Khoobsurat [part 3]

शिल्पा ! ये वर्ष तो हमारा स्कूल का आख़िरी वर्ष है ,इसके पश्चात तो हम लोग कॉलिज में होंगे ,सोचकर ही मेरे मन को कितनी ख़ुशी हो रही है ? कॉलिज के वो दिन.... जिसकी इच्छा हर छात्र को होती है,स्कूल के मैदान में पेड़ के नीचे बैठी दो सखियाँ आपस में बतला रहीं थीं। 

 हाँ, ये बात तो है किन्तु स्कूल के दिनों का भी, अपना मज़ा है। कॉलिज जाने के स्वप्न तो बाद में देखना ,पहले यहाँ से तो निकलें।  अच्छा !तूने आगे क्या करने का सोचा है ?

देख, मुझे तो 'गणित' पसंद है ,पापा भी कह रहे हैं ,कह क्या रहे हैं ?उनकी इच्छा है ,मैं इंजीनियर बनूँ ,उनके साथ -साथ मेरा भी यही सपना है, स्कूल से निकलने के बाद तू क्या करेगी ?प्रीत ने पूछा। 


अभी कुछ भी नहीं कह सकती ,न जाने ज़िंदगी किस मोड़ पर ले जाये ?बनना तो कुछ चाहती हूँ किन्तु न जाने किस राह मुड़ना पड़ जाये। 

तू भी क्या, दार्शनिकों वाली बातें करती है ? जीवन में क्या बनना है ?वो तो हम पर ही निर्भर करता है जिस राह चलेंगे ,उसी राह पर रास्ते खुलते चले जायेंगे। 

तेरी बात अपनी जगह सही है किन्तु कई बार इंसान बनना तो कुछ चाहता है ,बन कुछ और जाता है। 

किसे क्या बनना है ?मैं भी तो सुनूँ उन दोनों के बीच मधुलिका आकर बैठ गयी। 

तू अब तक कहाँ थी ?हम तो इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे अगले साल तो कॉलिज में होंगे ,किस कॉलिज में दाखिला लेना है और किस विषय में आगे बढ़ना है ?

अरे !मैं इतना सब नहीं सोचती ,पहले इस स्कूल की परीक्षा तो पास हो जाये। 

उसके बाद ,तब भी तो सोचना पड़ेगा ,क्या करना है ,क्या नहीं ? प्रीत पूछा। 

सोचते हुए ,मधुलिका बोली -पहले तो इम्तिहान दूंगी और तब आराम करूंगी और आराम करते -करते सोचूंगी ,विवाह करना है या फिर आगे पढ़ाई करनी है ,कहते हुए  हंसने लगी। 

क्या ??दोनों आश्चर्य से बोलीं - तू, इतनी जल्दी विवाह करने की सोच रही है। 

क्यों ?मैंने क्या कुछ गलत कह दिया, तुम लोग तो ऐसे चौंक रही हो , जैसे मैं कोई विशेष कार्य करने जा रही हूं यह तो सभी करते हैं। हमारी माँओं ने भी शादी की थी या नहीं ,तभी तो उनके, मेरे जैसी सुंदर और तुम जैसी होनहार लड़कियां पैदा हुईं। मेरा तो यही सपना है -''प्यारा एक बंगला हो बंगले में गाड़ी हो,गाड़ी में मेरे संग बलमा अनाड़ी हो। ''अरे !जब तुम्हारे जीजाजी कमाएंगे तो उस कमाई को संभालने वाला भी तो कोई चाहिए या नहीं। जब तक तुम गृहस्थी की दुनिया में कदम रखोगी ,तब तक मैं उस दुनिया की अनुभवी महिला बन चुकी होंगी। 

सही कह रही है ,तुम दोनों अनाड़ी के ऐसी ही अनाड़ी औलादें होंगी,कहते हुए दोनों हंसने लगीं।  

ए.....  तुम दोनों मुझसे और मेरी खुशियों से जलो !मत  तुम इंजीनियर बन जाओ !डॉक्टर बन जाओ ! समाज सेवा करो ! लेकिन यह कार्य तो सभी को करना होता है तो फिर पहले ही क्यों न कर लिया जाए ? क्यों कमाई -धमाई के चक्कर में पड़ना ,कोई कमाऊ सा लड़का ढूंढो और 'बिंदास सेटल' हो जाओ !मैं तो किसी के'' दिल की रानी''बनना चाहती हूँ ,मुझे नौकरी -वोकरी करना पसंद नहीं है। रानी बनकर रहना चाहती हूँ ,रानी !

