Mysterious nights [part 93]

दमयंती शिखा से बताती है -बलवंत सिंह जी के आने से पहले ,ज्वाला और मेरी एक संतान और हुई जिसका नाम' तेजस 'रखा गया किन्तु मेरी सास के अनुसार हमने अनर्थ कर दिया था ,इस विषय पर उन्होंने उन तांत्रिक बाबा से भी पूछा -तब उन्होंने रहस्यपूर्ण जबाब दिया ,जिसका अर्थ हम उस समय समझ नहीं पाए।

 सुनयना देवी को,  लगता था ,तेजस का बुरा साया अन्य बच्चों पर न पड़ जाए। एक बार मैंने उन्हें समझाया भी था, कि बाबा ने मुझे भी तो आशीर्वाद दिया था कि मैं पांच पुत्रों की मां बनूँगी। यदि कुछ अनिष्ट होना होता ,तो अब तक हो गया होता। मैं इन पांचों की ही माँ हूँ ,मैं किसी भी बच्चे से भेदभाव नहीं कर सकती। 

 किंतु तूने यह बात ध्यान से नहीं सुनी, चार की पत्नी ही इस घर की उन्नति ला सकती है। तो फिर ये पांच कहां से आए ? उन बाबा के शब्दों में कुछ न कुछ रहस्य तो छुपा हुआ था, आज वह रहस्य हमारे सामने उसकी बीमारी के रूप में आया। जैसे कि तुम्हारे पिता को तेजस ही पसंद आया था, गौरव -गर्वित में से कोई पसंद नहीं आया सुमित और पुनीत में से भी कोई पसंद नहीं आया।' तेजस' की मृत्यु के पश्चात, तब बाबा ने यह रहस्य खोला था कि वह कमजोर कड़ी थी जो टूट गई , उसकी इतनी ही उम्र थी ?

यह सुनकर शिखा, की आंखों में आंसू भर आए ,उसकी आंखों के सामने, तेजस की वो बातें घूम रही थीं जो वह अक्सर उससे फोन पर करता था और जब वो उससे मिलने आया था, सभी बातें आंखों के सामने चलचित्र की तरह घूमने लगीं , उसका प्यार गहराई तक महसूस हुआ और उसकी आंखों में आंसू आ गए। सोच कर रोने लगी -मुझे क्या मालूम था ? वह इतनी ही उम्र लेकर आया है , अच्छे लोग शीघ्र ही चले जाते हैं।भगवान को भी तो उनकी जरूरत होती है ,वो कमज़ोर कड़ी नहीं था ,वो सच्चा प्यार करने वालों की 'अनमोल धरोहर 'था। 


 दमयंती ने उसके अश्रुओं को देखा और बोली -मैं उसके प्रति तुम्हारे  प्यार समझ सकती हूँ क्योंकि मैं भी तन से, इन चारों भाइयों में बँटी हूँ किन्तु मन से मैं आज भी ज्वाला की ही हूँ। उन्हीं दिनों में ये कमरे बनाए गए थे, और मेरा चारों से एक साथ विवाह किया गया था। अब मैं चारों की पत्नी हूं और जब भी कोई भाई आता है, तब उसी रंग का, पर्दा उसके दरवाजे पर होता है। यदि पर्दा खुला हुआ है, तो दूसरे भाई को पता चल जाता है कि मैं किसके साथ हूं। 

क्या अजीब रस्म है ? ये  सब रस्में ही हैं  या उन तांत्रिक बाबा का किया धरा षड्यंत्र ! न जाने क्यों? शिखा को दमयंती की बातों पर क्रोध आया और उसे वह तांत्रिक बाबा भी गलत ही लगे।

 किंतु दमयंती अपनी ही धुन में बोले जा रही थी -अब मैं इस घर की मालकिन ! हम तुमसे भी यही अपेक्षा रखते हैं। किंतु ऐसा लगता था जैसे शिखा के कानों तक उसके शब्द पहुंच  ही नहीं पा रहे थे, उसने उन बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। दमयंती की बातों को सुनकर, शिखा का मन न जाने क्यों उदास सा हो गया था ?

