Ye un dinon ki baat hai [part 2]

 कुछ देर आराम करने के पश्चात, मुझसे  बैठा नहीं गया,कहाँ अब तक स्कूल में लड़कियों के साथ होती किन्तु तभी उनका कल का व्यवहार स्मरण हो आया और मुझे उन पर क्रोध भी आया ,मुझे बताने की बजाए ,मेरी हंसी उड़ा रहीं थीं जैसे उन्हें ये सब होता ही न हो।  दादी अपनी पूजा में व्यस्त थीं,स्कूल में कोई गृहकार्य भी नहीं मिला था। आज ऐसा लग रहा था जैसे मुझे कोई काम ही नहीं है। तब मैं, दादी के पास पहुंच गई वे अभी पूजा स्थल में ही थीं , जैसे ही मैं उनके करीब जाने लगी  उन्होंने दूर से ही हाथ के इशारे  से मुझे वहीं रोक दिया मैं वही की वहीं खड़ी रह गई। पूजा करने के पश्चात तब उन्होंने पूछा  - क्या तेरी बुआ ने यह नहीं सिखलाया कि ऐसे समय में ''पूजा स्थल ''में नहीं जाते हैं। 

नहीं, यह तो उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं कहा । 



वैसे दादी मैं आपसे पूछती हूं' पूजा स्थल' में  क्यों नहीं जाना चाहिए ?

क्या तू बिना नहाए, शौच अथवा पेशाब करके सीधे पूजा करने जाती है ?

नहीं ,दादी आप ये कैसी बातें कर रहीं हैं ?

वे हमारे तन के' त्याज्य पदार्थ' हैं ,इसी प्रकार ये महावारी भी हमारे तन का 'त्याज्य द्रव्य ' है ,अशुद्ध रक्त जो हमारे तन से बाहर जाता है और जब तक ये बाहर आता है ,हमारा तन अशुद्ध रहता है इसीलिए ऐसे समय में महिलाओं को किसी भी' पवित्र स्थल' पर नहीं जाना चाहिए। ऐसे समय में हमारे तन का ताप भी उच्च होता है ,हमारे अंदर सत ,रज़ और तम तीन गुण होते हैं, तामसिक वस्तुओं को ,तामसिक प्रवृति के लोगों को 'पवित्र स्थल' से दूर ही रहना चाहिए। दो विपरीत धाराएं बहेंगी तो अनर्थ ही होगा इसीलिए ऐसे समय में महिलाओं को' पवित्र स्थल' से दूर रखा जाता है। हमारे शरीर के हार्मोन्स में बहुत बदलाव आते हैं ,ऐसे समय में हमें, हमारे मन को शांत रखकर विश्राम करना चाहिए क्योंकि ऐसे समय में गंदगी के सम्पर्क में आने पर संक्रमित होने का भी भय रहता है ,समझी। 

दादी आपने इतनी सारी बातें बताईं ,मैं तो भृमित हो गयी इतनी सारी बातें सुनकर मुझे तो घबराहट सी होने लगी।  

इसमें घबराने की कोई बात नहीं है ,सीधी सी बात है ,ऐसी अवस्था में हमें मन को शांत रखना चाहिए और आराम से रहना चाहिए और पूजा स्थल में ,रसोईघर में जाना वर्जित होता है ,हालाँकि अब मैं इतना ज़्यादा परहेज़ नहीं करती हूँ, किन्तु हमारे समय में तो हमारी दादी रसोईघर में भी नहीं जाने देती थी। सोचो तो ज़रा !जिस महिला पर सम्पूर्ण घर का भार होता है, उसे भी ऐसे समय में ही, छुट्टी अथवा आराम मिलता था। मुझे तो ये दिन बड़े अच्छे लगते थे कम से कम उन तीन दिनों में आराम करने को तो मिलता था, दादी मुस्कुराते हुए बोलीं -हमारे बुजुर्गों को पहले भी बहुत ज्ञान था ,बस उनका बताने का तरीका थोड़ा अलग था जैसे रसोईघर में नहीं जाना ,पूजा स्थल में नहीं जाना। इस बात को गुप्त रखना कि लड़की 'महावारी 'से होने लगी है। ऐसी कुछ चीजों के उन्होंने नियम बना दिए कि इनको फॉलो करना आवश्यक है।

 तुम अपने पसंदीदा लेखक ,अभिनेता ,कवि राजनेता को आजकल फॉलो करते हो या नहीं जबकि ये कोई नियम नहीं है इसी प्रकार उस समय महिलाओं के स्वास्थ्य और सेहत को बनाये रखने के लिए कुछ नियम बना दिए गए ,जो हम लोग आज तक फॉलो कर रहे हैं। 

वैसे ये नियम उन्होंने क्यों बनाये ?इनसे हमें क्या लाभ होता होगा ?

