आज बहुत दिनों के पश्चात,मैं अपने बेटे के साथ खेली थी। उसे अपने कमरे में ले आई थी ,उसे अपने सीने से लगा ,स्तनपान कराते हुए ,आज मैंने जी भरकर उसे देखा। आज ऐसा लग रहा था ,जैसे मैं अब तक किसी दूसरे जीवन को जी रही थी , जो शायद वास्तविकता से बहुत परे था ,उसमें न ही कोई अनुभूति थी ,न ही प्यार, अपनापन ,बस एक ज़िद थी ,अपने प्यार को पाने की। आज उस आवरण को उतार, मैं धरातल पर आ गयी थी ,ऐसा आभास हो रहा था ,जैसे आज मेरा नया जन्म हुआ है। तब मैंने एक और निर्णय लिया, मैं गर्वित को ,अब सुनयना जी के पास ज़्यादा नहीं छोडूंगी,जब मुझे इस हवेली में ही रहना है और इस घर को ,घर के लोगों को समझना ही है ,तब शुरुआत आज से ही होगी।
तब उन्होंने पूछा -आज क्या, कुछ हुआ है ?
जो होना था, वह तो कल ही हो गया, अब आगे की तैयारी है।
मतलब ! मैं कुछ समझा नहीं,
कल तक तो मैं भी कुछ नहीं समझी थी, किंतु अब धीरे धीरे समझ रही हूं। मैं ही ,इस घर के लोगों को जोड़ कर रख सकती हूं, रखना भी चाहती हूं। मैं 'खैरात' में ही तो आई हूं ताकि इस घर की भलाई हो सके। तब आपको मुझसे बाकायदा विवाह करना होगा, ताकि मैं सम्मान के साथ, जी सकूं। अन्य लोगों को और मुझे किसी की रखैल होने का आभास न हो।
तुम ऐसा क्यों कह रही हो ? यदि तुम्हारी यह शर्त न भी होती, तब भी हम इस रिश्ते को, इस तरह से निभाते, जैसे एक विवाहित पुरुष अपनी पत्नी से व्यवहार करता है,हम ठाकुर ख़ानदान हैं ,जो जबान दे दी तो दे दी। अपनी बात से मुकरते नहीं।
आपने ज़बान मुझे दी है,ये मैं जानती हूँ , एक ऐसी ज़बान जो हम दोनों के मध्य की स्वीकृति है , जिसे किसी ने देखा या सुना नहीं ,रिश्ते को निभाना और उस रिश्ते को एक सामाजिक और कानूनी स्वीकृति मिलना दोनों ही अलग चीजें हैं। मैं जगत जी के साथ रही क्योंकि वो मेरे पति थे ,उनसे मेरा विवाह हुआ था।उनका मुझ पर अधिकार बनता था।
हरिराम को आज दमयंती किसी मेनका से कम नहीं लग रही थी। तब वो दमयंती से बोले -तुम भी, न जाने क्या बातें लेकर बैठ गयीं हो ,आओ !न ..... ये रात्रि यूँ ही ढल जाएगी। ये सब बातें तो दिन में होती रहेंगी। दमयंती बिना न नुकूर के बिस्तर पर आ गयी। तब दमयंती ने पूछा - मैंने सुना है ,आपके होटल में भी तो लड़कियां आती रही होंगी।
हां, आती हैं, कहते हुए उसने मस्ती में दमयंती के वस्त्र उसके बदन से अलग करने आरम्भ कर दिए ,तब वो बोला - वहीं तो हम जवान हुए हैं ,पैसे की कोई कमी नहीं, अमीर लड़कों के पीछे लड़कियां मधुमक्खियों की तरह मंडराती हैं। चंद पैसों की ख़ातिर अपना जलवा दिखाने के लिए तैयार रहती हैं। रात -रातभर खूब मस्ती रही है। इससे पहले की दमयंती कुछ और कहती या पूछती ,बोला -किन्तु तुम जैसी कोई नहीं आई ,कहते हुए उसने कमरे की लाइट बंद कर दी।
क्या वहां किसी लड़की से दिल नहीं लगा ?दमयंती दबे शब्दों में पूछती है।
बस अब और नहीं, कहते हुए उसने उसके अधरों को बंद कर दिया।
अगले दिन ,दमयंती सुनयना देवी से पूछती है -क्या आप कल कहीं गयीं थीं ?
उन्होंने उसकी तरफ देखा और प्रश्न किया ,क्यों तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो ?
कुछ नहीं ,कल जब मैं आपके कमरे की तरफ गयी थी ,तब गर्वित को मैंने अकेले देखा था इसीलिए पूछ रही थी।
हमें तुम्हें जबाब देने की कोई आवश्यकता नहीं है ,तुम अपने ऊपर ध्यान रखो !हम क्या करते हैं ,कहाँ जाते हैं ? तुम्हें जानने की कोई आवश्यकता नहीं है। वैसे गर्वित कहाँ है ?
उसको मैंने नहलाकर सुला दिया है।
उस समय वे अपनी अलमारी में शायद कुछ ढूंढ़ रहीं थीं ,अचानक ही स्थिर खड़ी हो गयीं ,उन्होंने दमयंती के इतना कहते ही ,उसको गहरी नजरों से देखा और पूछा - तुमने ,उसे नहलाया ,तुम ठीक तो हो !
हाँ ,मैं स्वस्थ हूँ ,आपको क्या लग रहा है ?
वो सोच रहीं थीं ,न ही इसने' जगत' के लिए पूछा ,न ही' ज्वाला' से मिलने की ललक इसमें दिखलाई दे रही है। एकदम शांत नजर आ रही है ,उसके बदले व्यवहार से वे परेशान हो उठीं ,तब बोलीं -अब तुम जाओ ! मुझे थोड़ा काम है।
जी, कहकर दमयंती बाहर आ गयी।
तब सुनयना देवी ने तुरंत ही ज्वाला को फोन लगाया और पूछा -आज क्या कुछ हुआ है ?
ज्वाला को कुछ भी समझ नहीं आया ,तब उसने पूछा -आप किस विषय में पूछ रहीं हैं ?
क्या दमयंती ने तुमसे कुछ कहा है ,वो आज कुछ बदली -बदली सी नजर आ रही है , न ही कोई शिकायत और आज तो उसने अपने बेटे को नहलाया ,मेरे पास नहीं आने दिया। मुझसे पूछ रही थी ,आप कहाँ थीं ?
ये तो सामान्य सी बात है ,इसमें आपको परेशान होने की क्या आवश्यकता है ? अपने काम पर इस तरह सुनयना देवी जी का फोन आने पर वो झुंझला गया था ,तभी बोला -हो सकता है ,आपके अनुसार ,लगता है ,उसने इस घर को अपना लिया हो ,अब आप मुझसे क्या उम्मीद करती है ? अब मैं उसके सामने नहीं जाऊंगा, कहकर ज्वाला ने फोन रख दिया।
दमयंती के बदले व्यवहार का ठाकुर परिवार पर क्या असर होता है ?आइये आगे जानते हैं।