Khoobsurat [part 21]

कुमार थोड़ा उदास था,तब उसका दोस्त विभोर आता है और उसका मन बहलाने के लिए कुमार को बाहर कॉफी पिलाने के लिए ले जाता है। कुमार को वहां नित्या अपनी किसी दोस्त के साथ 'कॉफी हाउस ' में दिखती है। विभोर कुमार से उसकी उदासीनता का कारण जानना चाहता है। तब कुमार, विभोर से नित्या से मिलने के लिए कहता है और स्वयं वहीं छिप जाता है। जब विभोर नित्य से बात करता है ,तब उसकी सहेली को लगता है ,यह नित्या को छेड़ने के उद्देश्य से बातचीत करने का बहाना ढूंढ़ रहा है।

 तब नित्या बातों ही बातों में विभोर को' सरफिरा' कह देती है ,जिसके कारण विभोर को क्रोध आता है और नित्या से कहता है -माना कि तुम एक अच्छी कलाकार हो, किन्तु तुम्हें मुझे' सरफिरा' कहने का कोई अधिकार नहीं है। 


तब नित्या के साथ आई लड़की उससे कहती है -ए मिस्टर ! शायद तुमको कोई गलतफ़हमी हो गयी है ,ये कोई कलाकार नहीं है ,शायद तुम इसे कोई और समझ रहे हो। यह तो एक ऐसी कलाकार है ,जिससे एक लाइन सीधी भी नहीं खींचती। 

ये आप क्या कह रही हैं ?मैंने स्वयं इनको मंच पर'' तमन्ना'' के नाम से इनाम लेते हुए देखा है। 

यार तू ,किससे क्या बोले जा रही है ?कुछ भी कहे जा रही है ,आ चल, अब घर चलते हैं ,मुझे बहुत देर हो रही है। 

ऐसे कैसे चले जायें ?इस लड़के को तेरे विषय में जो कुछ भी गलत फ़हमी हुई है ,इसे दूर करना आवश्यक है। 

घबराते हुए नित्या बोली -हमें किसी की कोई गलतफ़हमी दूर नहीं करनी है ,तुझे चलना है ,तो चल !वरना मैं अकेली ही जा रही हूँ कहते हुए अपना बैग उठाकर बाहर की तरफ कदम बढ़ा देती है और उसके पीछे उसकी सहेली दौड़कर जाती है। 

ए मैडम !तुम भी तो सुनती जाओ !ये तुम्हारी सहेली बहुत बड़ी छुपी रुस्तम है ,जो ये है ,वो दिखती नहीं ,जो दिखती है ,वो ये नहीं है। 

ये क्या कह रहा है ? उसके पीछे तेज क़दमों से चलते हुए ,उसकी सहेली पूछती है। तुमसे कहा तो था -'ऐसे ही कोई सरफिरा है। कोई 'सरफिरा' इतने आत्मविश्वास से यह नहीं बोलता ,आख़िर माज़रा क्या है ? वो किस कला की अथवा कलाकार की बात कर रहा था  मुझे भी पता चलेगा ?

कोई माज़रा नहीं है ,जब मैं ही नहीं जानती ,तब तुझे क्या बताऊँ ?मैं तो इतना जानती हूँ ,कोई लड़का हमसे बात करने का बहाना ढूँढ रहा था। 

हो सकता है ,वो कोई बहाना कर रहा हो किन्तु इतने विश्वास के साथ वो जो कुछ भी कह रहा था,ऐसे कोई नहीं कहेगा ,इसमें छेड़ना भी कहाँ हुआ ?वो तो तुमसे ऐसे बात कर रहा था ,जैसे वो तुम्हारा कोई बहुत बड़ा प्रशंसक हो। 

अब तुम मुझसे ज्यादा पूछताछ मत करो !मैं भी बस उसे इतना ही जानती हूँ जितना कि तुम !कहकर नित्या अपने घर की तरफ मुड़ गयी। 

