आज का विषय ''षड़यंत्र ''दिया गया है ,हम भी अपनी रचनाओं और भावों द्वारा ,अधिक से अधिक लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ''षड्यंत्र ''करते रहते हैं। न जाने कब ,कौन किसके विरुद्ध 'षड्यंत्र ' कर रहा है ,पता ही नहीं चलता ,इनमें कोई अपना भी कर सकता है ,तो कोई पराया भी।
इसके पीछे का कारण ,जलन ,ईर्ष्या ,नफ़रत ,लोभ इत्यादि कारण होते हैं। हमें हमसे ज्यादा हमारे नजदीकी लोग ही ज्यादा समझते हैं और वे नजदीकी लोग ही, कुछ तो यह देखकर प्रसन्न होते हैं कि हम तरक्की कर रहे हैं, उन्नति के पथ पर प्रशस्त हैं किंतु कुछ लोगों के लिए यह ईर्ष्या का कारण बन जाता है। कुछ लोग दूसरों के तरक्की से खुश नहीं होते, मन ही मन अपने को भी जलाते रहते हैं और उस इंसान के विरुद्ध' षड्यंत्र' करते रहते हैं। षड्यंत्रकारी अधिकतर अपने आसपास ही मिल जाते हैं क्योंकि बाहरी लोगों को हमसे कोई मतलब नहीं होता, किंतु अपने नजदीक के लोग, यह सोचकर परेशान रहते हैं कि यह हमसे आगे क्यों है ? उनके मन में उठते सवाल, ईर्ष्या की भावना, षड्यंत्र करने पर मजबूर कर देती है।
छोटे- मोटे 'षड्यंत्र' तो , कई बार इंसान झेल भी जाता है किंतु जब बड़ा षड्यंत्र हो, और जान पर बन आए तब वह षड्यंत्र, 'षड्यंत्र'ही नहीं रह जाता। घृणित कार्य में तब्दील हो जाता है।
'महाभारत 'उठा कर देख लीजिए ! महाभारत का एक कारण, उनके अपनों द्वारा किया गया षड्यंत्र ही था। मथुरा के राजा कंस ने भी,अपनी बहन देवकी के प्रति ऐसा षड्यंत्र रचा- जिससे देवकी के आठवां पुत्र ही ना हो।' षड्यंत्र' किसी से भेदभाव नहीं करता, बड़ा हो या छोटा, राजा हो या रंक,हर वर्ग ,हर जाति ,हर उम्र में पाया जाता है। जब यह किसी के हृदय में भी निवास कर लेता है,तो उस षड्यंत्रकारी के साथ -साथ अन्य को भी जीने नहीं देता है , बस उसमें ईर्ष्या और जलन की भावना होनी चाहिए।
दूसरे को नीचा दिखाने की या नीचे गिराने की भावना होनी चाहिए। महाभारत में पांडवों को कौरव आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते थे , उन्हें सत्ता सौंपना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने 'लाक्षा गृह 'और 'चौसर ''का 'षड्यंत्र' किया। आम जनता में भी, ज़र, जोरू, जमीन, तीनों के लिए ही षड्यंत्र होते रहते हैं और यहां तक षड्यंत्र होते हैं कि उस जमीन को पाने के लिए, संपत्ति को पाने के लिए, अपना ही अपने का खून बहा देता है।
षड्यंत्र धीरे-धीरे उन्नति कर रहा है, क्योंकि आजकल आमजन की सोच को देखते हुए ,नारी भी पुरुष के हनन का षड्यंत्र कर डालती है फिर चाहे वो अपना पति ही क्यों न हो ? इतिहास में ये षड्यंत्र काले अक्षरों में लिखे जा चुके हैं। जिस भारत की नारी को सम्मान के साथ देखा जाता था ,माँ के रूप में पूजा जाता था ,घर की लक्ष्मी ,दुर्गा ,सरस्वती ,अन्नपूर्णा कहा जाता रहा है ,अब उसे 'षड्यंत्रकारी' भी कहा जा सकेगा।
ऐसा नहीं है, कि इससे पहले महिलाओं ने कभी षड्यंत्र किया ही नहीं है, एक रानी दूसरी रानी को नीचा दिखाने के लिए षड्यंत्र करती थी। एक महिला दूसरी महिला, से उसकी सुंदरता उसके मान , पद ,प्रतिष्ठा, से जलती थी, घरों में भी बहुत राजनीति खेली जाती रही है और आज भी खेली जाती हैं, किंतु किसी ने भी अपने ही पति का अंत करने का नहीं सोचा बल्कि उसको पाने के लिए, उसकी स्नेहा वृष्टि के लिए, तो षड्यंत्र किए हैं किंतु मारने के लिए नहीं।
अंत में यही कहना चाहूंगी, युग कोई भी हो, षड्यंत्र तो होते रहे हैं और होते रहेंगे। दशक बदल जाते हैं, लोग बदल जाते हैं ,षडयंत्रों का कारण बदल जाता है,यहाँ तक की प्रेम में भी 'षड्यंत्र 'होते हैं , किंतु' षड्यंत्र' जारी रहते हैं।