पहला रसोईघर में नहीं जाना ,वो इसीलिए उस समय चूल्हे पर लकड़ियों से भोजन पकाते थे ,ऐसे समय में तन का ताप भी बढ़ा रहता है ,पीठ और पेट में दर्द रहता है ,तब उन्हें ज्यादा परेशानी न हो ,कोई भारी वस्तु न उठानी पड़े इसीलिए आराम के लिए कह दिया जाता था ,उस समय पर आजकल की तरह ये ''सेनेटरी नेपकिन'' भी नहीं  होते थे ,कपड़ा प्रयोग में लाती थीं, संक्रमित होने का भय भी रहता था। 

पूजा स्थल एक पवित्र स्थल है उसकी ऊर्जा और' स्त्री की ऊर्जा' विरोधाभास पैदा करती हैं। वैसे भी ये हमारे ईश्वर हैं ,इनके सामने हम कैसे अशुद्ध रूप में जा सकते हैं ? ये तो भगवान हैं, सब समझते हैं ,इन्होंने  ही तो स्त्री  में प्रजनन क्षमता की शक्ति प्रदान की है ,जिनके कारण एक ''नया जीवन'' इस दुनिया में आता है।बल्कि मुझे तो लगता है सत के सामने तम का दबाब ज्यादा रहता होगा तभी इनको अलग रखा जाता है ,तुमने सुना होगा। जो तांत्रिक तंत्र क्रिया ,करते हैं वे कुँवारी कन्या का ऐसे समय में दुरूपयोग भी करते देखे गए हैं इसीलिए तो ऐसे समय में कन्याओं को छुपा लेते थे बताते भी नहीं थे ,किसी की भी कुदृष्टि से बचाने के लिए ऐसा किया जाता रहा होगा। 

दादी! बुआ तो कह रही थीं  -पापा और भाई को भी पता न चले। 

ठीक ही तो कह रही थी ,ये बातें सबको पता होती है ,पिता के लिए तो चिंता का विषय बन जाता है ,अब उसकी बेटी यौवनावस्था की तरफ क़दम बढ़ा रही है ,उसकी सुरक्षा का ख्याल सताता है ,उसके  कहीं कदम न बहके इसीलिए उन्हें चिंता होती है। समय रहते सब समझ आ जाता है। कुछ बातें, जानते सब हैं किन्तु फिर भी उजागर नहीं करते हैं ,'नारी की लज्जा' ,'बड़ों का सम्मान' और आदरभाव ऐसी चीजों के लिए रोकता है।वैसे ऐसी बात मुझे तुमसे कहनी नहीं चाहिए किन्तु आज बता रही हूँ ,तो कहे देती हूँ  पति -पत्नी के मध्य जो संबंध होते हैं ,सब जानते हैं किन्तु तब भी उनको छुपाया जाता है ,सबके सामने तो नहीं मिलते इसीलिए कुछ चीजें गोपनीय पर्दे में ही रहें, तो ही अच्छी लगती हैं।

 एक लड़की औरत बनने जा रही है ,इसका क्या ढिंढोरा पीटना ?हाँ ,इतना अवश्य कहूंगी ,ऐसे समय में एक -दूसरे का सम्मान करना चाहिए।एक लड़की जब बाज़ार में ये ''सैनेटरी पैड ''लेने जाएगी तो दुकानदार भी अख़बार में लपेटकर देता है। क्या वो ये बात जानता नहीं है किन्तु हमारे सम्मान के लिए वो ऐसा करता है ,क्या तुम उस पैकेट को ऐसे ही, उठाकर बाजार में टहल पाओगी ?नहीं न..... ये सिर्फ़ जो कुछ भी किया जाता है ,नारी सम्मान में ही किया जाता है ताकि किसी के अनुचित व्यवहार से उसके सम्मान को ठेस न पहुंचे।  

जब बच्चा पैदा होता है ,तो डॉक्टर के सामने सब स्पष्ट हो जाता है किन्तु हर बार डॉक्टर के सामने जाकर नग्न अवस्था में तो नहीं आयेंगे। इज्जत, शर्म तो अपनी है ,अपने लिए है ,इसमें ग़ैर का क्या जाता है ? उसके सामने तुम नंगे घूमो ,कोई मना नहीं करेगा। आजकल जो फटी जींस पहन रहीं हैं ,या फिर छोटी सी स्कर्ट पहन रहीं हैं ,उसमें और किसी का क्या जाता है ?अब सम्मानित परिवार की एक महिला अथवा लड़की में और एक वेश्या में क्या अंतर होता है ?वही इज्ज़त और सम्मान का ,उसे हर चलता -फिरता ,आता -जाता कुछ भी कह देगा किन्तु दूसरी पारिवारिक लड़की को दो बार कहने से पहले सोचेगा यदि उसने कुछ कहा और उसके परिवार को पता चला ,तो उसका बचना मुश्किल है। यह सम्मान पाना भी ,एक औरत के अपने हाथ में है। दुनिया तो मज़े लेने के लिए ही तो हैं ,ये तो तुम पर निर्भर करता है ,तुम्हें अपनी नुमाइश करनी है या इज्जत, सम्मान की जिंदगी जीनी है।

अरे !तू यहीं बैठी है ,मैंने तो सोचा था- तू चली गयी होगी ,क्या सोच रही है ?

कुछ नहीं ,आओ !चलो चलते हैं ,तूने आने में बहुत समय लगा दिया ,दोनों सखी अपनी कक्षा की तरफ बढ़ चलीं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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