Khoobsurat [part 20]

विभोर, कुमार से मिलने उसके घर आता है, किंतु जब वह कुमार के कमरे में जाता है तो उसे, उसका कमरा कुछ बदला-बदला सा नजर आता है। तब वह ध्यान से देखता है,और तब उसे आभास होता है , कि वहां पर तमन्ना की बनाई हुई पेंटिंग्स जो उसने लगाई हुई थीं, आज उसके कमरे में नहीं हैं। उसे आश्चर्य होता है, ऐसा कैसे हो सकता है ? तमन्ना की पेंटिंग्स यहां क्यों नहीं है ? तब वह उससे पूछता है -कुमार ! यार ! तेरे कमरे में तो पेंटिग्स हुआ करती थीं ,तूने वो पेंटिंग कहां गायब कर दी ? ये उसके लिए आश्चर्यचकित कर देने वाली बात थी। तू तो, तमन्ना का प्रशंसक था न..... इतनी सारी पेंटिंग्स तूने लगाई और अब हटा क्यों दी ?

उदास स्वर में, कुमार बोला - कुछ नहीं यार ! कुछ ज्यादा ही रंग हो गए थे, मैं उन रंगों में अपने को लिपटा हुआ महसूस कर रहा था,'' जीवन में ज्यादा रंग होना भी उचित नहीं है। आदमी उन रंगों को समझ नहीं पाता, उसके लिए कौन सा रंग उचित है और कौन सा अनुचित है ?''


 यह तू कैसी बातें कर रहा है, विभोर ने पूछा -क्या कुछ हुआ है ?

नहीं, कुछ भी तो नहीं हुआ , ऐसा लग रहा था,जैसे मैं एक झूठ के साथ जी रहा था,' तमन्ना', तमन्ना ही नहीं है, वह एक बड़ा झूठ है। 

तुझे ऐसा क्यों लगता है ? तूने उसे देखा तो है, उस दिन तो हमने भी देखा था। 

देखना, समझना, महसूस करना, किसी के द्वारा बताया जाना, यह सब अलग-अलग बातें हैं। कोई कहता कुछ है, करता कुछ है, सोचता कुछ है, बताता कुछ है या दिखलाता कुछ है। 

मुझे तो तेरी यह बातें पहेलियों जैसी लग रहीं हैं , मुझे कुछ भी समझ में ही नहीं आ रहा । 

सही कह रहा हूँ , मैं इन पहेलियों में ही तो उलझ कर रह गया हूं। तुझे कैसे समझ में आएंगीं ? जब मैं ही नहीं समझ पाया। 

तुझे क्या लगता है ,क्या वह तमन्ना, तमन्ना नहीं है, वह एक झूठ है। 

सही से तो नहीं कह सकता, अभी सोच रहा हूं, न  जाने मैं क्या कर रहा हूं ,मैं खुद भी नहीं जानता, इतना अवश्य जानता हूं कि मैं एक झूठ में उलझ कर रह गया हूं। इसका अंत क्या होगा ?मैं भी नहीं जानता, किंतु शुरुआत एक उलझे हुए, झूठ से हुई थी, मेरा प्यार तो सच्चा ही था ,न जाने, किन रंगीन रास्तों में भटक कर रह गया हूँ आजकल ये रंग मुझे बहुत उलझाए हुए हैं ,जब किसी रंग में कोई दूसरा रंग मिल जाता है ,तब वो अपनी वास्तविक पहचान खो देता है। वास्तविकता क्या है ?उसका असली रंग क्या है ?यही समझने का प्रयास कर रहा हूँ।   

यार! मुझे लगता है, तुमने गहरी चोट खाई है, क्या मुझे भी बतायेगा, आखिर हुआ क्या है ?वैसे एक बात बताऊं ,वास्तविक रंग में यदि दूसरा रंग मिल जाये, तो तीसरा रंग तो बनता है किन्तु एक नया रंग उभरकर आता है,हो सकता है ,बहुत ही खूबसूरत हो।  

किन्तु कई बार एक भद्दा रंग भी बन जाता है जिससे उस कला की सम्पूर्ण खूबसूरती समाप्त हो जाती है।  वैसे अभी बताने को कुछ नहीं है ,जब मुझे पता चल जाएगा, तो तुझे भी, बता दूंगा। 

