रचित और उसके मामा अब निश्चिन्त हो चुके थे ,उन्हें लगता था ,नितिन पर अब केस चल रहा है ,शीघ्र ही उसे सजा भी मिल जाएगी। अदालत में केस हत्या और बलात्कार का चल रहा था किन्तु नितिन के वकील का कहना था -ये हत्याएं उसने अपने पूरे होशो -हवाश में नहीं की हैं,उसे तो स्मरण भी नहीं कि उसने कब क्या किया है ?
यह क्या बात हुई ?क्या ये नशा करता है ?जज़ ने पूछा।
जी नहीं ,इसने आज तक नशा नहीं किया ,वकील के अनुसार, इतना झूठ तो बोलना ही पड़ता है। वैसे नितिन के परिवार में भी इसकी किसी को जानकारी नहीं थी।
मामा जी !अब मुझे लगता है ,मुझे अपने घरवालों से मिलने जाना चाहिए।
वहां जाकर क्या कहोगे ?
कह दूंगा ,मेरे साथ एक दुर्घटना हो गयी थी ,होश में नहीं था ,जब होश आया तो वापस आ गया।अच्छा मामा जी ! एक बात बताइये !आप दूर रहकर भी नितिन को सम्मोहित कैसे कर लेते थे ? जब हम ट्रेन से शिमला जा रहे थे ,मैंने देखा ,ये अपने फोन से जुड़ा रहता है। कभी मैसेज देखता है ,कभी किसी का फोन आता है। आज के समय में ,फोन ही एक ऐसी चीज है जिसे व्यक्ति हमेशा अपने पास और साथ रखना चाहता है। तब ट्रेन में मैंने ,उसे एक विशेष धुन सुनाई ,वो धुन उसे बहुत पसंद आई ,और उसी के माध्यम से मैंने उसे सम्मोहित कर लिया। मैंने चोरी से उसका नंबर पहले ही ले लिया था। अब जब भी मुझे उससे कुछ कार्य करवाना होता ,मैं उसे फोन करता और जब वो फोन उठाता पहले उसी धुन को सुन सम्मोहित हो जाता ,उसके पश्चात मैं जो कुछ भी उससे कहता वो करता।
सुनाइए तो सही ,वो विशेष धुन क्या है ?किन्तु मुझे सम्मोहित मत करना हँसते हुए रचित कहता है।एक दिन रचित सोचता है - क्या इस धुन का प्रयोग करके देखा जा सकता है ,उसने अचानक ही नितिन के फोन पर वो धुन बजा दी ,फोन तो उसके पास था ही नहीं किन्तु पुलिसवालों को जरूर एहसास हुआ ये विशेष धुन क्यों है ?और बड़ी ही अजीब है, उसका पता लगाने का प्रयास किया और उस नंबर की भी तलाश की गयी ,कहाँ से वो फोन किया गया है ?
दूसरी तरफ रचित का पीछा करते हुए ,पुलिसवालों को उसके मामा के गुप्त स्थान का आखिर पता चल ही गया किन्तु किसी ने भी यह नहीं दर्शाया कि उन्हें उसके गुप्त स्थान की जानकारी हो चुकी है ,उधर फोन पर भी यही स्थान दर्शा रहा था। कुछ पुलिसवाले साधारण वेश में वहां आने जाने लगे। डॉक्टर के चमत्कार देख रहे थे।
एक दिन अचानक न जाने कहां से नितिन ,रचित और उसके मामा के सामने आ गया वे लोग तो निश्चित थे कि वह अब जेल की हवा खा रहा है। नितिन को देखकर बुरी तरह चौंक गए और बोले -तुम यहां, कैसे ?
नितिन क्रोध से काँप रहा था उसके कपड़े देखकर लग रहा था,जैसे वो जेल से भागकर आया है। उसकी आंखें लाल थी, बाल बिखरे हुए थे, तब वह बोला -मैंने दस हत्याएं की हैं, दो हत्याएं और सही , इसलिए दो हत्याओं का इल्जाम अपने ऊपर और लेने आया हूं। 10 हत्याएं हों या फिर एक दर्जन सबका परिणाम तो मौत ही है, सबके लिए अलग-अलग सजा तो नहीं मिल सकती।
देखो ! तुम यह क्या कर रहे हो ? रचित सोफे पर बैठा हुआ था अचानक खड़ा होकर बोला - तुमने जब इतनी हत्याएं की हैं, उनका परिणाम तो तुम्हें भुगतना ही होगा रचित ने जवाब दिया।
तभी तो मैं कह रहा हूं, इस जमीन का भार कम करना चाहता हूं , और दो हत्यारे कम करना चाहता हूं।तुम लोग भी तो मेरे साथ, इन हत्याओं में शामिल थे फिर सजा में अकेला ही क्यों भुगतूं ?
