Khoobsurat [part 5]

शिल्पा ,प्रीत और रिया जब वो लोग ''कला विभाग '' में घुसती हैं ,तब वहां का वातावरण भी कलात्मकता से परिपूर्ण लगा, कुछ छात्र अभी भी वहां बैठे कुछ चित्र बनाने का अभ्यास कर रहे थे। कुछ मिटटी की आकृतियां बनाने में तल्लीन थे। शायद, इन्होंने  शीघ्र ही दाख़िला ले  लिया होगा। प्रीत और रिया आश्चर्य से बोलीं - क्या, अभी से पढ़ाई शुरू हो गयी ?

नहीं ,ये कुछ बच्चे पहले से ही, मुझसे कला की बारीकियां सीख़ रहे थे ,उनके पीछे खड़े एक महाशय ने जबाब दिया।  


जी ,लड़कियों ने पीछे मुड़कर देखा,एक अधेड़ उम्र व्यक्ति ,उसकी दाढ़ी थोड़ी सफेदी लिए थी ,गुलाबी रंग की कमीज ,पेट भी थोड़ा  बाहर को निकला होने के पश्चात भी ,उनका व्यक्तित्व शांत और आकर्षक लग रहा था   

 हाँ ,जी बताइये !आप लोग यहाँ किसलिए आईं हैं ? उन्होंने मुस्कुराते हुए सहज स्वर में बड़ी ही कोमलता से पूछा और धीरे -धीरे चलते हुए अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए।

 तीनों ही समझ गयीं ,'' मनमोहन शर्मा''यही होंगे किन्तु फिर भी पूछ लेना ही बेहतर होगा, यही सोचकर शिल्पा बोलीं - सर !हमें ''मनमोहन सर ''से मिलना था,उनके हस्ताक्षर चाहिए थे।  

ओह !आपको फॉर्म पर मेरे हस्ताक्षर चाहिए ,क्या आप भी ,कला से स्नातक करना चाहती हैं ? आपने यही विषय क्यों चुना ?

जी ,ये मेरा शौक है ,शिल्पा एक आशा से उनकी तरफ देखते हुए बोली। 

उन्होंने उसकी तरफ देखा और प्रीत और रिया से बोले -आप लोग !

जी, हम इसकी सहेलियां हैं ,आप क्या कर रहीं हैं ?उनके इस तरह धीरे और सहजता से बोलने पर लड़कियों को हंसी आ रही थी किन्तु अपने को रोके हुए थीं। 

सर !अभी मैंने डॉक्टरी के लिए 'नीट 'की परीक्षा दी है,

 और मैंने अभियंता बनने के लिए 'गेट ''के इम्तिहान दिए हैं, प्रीत ने उसकी लाइन को पूरा किया। 

क्या तुम लोगों की दिलचस्पी 'कला ''में नहीं है ?अध्यापक ने उनके चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा।

जी ,नहीं सर !मुझे ही कला में दिलचस्पी है ,आप मेरे फॉर्म पर हस्ताक्षर कर दीजिये ,वरना मुझे देर हो जाएगी शिल्पा जल्दबाजी दिखलाते हुए बोली। 

हाँ ,हाँ , अभी करते हैं , पिछली कक्षा में तुम्हारे, कितने नंबर थे ? उसके फार्म को देखते हुए अध्यापक ने पूछा।

 सर ! इस फॉर्म में सब लिखा हुआ है। 

 क्या तुम जानती हो ?' कला', इतनी आसान नहीं है, यह एक साधना है , अपने हृदय के भाव अथवा जो तुम महसूस करते हो, उसको कागज पर उतारना इतना आसान नहीं है। ऐसा नहीं है, कि आज दिल किया, तो कला ले ली। जब परिश्रम करना पड़ा, तो मैदान छोड़कर भाग गए। 

सर ! ऐसा कुछ भी नहीं होगा , मेरी शुरू से ही कला में दिलचस्पी रही है इसीलिए मैं चाहती हूं अपने शौक को ही, अपनाकर आगे बढ़ूँ। 

ये तो अच्छी बात है ,बहुत अच्छा कह रही हो, ऐसा ही होना चाहिए अब तुम इसे की देख लो ! यह लड़की, जिसने इतनी खूबसूरत पेंटिंग्स बनाई हैं , इसने कला को, कितनी बारीकी से समझा है ?

सर !कुछ लोग, पैदाइशी'' हुनरमंद''  होते हैं, उनके खून में ही, उनका हुनर छुपा होता है ,जैसे किसी को कह देते हैं -'गॉड गिफ्टेड' है बस उसे उस कला को निखारना आना चाहिए। 

नहीं, ऐसा नहीं है, इस लड़की ने मुझसे ही कला की बहुत सी बारीकियां सीखी हैं। 

सर !यह आप क्या कह रहे हैं ? आश्चर्य से शिखा ने पूछा -क्या आपने उसे देखा है ?

