Shaitani mann [part 136]

डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी ने, नितिन के मन में, अपने सम्मोहन से सौम्या के प्रति घृणा भरने के साथ-साथ, अन्य लड़कियों के प्रति भी उसके मन में घृणा भर दी थी, हालांकि वह चेतन मन से ऐसा कुछ भी करना नहीं चाहता था किंतु डॉक्टर ने, अपने ज्ञान का, उस पर एक प्रयोग किया और वह इस प्रयोग में वह सफल भी रहा। नितिन के मन में, लड़कियों के प्रति घृणा भर गई थी, लेकिन वह घृणा तब तक ही थी जब तक वह उसके सम्मोहन में रहता। जब वह शिमला गया, तब वहां उसे एक लड़की दिव्या मिली, जो नितिन के व्यवहार से, प्रभावित होकर उससे प्यार करने लगी और उससे विवाह के सपने सजाने लगी। जब यह बात दिव्या ने  नितिन से बताई।


 तो नितिन उसे जंगलों की तरफ ले जाने लगा। वो भी उसके साथ चल दी क्योंकि इसने, उसका विश्वास जो जीत लिया था। कुछ आगे जाने पर, यह बात दिव्या को कुछ अजीब लगी, और उसने नितिन से पूछा -हम कहां जा रहे हैं ?

एकान्त में सगाई करेंगे ,भीड़भाड़ में एक -दूसरे से जो कहना और सुनना चाहते हैं ,उन दिल की भावनाओं को इतने लोगों में ,मैं उन्हें व्यक्त नहीं कर पाउँगा ,ये ज़िंदगी हमारी -तुम्हारी है ,तो ये निर्णय भी हमारा होना चाहिए कि हम अपने इन पलों को कैसे व्यतीत करना चाहते हैं ?कहते हुए ,उसने दिव्या को अंगूठी का वो डिब्बा दिखाया जो एक रंगीन चमकीली पन्नी में बड़े अच्छे तरीक़े से सजाया गया था। इससे दिव्या को उस पर विश्वास भी हो गया ,तब नितिन उसे घने जंगल में बनी एक कुटिया में ले गया। 

बहला -फुसलाकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाये और उसे सुंदर सी अंगूठी पहनाई ,अब तक सब सही चल रहा था ,वो भी अपने को बहुत ही भाग्यवान समझ रही थी। तब नितिन ने उसे वहां बंद किया और बाहर आ गया। अब तक वो समझ नहीं पा रही थी ,इसके मन में क्या चल रहा है ?तब वो दुबारा आया और तब फिर से उससे संबंध  बनाने चाहे ,अबकी बार दिव्या ने, इसका विरोध किया और घर जाने के लिए कहा उस समय इसकी सोच और रूप बिल्कुल बदल गया था ,कहते हैं ,न.... ''इंसान की जैसी सोच होती है, वैसा ही वो लगने लगता है। ''उसका वह रूप देखकर दिव्या डर गयी ,उस लड़की को विश्वास नहीं हो रहा था कि इसका ऐसा रूप भी  हो सकता है। इसका'' शैतानी मन''इस पर हावी हो चुका था ,मैंने तो बस इसके उस मन को जाग्रत किया ,जो इंसानी रूप में ,भोला -भाला बना बैठा था। भोलेपन का चोला ओढ़ रखा था ,असलियत में तो इसका मन ''शैतानी मन ''बन चुका था ,जो मौक़े की तलाश में बाहर आना चाहता था।

ये सब झूठ है ,कुत्ते !ये सब तेरे कारण ही हुआ ,जब मैं बाहर आया तो तूने ही तो कुछ किया जिसके कारण मेरी सोच एकदम से बदल गयी।   

हाँ ,मैंने माना ,मैंने किया ,तेरी उसी सोच को जाग्रत किया जो तू चाहता था। इसीलिए तो कहते हैं -इंसान ही अपने आपको ही ठीक से नहीं समझ पाता है ,यही इसके साथ भी हुआ ,मौका मिलते ही इसके मन का 'शैतान' बाहर आ गया। उस जंगल में ,उस लड़की की चीखें कोई सुनने वाला कोई नही था ,इसने उसका बार -बार बलात्कार किया ,इसके पश्चात इसने उसके जिस हाथ में अंगूठी पहनाई थी ,तब इसने उसका वो हाथ काट डाला।  सौम्या के घने काले बाल ,सोचकर इसे और अधिक क्रोध आया तब इसने उस्तरे से दिव्या के बाल उतारे ,उसे 'कुरूप' बना दिया और उसके टुकड़े -टुकड़े करने लगा ,वो उस जंगल में चीखती रही कोई सुनने वाला नहीं था।  जब वो मर गयी ,तब इसने उसके टुकड़े इधर -उधर फ़ेंक दिए। 

मामा जी !आपको कैसे पता ?कि इसने इतना सब किया ?

