इंस्पेक्टर सुधांशु अपनी टीम को लेकर, शिमला जा पहुंचता है। वहां पर होटल में ,आम लोगों से , बहुत पूछताछ की, अधिक से अधिक जानकारी जुटाने का प्रयास किया। पांच दिनों के पश्चात उनकी टीम वापस आई और आते ही नितिन को गिरफ्तार कर लिया गया।
हर जगह हड़कंप समझ गया मीडिया भी सचेत हो गई और बार-बार, टेलीविजन पर और अखबारों में समाचार आने लगा। आखिरकार दस लड़कियों के बलात्कार और उनकी हत्याओं का, गुनहगार पकड़ा ही गया। यह समाचार नितिन के घर वालों ने भी सुना और पढ़ा। यह देख -सुनकर वह एकदम से अचंभित रह गए। कुछ समझ नहीं आ रहा था, यह क्या हो रहा है ? उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका लड़का इतनी हत्याएं कर सकता है। तुरंत ही वह कानपुर के पुलिस स्टेशन में पहुंच गए और इंस्पेक्टर सुधांशु से मिले और नरेंद्र जी उनसे बोले -सर !आपको अवश्य ही हमारे बेटे के विषय में कोई गलतफहमी हुई है, वह ऐसा कुछ कर ही नहीं सकता। इतनी हत्याएं करना तो दूर, वह एक हत्या भी नहीं कर सकता।
उसने कभी मांस- मीट भी नहीं खाया , खून करना और देखना तो अलग की बात है, सोच भी नहीं सकते। हमारे बेटे ने ऐसा कुछ नहीं किया है, नितिन के पिता गिड़गिड़ाते हुए बोले।
हम समझते हैं, किंतु सारे सबूत तो आपके बेटे के विरुद्ध ही हैं , इसमें हम क्या कर सकते हैं ? आपके बेटे को किसी प्रकार भी सजा न हो, परेशानी न हो, इसके लिए हमारी टीम सच्चाई का पता लगाने के लिए चार दिनों तक शिमला में रही और वहां विस्तार से पूछताछ की।
हमारा लड़का तो किसी लड़की से बात करते हुए भी झिझकता था ,इतनी लड़कियों की हत्या का आरोप उस पर लगा रहे हैं। आप स्वयं ही देखिए ! वह यहां कॉलेज में हॉस्टल में रहता है , तब वह यह सब करने के लिए , बाहर कब चला गया ?
यह तो आपका लड़का ही बता सकता है ,सुधाँशु को भी लग रहा था ,इसे फंसाया गया है किन्तु जितने भी सबूत मिले है ,उसके विरुद्ध ही हैं।
हम उससे मिलना चाहते हैं, ये हमारे वकील हैं, उसकी जमानत के लिए आए हैं।
उस पर इतनी हत्याओं का आरोप है वह भी महिलाओं की, जमानत तो नहीं होगी , हम इतना कर सकते हैं कि आपको आपके बेटे से मिलवा सकते हैं।
उन्होंने जैसे ही नितिन को सलाखों के पीछे देखा ,उनका ''कलेजा मुँह को आ गया। ''यह तूने क्या कर दिया ? तुझे हमने पढ़ाई करने के लिए बाहर भेजा था, जिंदगी बर्बाद करने के लिए नहीं। तूने यह क्या किया ? नितिन की मम्मी पद्मिनी जी ने उससे पूछा।
मम्मी ! मैंने कुछ भी नहीं किया है , मैं उन लड़कियों को जानता तक नहीं हूं, फिर हत्या करने का प्रश्न ही नहीं उठता। मुझे बेवजह फंसाया जा रहा है। न जाने, मेरे विरुद्ध इन पुलिस वालों ने कहां से सबूत इकट्ठा कर लिए हैं।
इधर मीडिया जोरों से गर्मा रही थी, उन्हें तो, सारे दिन के लिए खबर मिल गई थी, जिस भी चैनल को देखो !यही समाचार दिखाया जा रहा था -ये देखिए आप ! मासूम और भला दिखने वाला यह लड़का, जो अपने कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था , क्या कोई इसे देखकर कह सकता है ? कि यह इतनी हसीनाओं का कातिल होगा ? आखिर इसकी इन लड़कियों से क्या दुश्मनी थी ?
