Maa ke ansuon ka hisaab

शांति के बच्चे अब बड़े हो गए हैं ,वो अपनी बहु से कह रही थी - रेवा ! आज मेरा बेटा भूखा चला गया, आज तक मेरे रहते, वो कभी घर से भूखा बाहर नहीं गया था। 

तो क्या करुँ ?तुम्हारी चाकरी करने के लिए ही तो यहाँ आई हूँ ,नौकरानी नहीं हूँ। जब उन्हें जाना ही था तो मेरी थोड़ी सहायता भी तो करवा सकते थे। तुमने तो 'लाटसाहब ''पैदा किये हैं। मैं भी क्या -क्या करूं ?

थोड़ा जल्दी उठा करो !जब तुम्हें मालूम है ,बेटे के जाने का समय तय है, तो पहले उठकर तैयारी कर लिया करो !मैं नहीं करती थी ,मेरे तो चार बच्चे थे ,मुझसे कह देतीं -अपने बेटे के लिए तो अब भी कुछ न कुछ बना ही देती।  


अब मुझे कोई भाषण नहीं सुनना है,मैं अपने कमरे में जा रही हूँ ,इसलिए दूसरी खुश है तुमसे जो छुटकारा मिला हुआ है।अपने लिए तो बनता नहीं है ,बेटे को दिखाने के लिए ,उसके सामने काम करतीं ताकि वो कहे -मेरी माँ से इस उम्र में काम करवा रही हो। 

बेटा तो तब भी भूखा चला गया , अब इसे समझाने से कोई लाभ नहीं ,जितना कहूंगी ,उतनी ही ज़िरह करती रहेगी इसलिए वे चुप होकर अपने कमरे में चलीं गयीं। भूख तो उन्हें भी लगी थी किन्तु बहु के तेवर और बेटे के भूखे चले जाने पर मन दुःख से भर गया। सोच रहीं थीं -कितने परिश्रम से चारों बच्चों को पढ़ाया -लिखाया ,कभी दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा,इनके पिता के चले जाने के पश्चात ,मेरा कार्य बढ़ गया। कर्ज़ा लिया अपने ज़ेवर बेचे किन्तु बच्चों की उन्नति में कोई व्यवधान न आये यही प्रयास रहा ,बेटियां भी पढ़कर नौकरी करने लगीं और घर में सह्योग किया सभी के सहयोग से आज हम अपने घर में बैठे हैं ,बहुओं को ये सब कहाँ दिखता है ?

बच्चों ने भी माँ के बलिदान और परिश्रम को समझा और कह दिया -अब माँ को काम करने की कोई आवश्यकता नहीं है किन्तु बहुओं के ताने उन्हें चैन से कहाँ रहने देते हैं ?

घर में बच्चों के साथ रहकर भी, अपनापन सा नहीं लगता,न ही अपनी कोई बताते हैं ,न ही पूछते हैं ,ऐसा लगता है ,बच्चों के लिए पराई हो गयी हूँ। ये कैसा सम्मान दे रहे हैं ?बहुएं ताना मारती हैं ,बच्चे पूछते भी नहीं ,'माँ कैसी हो ?''सोचकर उनके आंसू आ गए। 

शाम को उन्हें क्या मालूम था ?बहु ने बेटे को क्या सिखाया ,क्या नहीं ? माँ के कमरे में आते ही बेटा बोला -''बैठकर चैन से दो रोटी खाई नहीं जाती ,आपको क्या जरूरत है ,उससे कुछ कहने की। मैं खाऊं न खाऊं ,आपको तो रोटी मिल रही है। उसकी बातें उनके कलेज़े को चीरती चली गयीं और उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। अब ये आंसूं किसलिए ?

 ये बातें बाहर खड़ी उनकी बेटी ने सुन ली जो सुबह से बड़े भाई के पास थी और अब छोटे भाई से मिलने  आई थी। अंदर आते हुए बोली -तुम इन आँसुंओं को क्या समझोगे ?क्या इन आंसुओं की कीमत तुम लगा सकते हो ?वो माँ जिसने कभी गरीबी में भी अपने  लाल को भूखा नहीं सोने दिया ,क्या उसकी ममता को चोट नहीं पहुंची होगी ?उसका बेटा आज भूखा चला गया। क्या तुम इनके'' आंसुओं का हिसाब ''दे सकते हो ? जब तक ये जिन्दा है ,इनका एक भी बालक भूखा अथवा परेशान रहे क्या इनको दर्द नहीं हुआ होगा ?बल्कि ये तब खुश होतीं ,जब तुम अधिकार से कहते -माँ खाने के लिए कुछ बना दो !ये परेशान होतीं किन्तु उनका बेटा घर से बाहर भूखा नहीं गया ,इन्हें तसल्ली होती। 

ये कोई शो पीस नहीं हैं ,जो तुम उन्हें अपने साथ रखकर एहसान जतला रहे हो ,ये इंसान हैं ,कभी दो पल के लिए भी इनके पास बैठकर इनसे बातचीत की है ,इनसे पूछा है -मम्मी ! कैसी हो ?अपनी समस्याओं में कभी उनसे सलाह मांगी है और अब पूछते हो ,ये आंसू किसलिए ?  इनका तुम क्या हिसाब रखोगे ? माँ के लिए तो अपने बच्चे सुख से खुश रहें यही बहुत है। भाभी तो दूसरे घर की है किन्तु तुम तो इनके अपने हो ,अपनी समस्याओं से बाहर निकल उन्हें थोड़ा एहसास दिलाओ !आज भी हमें माँ की जरूरत है ,इन्हें एक कमरा देकर बुढ़ापे के दिन गिनने के लिए मत छोडो !वो भी घर की सदस्या हैं ,ये उनका अपना घर है ,उन्हें एहसास तो होना चाहिए। हमने तो विषम से विषम परिस्थिति में अपनी माँ को रोते नहीं देखा बल्कि वो और मजबूत हो जाती थीं। 

आज बेटे को एहसास हुआ ,उनके ये आंसू उसी के कारण आये हैं ,तब उसने अपनी माँ से क्षमायाचना की  माँ और बहन के साथ बैठकर भोजन किया और अपनी बहन से बोला -''इंसान इस जीवन के चक्रव्यूह में कभी -कभी फंसकर अपनी राह भटक जाता है ,इसी तरह आ जाया कर..... 

क्यों ?क्या मेरा घर- परिवार नहीं है ,तुम्हें समझाने के चक्कर में, मैं कैसे राह भटक सकती हूँ ?मुस्कुराते हुए बोली ,उसकी बात का आशय समझ दोनों हंसने लगे।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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