Khoobsurat [part 22]

शिल्पा, ईर्ष्या के कारण कुमार से ,मधुलिका के विषय में कुछ भी कह देती है ,वो नहीं चाहती कि कुमार उससे दोस्ती करने का भी सोचे। अभी तक तो ,कुमार को अपने क़रीब पाकर उसके मन में एक उम्मीद की किरण उभरी थी किन्तु अब मधुलिका के कारण, उसे फिर से परेशानी महसूस होने लगी, यह बात उसके दिमाग़ से निकल ही नहीं पा रही थी।  कुमार ने, मधुलिका से दोस्ती के विषय में सोचा भी तो कैसे ?घर आकर आईने के सामने बैठकर, अपने आपको निहारती है ,तब वो अपना मेकअप करने लगती है ,ढेर सारा  मेकअप लगाती है।


 न जाने क्यों, उसे बहुत क्रोध आ रहा था ? अंदर ही अंदर उसे जैसे घुटन सी हो रही थी, अपने आपको आईने में देखती है और फिर और ढेर सारा मेकअप लगा, अपने आपको देखती है जिससे वो और डरावनी लगने लगी। तभी वह चीखने लगती है -मैं कभी सुंदर लग ही नहीं सकती, उस थोपे मेकअप को देखती है और क्रोध में भरकर आईने के सामने रखे संपूर्ण सामान को जमीन पर फेंक देती है। उसे लगता है ,उसकी ज़िंदगी का हर पल दर्द से भरा है ,बस कुछ पल ऐसे होते हैं ,जिनमें वो सब कुछ भूलकर अपने लिए जीती है।

 वो पल तब आते हैं ,जब वो किसी सुंदर चित्र की रचना कर रही होती है किन्तु आजकल न जाने क्यों चित्र बनाते समय भी मन विचलित सा रहता है ,उसे लगता है ,जैसे कोई चीज है ,जिसका उसको खो जाने का ड़र हमेशा बना रहता है। शिल्पा के कमरे से आतीं , तेज आवाजें सुनकर नित्या, शिल्पा के कमरे की तरफ दौड़ती है और उसका दरवाजा खटखटाती है -शिल्पा !क्या कुछ हुआ है ,तू क्या कर रही है ?क्या तू ठीक तो है ?वो लगातार दरवाजा लगभग पीटते हुए उससे पूछे जा रही थी।

 शिल्पा को लगा, यदि वो जबाब नहीं देगी ,तो नित्या इसी तरह दरवाजा पीटती रहेगी। तब वो एक गहरी साँस लेती है ,और अपने को शांत करने का प्रयास करती है ,तब वो कहती है -हाँ ,सब ठीक है। 

ठीक है ,किन्तु दरवाजा तो खोल !मैं क्या यहीं खड़ी रहूंगी ?तू ये मत भूल, मैं भी इसी कमरे में रहती हूँ। 

तब शिल्पा दरवाजे की कुण्डी खोलकर सीधे गुसलख़ाने में घुस जाती है ,ताकि नित्या उसे इस रूप में न देख ले। क्या हुआ ?दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रही है ?कहकर वो दरवाज़े को धक्का देती है, एक धक्के में ही  दरवाजा खुल जाता है। तब उसे लगता है ,दरवाजा तो खुला हुआ ही था ,मैने पहले क्यों नहीं देखा ?किन्तु उस कमरे में अब उसे शिल्पा नहीं दिख रही थी। शिल्पा ! तू कहाँ है ? तब उसे गुसलखाने से पानी के  चलने की आवाज आई। शिल्पा !क्या तू वहां है ?सब ठीक तो है। 

कुछ ही देर में शिल्पा दरवाज़ा खोलती है और नित्या से कहती है -क्यों शोर मचा रखा है ? बाथरूम में थी ,वहां भी चैन से नहीं रहने देते। 

हमें क्या मालूम तू कहाँ है ?वो तो कुछ चीजें गिरने की आवाजें आईं ,तब मैंने सोचा -न जाने क्या गिरा है ?इसीलिए यहाँ दौड़ती हुई चली आई। 

तुझे यहां कुछ बिखरा हुआ नजर आ रहा है ,सब ठीक तो है ,कहते हुए अपने पलंग के करीब गयी ,जहाँ एक लिपस्टिक लुढ़कती हुई दिख रही थी ,शिल्पा ने उसे पैर से अंदर कर दिया, उसको ऐसा करते नित्या ने भी देख लिया था किन्तु नजरअंदाज कर गयी। वो समझ गयी थी ,यहाँ कुछ तो हुआ है किन्तु उसने नजरअंदाज करने में ही भलाई समझी। 

तब नित्या बोली -हो सकता है ,किसी और कमरे से आवाज आई हो,वैसे इस समय तुम अपना चेहरा क्यों धो रही थी ?