तब वो बोली -अभी मैं चलती हूं , आपकी कहानी में अभी कुछ बाकी बचा है। 

जो होगा, वह धीरे-धीरे तुम्हें पता चलता ही रहेगा, दमयंती लापरवाही से बोली। 

शाम का समय था, चिड़िया चहचहा रही थीं , सभी पंछी अपने घोंसलों की तरफ लौट रहे थे। सुंदर तरह दृश्य चित्रित हो रहा था सूर्य देव, वापस लौटने की खुशी में, लाल हुए जा रहे थे। पता नहीं क्यों ?शिखा का मन ही नहीं लग रहा था, उचाट  सा हो गया था, हृदय में कोई भाव् ही नहीं आ रहा था, कुछ दिनों के लिए वह तेजस को जैसे भूल सी गई थी किंतु आज तेजस की बात, आने से उसका हृदय, दुखी हो गया। रह रहकर उसकी याद सता रही थी, और उसके अश्रु बार -बार उसकी आंखों को गीला कर रहे थे। सब कुछ सामने है, स्पष्ट है, पता नहीं क्यों ?मन में अजीब सी बेचैनी है। घर भी तो नहीं जा सकती, ताकि मन में आई कुछ बातों को माँ से बांट लेती।

 तभी उसे हवेली से दूर एक बुजुर्ग हवेली को ताकते हुए दिखलाई दिए। ये इंसान कौन है ? ये अक्सर हवेली के आस -पास मंडराता रहता है और हवेली को देखता रहता है। यह कौन हो सकता है ? इन विचारों ने  उसके भावों को पलट दिया, और वो अपना दर्द भूल, तुरंत ही नीचे गई और दमयंती देवी को ढूंढने लगी किंत दमयंती देवी कहीं  भी दिखलाई नहीं दीं।

तब शिखा ने अनुमान लगाया, हो सकता है, उस तांत्रिक बाबा के पास गई हों यह तो उन्होंने बताया ही नहीं, कि अब सुनयना देवी जी कहां है ? वह तो घर में मुझे कहीं भी दिखलाई नहीं दीं । तब उसने रामदीन से पूछा-जो इस समय, इस हवेली का वफादार नौकर बना हुआ था। 

क्या तुमने, सुनयना देवी को देखा है , उसके इस प्रश्न से रामदीन ने उसकी तरफ देखा और घबरा गया। 

क्यों क्या हुआ ? क्या मैंने कुछ गलत प्रश्न पूछ लिया ? 

यहां उनके विषय में कोई बातचीत नहीं करता है। 

 क्यों? वह तो इस घर की मालकिन थी न......

 थीं, किंतु अब नहीं,

क्या उनकी मृत्यु हो गई, उनकी मौत कब हुई ?

उनकी मौत नहीं हुई। 

तब वो  कहां चली गई ?

पता नहीं ,

रामदीन का यह जवाब, शिखा को आश्चर्य में डाल रहा था। 

तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ? क्या अपनी किसी रिश्तेदारी में गई हैं ? अचानक कहां चली गई ?

न जाने कहां चली गईं ? कोई नहीं जानता, रामदीन की यह बात, एक और रहस्य की तरफ इशारा कर रही थी। तभी उसे उन बुजुर्ग, इसका स्मरण हो आया, जो कभी-कभी उस हवेली को देखते हुए दिखलाई दे जाते हैं और हरिराम को पेड़ के नीचे हाथ जोड़ते हुए देखा,जैसे किसी से क्षमा याचना कर रहे हों। ये सब बातें भी एक रहस्य बनी हुई थीं।  आखिर इन बातों के पीछे क्या रहस्य हो सकता है ? यह सब मुझे दमयंती जी  से पूछना ही होगा , शिखा ने सोचा। 

क्या शिखा अपने मन में उठ रहे सभी सवालों का जबाब जान पायेगी ?आखिर हवेली बाहर मंडराता वो इंसान कौन है ? सुनयना जी कहाँ चली गयीं ?इस बात का ज़िक्र अब तक दमयंती जी ने क्यों नहीं किया ?क्या शिखा इस रस्म को  निबाहेगी ?आगे क्या होने वाला है ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -''मिस्टिरियस नाइट्स !''

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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