आज मौसम बेहद सुहावना हो रहा था ,आकाश में बादल छाए थे ,लग रहा था -जैसे बरसात होगी किन्तु यह मौसम तो बहुत समय से ही ऐसा है ,मैं कब तक इस बरसात की प्रतीक्षा में अपनी कक्षा में बैठी रहूंगी ? मुझे अपनी कला का अभ्यास करना है। बाहर के मौसम, का दृश्य ही बनाना होगा यह सोचकर वह उसी पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाती है। अभी उसने अपना सामान निकाला ही था , तभी एकदम से तेजी से हवा चलने लगी और शिल्पा का सामान इधर-उधर लुढ़कने लगा और उसके ड्राइंग के कागज, हवा में पतंगी कागज की तरह उड़ने लगे। वह  दौड़कर उन्हें उठाती है। उसकी ऐसी हालत देखकर, कुमार भी आ जाता है और उसकी सहायता करने का प्रयास करता है। तभी उसके हाथ में, वह कागज भी लगता है जिसमें उसकी स्वयं की तस्वीर थी। अपनी तस्वीर को देखकर, वह एकपल शिल्पा को देखता है और चुपचाप उस फोटो को अपने , वस्त्रों में छुपा लेता है। मौसम कितना खराब है ? तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था। 

ऐसा मौसम तो सुबह से ही ऐसा हो रहा है, मैंने सोचा -अभी भी नहीं बदलेगा। 

मौसम का और इंसान की फितरत का, कभी पता नहीं चलता, कुमार उसकी तरफ देखकर कहता है। वह अपना सारा सामान एकत्र करके, अभी अपने थैले में रख ही रही थी तभी बारिश की मोटी मोटी बूंदें पड़ने लगीं। यह क्या मुसीबत आ गई ? सुबह से तो ऐसा कुछ भी नहीं था अचानक ही, हवा और बारिश एक साथ होने लगीं। वह दोनों भाग कर जो भी कमरा नजदीक था उसी में चले जाते हैं। ये देखो !मैं तो थोड़ा भीग भी गई , कहीं मेरा, सामान न भीग जाए , मेरी फाइल खराब हो जाएगी। यह सोचकर वह अपना, सामान निकाल कर जांचने लगती है कहीं पानी तो नहीं भर गया। तभी उसका ध्यान, अपनी फाइल में,रखे उन  कागजों पर  गया। उसे अपनी फाइल में एक पेपर कम लगा, वो परेशां हो उठी। 

उसके चेहरे पर परेशानी के भाव देखकर ,कुमार ने पूछा -क्या कोई बात है ?

मेरा एक पेपर नहीं मिल रहा ,न जाने कहाँ उड़ गया ?

उसमें क्या कुछ विशेष था ? जो इस तरह परेशान हो रही हो।

 उसमें मैंने चित्र बनाया हुआ था वही नहीं मिल रहा। 

तो क्या हुआ ? तुम तो कलाकार हो फिर से बना सकती हो या फिर किसी विशेष के लिए था, ये बारिश रुक जाये तो फिर से देख लेंगे। वो तो अच्छा हुआ ,मैं आ गया वरना जो बचा है वो भी नहीं मिलता। कागज़ पानी से गल जाते है और रंग बह जाते हैं  

हाँ यह बात तो है ,शिल्पा को लगा ,उसने कुमार को' धन्यवाद' नहीं कहा इसीलिए मुझे सुना रहा है। तुम्हारा बहुत -बहुत धन्यवाद !

हाँ ,हाँ वो तो ठीक है किन्तु क्या आज तुम्हारी वो दोस्त नहीं आई ?

कौन सी ?

क्या तुम्हारी बहुत सारी  दोस्त हैं ,वही जो उस दिन हमें मिली थी। 

ओह !अच्छा, मधुलिका !

हाँ ,वही मैं उसका नाम नहीं पूछा पाया था।  

क्यों ?तुम्हें उसका नाम क्यों जानना है ?ईर्ष्या से शिल्पा ने पूछा। 

कोई नहीं ,वो तुम्हारी दोस्त है। 

हाँ ,है तो..... 

मेरी भी तो दोस्त हुई। 

क्या उसने तुमसे कहा- कि वो तुम्हारी दोस्त बनना चाहती है। 

नहीं ,वो क्यों कहेगी ?किन्तु मैंने उसकी आँखों में देखा था ,वो मुझसे दोस्ती करने के लिए उत्सुक है ,कुमार शिल्पा के मज़े लेते हुए बोला।

वो ऐसी -वैसी लड़की नहीं है ,जो तुमसे दोस्ती करेगी ,उसके घरवाले बहुत ग़ुस्सेवाले हैं ,उसके विषय में सोचना भी मत ,कहकर उसने कुमार को डराना चाहा ताकि वो मधुलिका से दोस्ती का विचार त्याग दे।    

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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