यह केस अपने आप में ही अनूठा है, पुलिस को उसके विरुद्ध सबूत मिले हैं, किंतु यह उन गुनाहों को स्वीकार ही नहीं करना चाहता है, जो उसने किए हैं , हर जुर्म करने वाला यही कहता है,ये जुर्म मैंने नहीं किया। वह तो कहता है - मैं इन लड़कियों को जानता ही नहीं।अरे !जब इंसान जुर्म की राह पर चलता है ,तब क्या वो जान -पहचान करके आगे बढ़ता है ?अपने कॉलिज की लड़की कविता को तो वो अच्छे से जानता था, हमने सुना है ,वो उससे प्यार करती थी। इस हैवान -दरिंदे ने उसे भी नहीं छोड़ा।
दूसरी तरफ कुछ लोग उसके पक्ष में भी बोल रहे थे - पुलिस ने इस मासूम बच्चे को, जबरन ही, अपराधी बनाने का ठान लिया है। छह माह से क़ातिल लड़कियों का कत्ल कर रहा है ,उनका बलात्कार कर रहा है आज तक उन्हें हत्यारा नहीं मिला और अपना कोप उतरा भी तो एक मासूम बच्चे पर जाकर, जिसको यह मालूम ही नहीं है कि यह लड़कियां कौन थीं ? आखिर वह उनकी हत्या क्यों करेगा ? क्या उसकी उनसे कोई दुश्मनी थी ? या फिर पुलिस ने उसको फंसाया है।इसका जबाब तो अब पुलिस को ही देना होगा।
नितिन को'ज़ज 'के सामने पेश किया गया। उसके विरुद्ध सबूत भी मिले, किंतु नितिन मन ही मन बहुत परेशान था और सोच रहा था- कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है ?
सर ! अब तो आपको आपका कातिल मिल गया,अब आप मुझे और मेरे मामा को छोड़ दीजिए ! उन्होंने कुछ नहीं किया है।अब आप किस अपराध में हमें पकड़े हुए हैं ?
जब तुम्हारे मामा ने कुछ नहीं किया है, तो वह जेल से क्यों भाग गया ?
यह आप क्या कह रहे हैं , क्या मेरे मामा जेल में नहीं है ? आश्चर्य से रचित ने पूछा - तो यह आपकी चाल थी, मामा के जरिए, मुझसे सच्चाई उगलवाना चाहते थे।
अब तुम हमें क्या सच्चाई बताओगे ! अब तो कातिल पकड़ा गया है तुम निश्चिंत होकर जा सकते हो। कहते हुए इंस्पेक्टर सुधांशु ने, रचित को भी छोड़ दिया क्योंकि इतने दिनों से, उनके लोग डॉक्टर चंद्रकांत का पता नहीं लगा सके।
न जाने कहां छुप कर बैठ गया है ? क्रोधित होते हुए इंस्पेक्टर सुधांशु कहते हैं।
नितिन पर,अभी केस चल रहा था। उधर रचित थाने से बाहर आकर अपने मामा से सम्पर्क करता है और उससे मिलता है। बाहर का क्या हाल है ?रचित को अंदर करते हुए ,उसका मामा उससे सवाल पूछता है ?
रचित पहले उस छोटी सी कोठरी को देखता है ,उसमें अंदर सभी साधन थे किन्तु बाहर से देखने पर किसी गरीब भिखारी की कुटिया लग रही थी।
मामा !यहाँ क्यों रह रहे हो ? अब तो मैं कॉलिज भी नहीं जा सकता ,वे लोग मुझ पर दृष्टि रखे हुए होंगे,मैं कहाँ रहूंगा ?
जहाँ पहले से रहते आये हो ,ऐसे ही कॉलिज जाना वरना उन लोगों को हम पर शक़ हो जायेगा। बाहर से देखने पर तो यह किसी गरीब की कुटिया लग रही है किन्तु अंदर से तो...... अभी रचित ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी ,तभी डॉक्टर ने टिन की बनी हुई दीवार हटाई जहाँ से एक नया रास्ता नज़र आने लगा ,रचित आश्चर्य से देख रहा था ,उस रास्ते से होते हुए वे एक विशाल घर में प्रवेश कर गए। मामा !ये घर किसका है ?आश्चर्य से रचित ने पूछा।
इस घर के मालिक का, वो हमारा भक्त है ,बच्चा !हमने उसे अनेक चमत्कार दिखाए हैं इसीलिए हम इस घर में आ जा सकते हैं।
और वो कुटिया !
वो भी हमारी है, भक्तों को दिखाने के लिए ,कहते हुए सोफे पर गिरकर हंसने लगा।
मामा !आप तो कमाल हो ,आपने तो इस दास की भी सभी इच्छाएं पूर्ण कर दीं,हँसते हुए रचित भी वहीं पड़े पलंग पर लेट गया।