हमने कोई हत्या नहीं की, डॉक्टर अकड़ते हुए नितिन से बोला।
हत्या करना, हत्या की साज़िश करना, सब अपराध में ही शामिल होते हैं। तुम लोगों ने, मेरे विरुद्ध साज़िश रची थी। मुझे हत्यारा साबित करना चाहते थे , मैं जिस समय मानसिक रूप से कमजोर था , इस समय तुमने मेरी कमजोर नब्ज को पकड़ा , और मेरी मनःस्थिति का लाभ उठाया इसलिए मैं अब तुम्हें भी नहीं छोडूंगा। कहते हुए वह उनकी तरफ झपटता है, तभी डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी में कुछ ऐसा किया , जिसके कारण, नितिन एकदम शांत हो गया। नितिन अब उसके विरुद्ध कुछ भी नहीं कर पा रहा था। वह चाहता था कि अपने अपराधियों को दंड दे जिन्होंने मुझे इस कार्य में फंसाया है, उन्हें दंड मिले किंतु अब उसके हाथ में कुछ भी नहीं था।
तब डॉक्टर ने रचित से कहा -यह अभी भी मेरे वश में आ सकता है, इसका सम्मोहन टूटा नहीं है, मैं जब चाहूं, इससे जो चाहूं करवा सकता हूं, तुम इसे रस्सी से बांध दो!
इसे रस्सी से बांधने से क्या होगा, मामा जी !
हम इसे पुलिस के हवाले भी तो नहीं कर सकते, हम स्वयं ही पुलिस से छुपे हुए हैं किंतु एक बात समझ में नहीं आई, जिस बात की जानकारी पुलिस को भी नहीं थी , वह इसे कैसे हुई ? इसे कैसे पता चला? कि हम यहां पर छुपे हुए हैं। यह सोचने का समय नहीं है भांजे ! तुम इसे बांध दो !
नितिन को बांधकर, डॉक्टर उससे कहता है -हमें मारने चला था , हम क्या बेवकूफ हैं ? इतने दिनों से तेरे विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे थे। तू तो मेरे सम्मोहन में तभी आ गया था, जब पहली बार, उस मिट्टी के घर में आया था। मैं जब भी घंटी बजाता तेरे कानों में सुनाई पड़ती, कभी तेरे फोन से, तो कभी स्कूल की घंटी, किसी न किसी बहाने से अपना कार्य करवाने के लिए मैं, तुझे बुला लेता। रातों-रात किसी को ''कानों -कान खबर भी नहीं होती थी ,'' ये मेरे वश में था, इसे ही नहीं मैंने इंस्पेक्टर को भी यह बात बताई थी, चेतन और अचेतन दो मन होते हैं - सौम्या के दुख के कारण यह परेशान तो था, उससे बदला भी चाहता था, किंतु जागृत अवस्था में ये ऐसा कभी नहीं करता, ये अपने मन को परेशान और दुखी करता किंतु किसी की हत्या नहीं करता इसीलिए तो मैंने इसके अचेतन मन को पढ़ा और इससे पूछा -तू क्या चाहता है ?क्या तू उस धोखेबाज़ से बदला नहीं लेगा ,जिसने तुझे इतना बड़ा धोखा दिया और किसी से सगाई करके बैठ गयी।
उसका वो हाथ,तुझे काट डालना चाहिए ,जिसमें किसी अन्य के नाम की अंगूठी है। इस तरह मैंने इसके मन में घृणा भरनी आरम्भ की। आज से जो भी लड़की तुझसे प्यार का ढोंग करेगी ,उसके हाथ काट डालना और उसे कुरूप बना देना। यह बात मैंने ,इसके मन में गहरे से बैठा दी थी। थोड़ी बहुत कसर रही तो ट्रेन में पूरी कर डाली। तब ये पलाश बन दिव्या से मिला,एक सप्ताह दोनों साथ रहे प्यारभरी बातें करते रहे ,उसे लग रहा था -ये दुनिया का सबसे अच्छा इंसान है ,इसके साथ मैं सुकून से अपनी जिंदगी बिता सकती हूँ। तब उसने इससे सगाई के लिए कहा ,सगाई का नाम आते ही ,इसके मन का ज़हर बाहर आ गया और एक दिन ये उसे लेकर एक जंगल में लेकर आ गया।
हम यहाँ क्यों आये हैं ?दिव्या ने पूछा।