ रहे हैं ,उनकी तलाश में आया था। मुझे यदि तुम्हारी परेशानी का एहसास न होता तो अब तक मैं उसे सम्पूर्ण सच्चाई से अवगत करा चुकी होती।
अगले दिन, शिल्पा उसी पेड़ के नीचे बैठी हुई थी, वह जानती थी, कुमार इधर अवश्य ही आएगा और आया भी , मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,तब वह खुश होते हुए कुमार से कहती है -देखो, कुमार ! मैं इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हूं कहते हुए उसने वह विज्ञापन का पर्चा कुमार को दिखलाया।
कुमार ने वह इश्तिहार अपने हाथों में लिया, और पूछा- यह तुम्हें कहां से मिला ?
यह क्या बात हुई ? जब यह प्रतियोगिता हो रही है, और विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं तो मुझे न मिले, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। किन्तु तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो ? क्या कोई बात है ? कुमार ने वह विज्ञापन अपने हाथों में लिया और देखकर चुप हो गया क्योंकि यह वही पर्चा है ,जिसे उसने कल नित्या को दिया था। कला की ऐसी कोई प्रतियोगिता हो ही नहीं रही थी, यह तो उसने अपने दोस्त की प्रिंटिंग प्रेस से नित्या को परखने के लिए वह पर्चा छपवाया था। वह जानना चाहता था कि नित्या, प्रतियोगिता के लिए उत्सुक होगी या नहीं यदि वो प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाहती है,तब कि तब देखेंगे। अब यह बात तो स्पष्ट हो चुकी थी कि शिल्पा, 'तमन्ना' को जानती है उस प्रतियोगिता में भी शिल्पा भी नित्या के साथ थी और मुझसे अनजान बनने का अभिनय कर रही थी।
कुमार क्या सोच रहे हो ? शिल्पा ने सशंकित स्वर में पूछा। कुमार का दिल तो चाह रहा था, कि वह जोर से चिल्लाए और उससे कहे - तुम एक झूठी लड़की हो, मैं तुम्हारी ये बद्सूरत शक्ल कभी देखना नहीं चाहता , और तुम दिल से भी काली हो, पूरे कॉलेज को पता होना चाहिए कि यह झूठी लड़की है, और इसके साथ जो नित्या है, जो 'तमन्ना' के नाम से चित्रकारी करती है, वह भी एक धोखेबाज है।
कुमार क्या सोच रहे हो? कुछ बोलोगे भी।