मैंने तो सिर्फ इतना कहा -'इस मन की पूर्ति कर लो ! जो ये मन चाहता है ,करो !''तब मैंने जाना , इसका मन कितना विकृत है ? जब इसे मैंने अपने सम्मोहन से दूर किया ,उस लाश और उसके टुकड़ों को देखकर ये ड़र गया या डरने का अभिनय किया,मैं नहीं जानता किन्तु जब मैंने इससे पूछा -अब कैसा लग रहा है ?तो इसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, एक सुकून था।  ये चाहता तो......  तब भी तो पुलिस में जा सकता था किन्तु ये नहीं गया और उन डुकड़ों को अलग -अलग जगह पर फ़ेंक आया।

यह आदमी की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कौन सा रास्ता चुनता है ? यह मात्र मेरा सम्मोहन ही नहीं था इसके अंदर की अभिलाषा भी थी , इसके अंदर का शैतान इससे सब करवा रहा था। जब यह सम्मोहन से बाहर आया तो यह चाहता था तो अपनी गलती पर पछतावा भी कर सकता था आगे से इससे कोई गलती ना हो , ऐसा भी प्रयास कर सकता था लेकिन इसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। हां मैं मानता हूं, मैंने इसे सम्मोहित किया लेकिन यह भी चाहता था, अपनी हवस और इच्छापूर्ति चाहता था, तो यह सब इसने  होने दिया। मन  की इच्छाएं कभी पूर्ण नहीं होतीं , इसका मन'' शैतानी मन'' बन चुका था। नशा करना, गलत कामों में सहयोग करना ,ये सब तो ये बिना सम्मोहन के भी करता आ रहा था , इसीलिए तो सौम्या ने इसके  रिश्ते से इनकार कर दिया होगा , तब इसके अंदर का शैतान जाग रहा था और यह उसकी संतुष्टि चाहता था, बहाना कोई भी हो किन्तु इसका 'शैतान 'संतुष्ट हो रहा था। 

मामा जी ,इसने आगे क्या किया ?क्या ये वापस घबराकर शिमला से भागा नहीं। 

कैसे भागता ?जब शैतान के मुख खून लग चुका था इसीलिए इसने अपनी छुट्टियां बढ़वाईं ,कहते हुए उन्होंने चुटकी बजाई और नितिन से पूछा -क्यों, मैं झूठ बोल रहा हूँ ?तू स्वयं ही चाहता था कोई और लड़की तेरे चंगुल में आये। ये सुकून ढूंढने नहीं अपने' मन के शैतान 'को संतुष्ट कर रहा था। तब इसने अपना रूप बदला और एक नए शिकार की तलाश में आगे बढ़ गया। उसके बाद रुबीना ,परी और भी न जाने किस -किसने इसके हाथों अपनी जान गंवाई।

 तुम ये सब क्या कह रहे हो ?मैं इसके विषय में कुछ नहीं जानता नितिन चिल्लाया ,जरा एक बार तुम मेरे हाथ खोल दो तब मैं तुम्हें बताता हूँ ,मैं क्या चीज हूँ ?

तुम क्या चीज हो ?मैं जानता हूँ ,मेरी गलती ये है ,मैं तुम्हारी असलियत बाहर लाया हूँ। 

ये सब तुम्हारा ही किया धरा है ,और तुम !रचित की तरफ देखते हुए बोला - तुम इस षड्यंत्र में शामिल थे और तुम दोनों मुझे फंसाना चाहते हो ,जो भी कहानी तुम्हारे मामा ने सुनाई ,इसने ही ऐसा किया होगा। 

यदि मैंने ऐसा किया तो बताओ !तुम दो माह से, वहां क्या कर रहे थे ?अपनी पढ़ाई छोड़कर ,कॉलिज का छात्र ,जिसके विषय में उसके घरवालों को भी मालूम नहीं है , शिमला में क्या कर रहा था ?


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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