 तू, इतना हताश मत हो ! जो होगा, अच्छा ही होगा, निराश होने की आवश्यकता नहीं है, बाकी हम तेरे दोस्त तेरे साथ हैं ,अच्छा बता ! क्या खाएगा ? कुछ मंगवा लेते हैं। नहीं, ऐसा करते हैं बाहर ही घूमने चलते हैं , बाहर टहलेगा, थोड़ी ताजी हवा खाएगा, तो दिमाग भी तेजी से चलेगा। वैसे तुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। देख, बुरा मत मानना ! मैं ठीक से सारी बातें, जानता भी नहीं किन्तु इतना कह सकता हूँ ,तुझे ज़्यादा परेशां होने की आवश्यकता नहीं है ,न ही कोई बात, दिल से लगानी है। ऐसी' तमन्ना ' न जाने कितनी आएंगीं, कितनी चली जाएंगीं ? तू एक ही, तमन्ना को लिए बैठा है, जीवन में आगे बढ़ जा !

 बातें करते हुए वे दोनों सड़क पर आ जाते हैं, तब कुमार कहता है -पहली बार ही, मुझे किसी पर विश्वास हुआ था और पहली बार में ही धोखा खा गया।

अच्छा ,चल वो सड़क के उस पार कैफ़े हैं ,वहीं बैठते हैं , मुझे तो कुछ भी बात समझ में नहीं आ रही है, यदि वह तमन्ना नहीं है तो फिर तमन्ना कौन है ? या वो एक झूठ है। 

मैं वही तो पता लगाने का प्रयास कर रहा हूं, असल में' तमन्ना' कौन है ? एक झूठ या एक डरावना सच !

कैसा डरावना ?

अभी कुछ कह नहीं सकता,चल ! कॉफी पी लेते हैं। 

कॉफी हाउस, में नित्या अपनी एक सहेली के साथ बैठी हुई थी, उसने कुमार और विभोर को आते हुए नहीं देखा किन्तु कुमार ने उसे पहले ही देख लिया था,वो नित्या से पीठ करके ऐसे बैठा ताकि उसकी नजर कुमार पर न पड़े।  तब कुमार, नित्या की तरफ इशारा करके, विभोर से कहता है  -जा ! उससे बात करके तो आ ! वो तुझे पहचानती भी नहीं है ,तूने उसे मंच पर पुरस्कार लेते हुए देखा है।

मुझे उससे नहीं मिलना है ,तू ही उसका प्रशंसक है ,मैं नहीं !

तू जा तो सही ,वो इतनी बड़ी कलाकार है ,तुझे मेरी परेशानी का कारण भी पता चल जायेगा। 

अपने दोस्त के कहने पर विभोर अपनी कुर्सी से उठकर नित्या के करीब जाकर कहता है -अरे !तमन्ना जी आप यहाँ ! मेरी कितनी ख़ुशनसीबी है ?आज आप मुझे यहाँ मिल गयीं। 

जी आप कौन ?मैंने आपको पहचाना नहीं ,नित्या ने उस अनजान लड़के से पूछा। 

जी ,आप मुझे कैसे जानेंगीं ? मैं आपकी तरह ,कोई बड़ा कलाकार नहीं हूँ ,मैं तो आपका प्रशंसक हूँ। 

उसकी बातें सुनकर नित्या थोड़ा घबरा गयी ,उसका चेहरा सफेद पड़ गया ,जी.... जी .....  धन्यवाद !

नित्या ! ये कौन है ?उसके साथ बैठी लड़की ने उससे पूछा और तब विभोर की तरफ देखते हुए बोली -ए ,मिस्टर !तुम्हें कोई गलतफ़हमी हुई है ,ये' तमन्ना 'नहीं है। 

तब विभोर ,नित्या से पूछता है -क्या इनको भी मालूम नहीं है ?

मुझे क्या मालूम नहीं है ?नित्या! क्या तेरा कोई रहस्य है ?

नहीं ,ये तो ऐसे ही कोई 'सरफिरा' चला आया है तू इसकी बातों पर ध्यान क्यों दे रही है ?

नित्या के ऐसा कहने पर ,विभोर को बुरा लगा ,तब वो बोला -आप मुझे 'सरफिरा 'क्यों कह रहीं हैं ?माना कि आप एक अच्छी कलाकार हैं किन्तु इसका मतलब ये तो नहीं कि आप मेरा अपमान करेंगी गुस्से से विभोर बोला। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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