ओ !महारानी अपने सपनों से बाहर आ जाओ !पहले कम से कम इस स्कूल से तो बाहर निकलो !

मैंने कब मना किया ? मुँह बनाते हुए मधुलिका बोली -मुझे चिंता नहीं ,पास तो हो ही जाउंगी। वैसे रिया भी डॉक्टर बनने के सपने देख रही है ,मुझे तो इस बात की ख़ुशी है ,मेरे बच्चों की मौसियां कोई डॉक्टर ,कोई इंजीनियर बन जाएगी। शिल्पा !तू भी बता दे ! तू क्या बनेगी ? वरना कल को कहेगी ,अपने बच्चों से मेरा परिचय नहीं करवाया कहते हुए हंसने लगी।

 वे दोनों मधुलिका को देख रहीं थीं ,तू जीवन के प्रति तनिक भी संजींदगी से नहीं सोचती है ज़िंदगी को तूने मज़ाक समझ रखा है शिल्पा बोली। 

अरे ज़िंदगी के विषय में इतनी गहराई से क्या सोचना ?जिसे हमने ठीक से देखा ही नहीं,तुम दोनों को मेरी बातें मज़ाक लग रहीं हैं किन्तु मैं सच बोल रही हूँ।'' गृहस्थ जीवन'' भी तो एक रोज़गार ही है ,जिसको तमाम उम्र निभाना होता है। उसमें अनेक रिश्ते होते हैं ,जिनको अपने कौशल से संवारना होता है ,हालाँकि इन रिश्तों से कोई खुश नहीं होता किन्तु यहीं तो हमें अपना कौशल दिखाना है। सच बताऊँ तो ये सबसे कठिन कार्य है ,इससे सब बचकर भागते हैं। अपने रिश्ते और अपनों को संभालना ही सबसे कठिन कार्य होता है,कहते हुए उसकी आँखे नम हो आई ,अचानक ही मुस्कुराते हुए बोली -तुम देखना ,आज के समय को देखते हुए ,आगे आने वाले समय में ,इस रोज़गार की बहुत क़ीमत और सम्मान होगा। इंजीनियर ,डॉक्टर ,पुलिस में ,न जाने लड़कियां कहाँ -कहाँ होंगी ?किन्तु घरों में नहीं होंगी। जब लोग ,एक घरेलू, पारिवारिक लड़की की मांग करेंगे ,उसके लिए तरसेंगे कि हमारा घर बस जाये। कोई अपने प्यार से इस घर को संवार दे। ''समझी !अब मैं जाती हूँ ,मेरी अर्थशास्त्र की क्लास है ,तुम्हारी तरह खाली नहीं हूँ कहते हुए वहां से उठकर चली गयी। 

इसे क्या हुआ ?इसकी कैसी सोच हो गयी है ?प्रीत ने शिल्पा से पूछा। 

इसके घर का वातावरण ही ऐसा चल रहा है,क्योंकि इसकी भाभी....  और  तुम देखना आगे चलकर तुम्हें मैं दिखा दूंगी ,यही नौकरी करती नजर आएगी।

आजा ,चल !हम भी चलते हैं ,हमारी भी 'रसायन शास्त्र ''की क्लास भी है। 

हाँ ,चलो !

जीवन में जिसे जो बनना होगा ,जो हम सोचते हैं किन्तु ये जरूरी तो नहीं, वैसा ही हो। ये उम्र ही ऐसी होती है ,आगे बढ़ने की ,जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने की किन्तु हर चीज निश्चित है किसको ,किस समय क्या मिलना है ? सब कुदरत ने पहले से ही तय किया होता है। ज़िंदगी इतनी  आसान भी नहीं ,जितना हल्के में लोग उसे ले लेते हैं,इसको सुलझाते -सुलझाते ,ज़िंदगी ही छोटी पड़ जाती है। जब ये अपने पर आती है ,अच्छे -अच्छों को रुला भी देती है और जिन्हें हम कुछ समझते ही नहीं ,उन्हें हम पर हंसा भी देती है।हर इंसान की ज़िंदगी में ,ज़िंदगी का अलग ही रूप देखने को मिलेगा। ये चारों सखियाँ !जो सोच रहीं हैं ,क्या ऐसा ही होता है ,अभी तो शरुआत है ,आगे -आगे देखिए होता है, क्या ?    

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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