ये क्या बात हुई ?चेहरा धोने का भी कोई समय होता है ,तू भी न... कुछ भी, कहते हुए ,अपना चेहरा पोंछकर कहती है ,आज' फेसपैक 'लगाया था। 

ओहो !आजकल अपनी ब्यूटी पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है ,क्या किसी ने कुछ कहा है ?मुस्कराकर छेड़ते हुए नित्या ने पूछा। 

उसके यह कहते ही ,शिल्पा को अपनी वही बातें, फिर से स्मरण हो आईं ,तब वो बुदबुदाई  -ये खूबसूरत लड़कियां ,हम जैसों के लिए किसी को छोड़ें, तभी तो किसी की नजर हम पर पड़े ,कहते हुए ,अपनी चित्रकला की कॉपी निकालकर पलंग के दूसरे कोने में जाकर बैठ जाती है। 

नित्या ने उसका बुदबुदाना सुन लिया था ,तब वो बोली - ऐसा नहीं है ,'जो सुंदरता का पुजारी है ,वो सच्चा आशिक़ कभी नहीं बन सकता क्योंकि जब तक सुंदरता है ,तभी तक वह उसे प्यार करेगा बल्कि इसे प्यार नहीं आकर्षण कहेंगे।'' अच्छा ,एक बात बताऊं !वो उसे कुमार के विषय में बता देना चाहती थी ,फिर सोचा- ये वैसे ही कुमार को लेकर परेशान रहती है ,जब सुनेगी कि वो मुझसे मिलने और वहां मेरी छानबीन करने गया था ,तो इसे विश्वास नहीं होगा कि वो मेरे लिए नहीं गया था और परेशान हो जाएगी इसीलिए चुप हो गयी। 

तभी शिल्पा ने पूछा -बताओ ! कौन सी बात बताना चाहती हो ?

कौन सी बात.... उन्ही शब्दों को दोहराते हुए बोली। 

अभी तुम ही तो कह रहीं थीं -एक बात बताऊं !

मन में न जाने कितने विचार चलते रहते हैं ?न जाने क्या बात कहना चाहती थी किन्तु अब भूल गयी। 

इसका अर्थ तो यही है ,अब तुम्हारी उम्र हो गयी है ,अब तुम भूलने लगी हो। 

किसकी उम्र ?ऐसा नहीं है ,तुम कहना क्या चाहती हो ?अब मैं बूढी हो रही हूँ। 

और नहीं तो क्या ?कहते हुए शिल्पा के चेहरे पर इक मुस्कान आई। तभी नित्या तेज़ी से उसकी तरफ झपटी और तुम ... नित्या को अपनी और आते देखकर शिल्पा पलंग से कूदकर भागी और दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ भागी ,दोनों एक खुले बरामदे में दौड़ रहीं थीं।

 उन्हें इस तरह हँसते -खेलते देखकर कल्याणी देवी मन ही मन प्रसन्न हुई किन्तु झूठा क्रोध दिखलाते हुए ,बोलीं -दोनों इतनी बड़ी हो गयीं हैं किन्तु अभी तक इनका बचपना नहीं गया। क्या हुआ? जो इस तरह भागा -दौड़ी हो रही है ?

बुआ जी !ये बहुत शैतान हो गयी है ,आप जानती हैं ,इसने मुझे क्या कहा है ?

क्या कहा है ?

कह रही थी -अब मेरी उम्र हो गयी है ,ये मुझसे सिर्फ एक साल छोटी है ,तब इसकी भी तो उम्र बढ़ी या नहीं,कहते हुए आकर बुआ के समीप बैठ गयी। 

शिल्पा भी दौड़ते हुए आकर अपनी माँ से बोली -ये मुझसे कुछ कहना चाहती थी और तुरंत ही भूल भी गयी। 

अब इस तरह याददाश्त तो बड़े -बूढ़े लोगों की ही जाती है ,कहकर फिर से हंसने लगी। 

मन ही मन कल्याणी जी अपनी बेटी को देखकर खुश थीं, अच्छा ! अब दोनों भोजन कर लो !कहते हुए भोजन कक्ष की ओर बढ़ चलीं ,पीछे -पीछे वे दोनों भी चल दीं।

एक फोन बार -बार आ रहा था ,शिल्पा ने उस नंबर को देखकर भी अनदेखा कर दिया ,तभी नित्या ने पूछा किसका फोन है ? उठाती क्यों नहीं हो ? 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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