हां हां मेरे पास ही शिक्षा ग्रहण करती थी। 

फिर तो बहुत ही अच्छा होगा, यदि यह इतनी ऊँची कलाकार बन सकती है, तो आपकी छत्रछाया में, मुझे लगता है मैं भी किसी मुकाम पर पहुंच ही जाऊंगी।' मनमोहन सर' ने शिखा की तरफ देखा फिर उसके हाथों की तरफ देखा और बोले -कला का हुनर तो तुम में है, यदि तुम्हें किसी भी तरह की कोई भी परेशानी हो, तो तुम मेरे पास आ सकती हो। 

जी सर! पहले आप यह हस्ताक्षर कर दीजिए , वरना मुझे यहां दाखिला ही नहीं मिलेगा और मैं आपकी शिक्षा से महरूम रह जाऊंगी। 

हां हां अवश्य ! कहते हुए उन्होंने, अपनी ग़ुलाबी कमीज की  जेब से पेन निकाला और हस्ताक्षर कर दिए, उनके हस्ताक्षर करते ही , तेजी से उनके हाथों से, उसने वह फॉर्म लिया और बोली -सर! मैं शीघ्र ही आपसे मिलती हूँ , कहते हुए तीनों तेजी से कमरे से बाहर निकल गयीं । 

यार ! तू इसे कैसे झेलेगी ? कितने आराम से बोलता है, इतनी देर में तो ट्रेन ही छूट जाएगी। ऐसा लग रहा था जैसे इसे कोई काम ही नहीं है , घंटे भर के लिए बैठ गए हैं। वह तो अच्छा हुआ, शीघ्र ही शिखा ने उनके हाथ से फॉर्म ले लिया वरना अभी उसे उलटते -पलटते रहते। चलो ! जो भी झेलना होगा यही झेलेगी, हंसते हुए प्रीत बोली। 

मुझे तो इस बात पर ताज़्जुब  हो रहा है, कि ये दिन- दहाड़े कितना झूठ बोल रहे हैं ?

क्या मतलब ?

मतलब यही कि आज तक तमन्ना को किसी ने नहीं देखा और यह कहते हैं कि मैंने , उसको पेंटिंग्स सिखाई हैं कला सिखाई है इनके द्वारा शिक्षण ग्रहण करके ही वो  इतनी बड़ी कलाकार बनी है। 

तुझे क्या मालूम ? कि वह झूठ बोल रहे हैं,तूने क्या' तमन्ना' को देखा है ?

देखा तो नहीं है, किंतु इतना अवश्य कह सकती हूं कि उसे तो इन्होंने पेंटिंग्स नहीं सीखाई होगीं। 

ऐसा ही तो होता है बड़े-बड़े लोगों की पेंटिंग्स लगाकर कह देते हैं -कि ये हमारे शागिर्द थे इन्हें हमने सिखाया है तभी तो उनके पास छात्र आएंगे मुझे तो लगता है ,ये कॉलेज में कम सिखाते होंगे और घर पर ज्यादा सिखाते होंगे और वही छात्र यहां आकर सीख रहे हैं।

 खैर जो भी है, झेलना तो मुझे  ही पड़ेगा, देखो! हमारे साथ क्या हो रहा है ? हम चार सहेलियाँ हैं और चारों के शौक अलग-अलग हैं , राहें अलग हैं , मंजिल अलग है, फिर भी हम दोस्त हैं। वही तो डर समाया हुआ है। न जाने मधुलिका कहां दाखिला लगी ? कॉलेज ज्वाइन भी करेगी या नहीं या फिर विवाह करके सीधी ससुराल में ही' ट्रेनिंग' करेगी कहते हुए शिल्पा और अन्य सहेलियां हंसने लगीं।

शिल्पा तुरंत ही काउंटर पर गई और उसने क्लर्क को फॉर्म दिया, फार्म जमा करने के पश्चात वे तीनों घर के लिए निकली। 

उसकी कला में कितनी बारीक़ी है, तुमने उसकी वो पेंटिंग देखी,' विरह वेदना' उसने कितने अच्छे से दर्शाया है, चेहरे के भाव, देखकर ऐसा लग रहा है जैसे इसके हृदय की पीड़ा ,उसके चेहरे पर आ गई है यही तो कलाकार की असली कला  है। कुमार तो तमन्ना की पेंटिंग्स की जितनी भी प्रशंसा करें, उतना ही कम था, उसकी पेंटिंग्स  के करीब बैठकर उसकी मनःस्थिति ही अलग हो जाती थी। ऐसा लगता था, जैसे वह पेंटिंग्स की दुनिया में खो जाना चाहता है। काश ! एक बार वह मुझे मिल जाए। बस में बैठे हुए कुमार ने अपने दोस्त विभोर से कह रहा था। बस की पिछली सीट पर शिल्पा पहले से ही बैठी हुई थी, वह कॉलेज की बस, नियत समय पर आती जाती थी।

 शिल्पा, तमन्ना की पेंटिंग्स के प्रति, कुमार का इतना लगाव देखकर, अत्यंत प्रसन्न होती है। वह उससे बात करना चाहती है किंतु कभी ऐसा मौका ही हाथ नहीं लगा। एक दिन बस से उतरते समय, शिल्पा की नजर 'कुमार' से टकराई थी। उसे कुमार देखने में बहुत ही अच्छा लगा किंतु कुमार ने उसे देखकर मुंह फेर लिया। शिल्पा को बहुत बुरा लगा। उसके पश्चात उसने, उससे कोई बात नहीं की, न  ही, प्रयास किया। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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