Mysterious nights [part 84]

मम्मी !आप ये क्या कर रहीं हैं ? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा ,मेरी ज़िंदगी से ही,इस तरह क्यों खेला जा रहा है ? आहत मन, 'ज्वाला' अपनी माँ सुनयना देवी से पूछता है। 

ये तुम क्या कह रहे हो ? हम कुछ समझे नहीं। 

आप जानबूझकर अनजान मत बनिये !आप जानती हैं ,हम क्या कहना चाहते हैं ?आप हमारी इस तरह परीक्षा क्यों ले रहीं हैं ?

ये परिक्षा तुम्हारी ही नहीं ,हमारे घर के अन्य लोगों की भी है ,जैसा हमने कहा है ,वैसा ही हो रहा है ,इसी में घर की सुख -शांति है ,जब तक वो इसी तरह इस घर में रहती रहेगी ,तो ये घर बसा रहेगा और सुख -शांति बनी रहेंगी। 


इस घर की सुख -शांति का दमयंती और मेरे रिश्ते से क्या संबंध है ?

इस घर में आप ही नहीं रहते हैं, घर के अन्य लोग भी हैं ,तुम दोनों से ही, ये परिवार नहीं है। 

इन सब बातों का मेरे जीवन से क्या मतलब है ? आपके अन्य बेटों का विवाह नहीं हो रहा था, इसमें क्या मेरा दोष था ? औरों के किये की सजा, मेरा ये रिश्ता झेल रहा है।वो होटल भी तो है ,जहाँ रातें जगतीं हैं ,वे तो वहां भी खुश थे। पता नहीं ,इतनी हेकड़ी दिखाने वाले भाई भी ,घर में आकर न जाने कैसे हो जाते हैं ? 

ये सब तो ,उन ''बाबाजी ''की ही कृपा है कहते हुए उन्होंने हाथ जोड़े ,तुम्हारा दोष तो नहीं था , किंतु इस घर और परिवार के लिए हमें यह कदम उठाना पड़ा, हमारे बाबा ने कहा है -इस घर की सुख- शांति के लिए हमें एकता बनाए रखनी होगी और वह एकता तभी बनी रह सकती है। जब इस घर में नारी भी एक ही होगी, वरना अन्य नारी के आने से घर में क्लेश -द्वेष , ईर्ष्या सब बढ़ जाती ,रही बात, उस होटल की ,हमें ऐसी नारी की आवश्यकता है ,जो इस घर को वारिस दे ,उसका ख़ानदानी ख़ून हो।  

पता नहीं ,आप क्या सोचती हैं ?और क्या करना चाहती है ? किन्तु मुझे तो उसकी फ़िक्र है ,वो कितनी आहत हुई होगी ? इस बार भी उसे, मुझसे धोखा मिला , दमयंती की बातों को सोचकर वह मन ही मन ग्लानी से भर गया। 

धीरे-धीरे उसे आदत हो जाएगी, वह समझ जाएगी, कि वह, इस घर की जरूरत है, और उसे भी, इस घर की जरूरत है दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।'' अपनी सोच- समझ से ही जिंदगी नहीं चलती है, जिंदगी पर तब भी असर पड़ता है उसके  आसपास के लोग कैसे हैं ,उसके आधार पर भी अपने जीवन को ढ़ालना पड़ता है।''सुनयना जी सहजता से बोलीं। 

घर का वातावरण कैसा होता जा रहा है ?इन परिस्थितियों का किस पर, क्या प्रभाव पड़ रहा है ?उन्हें उससे कोई मतलब नहीं था।  उन पर किसी की भी बात का कोई प्रभाव पड़ ही नहीं रहा था। उनके बेटे पर क्या बीत रही है ? इस बात से उन्हें कोई लेना -देना नहीं था।  

लेकिन वही क्यों ? ज्वाला ने सुनयना जी से पूछा। 

और कौन ? और कौन आता ? तुम्हारे परिवार की इतनी बदनामी हो चुकी है, कोई अपनी लड़की देने के लिए तैयार नहीं था, वह तो भला हो , ठाकुर साहब का, जो उनके मित्र ने इन पर विश्वास किया। उसने ज्यादा छानबीन भी नहीं की वरना तुम में से, किसी एक का विवाह होना भी मुश्किल ही था। यह तो तुम्हारा प्यार था जो उसे यहां तक खींच लाया।  हो सकता है, उसके कोई पूर्व जन्म के कर्म भी होगें  जो वह तुम्हें मिली, एक गलतफहमी के कारण ही सही ,वह इस घर में आ तो गई वरना वो भी चली गयी थी, उसके घरवाले लालची थे ,जिस लालच के तहत उन्होंने उसे वापस भेज दिया। वैसे उन बाबा जी ने कहा था -'एक बार जाकर उन लोगों  से मिलो !बात बन जाएगी और तुम ही देख लो !बात बन गयी। 

आपके 'बाबा जी' के कारण बात नहीं बनी है,बल्कि वो मेरी बिमारी सुनकर वापस आई थी ,उसे क्या मालूम था ?उसके साथ ऐसा कुछ होने वाला है। वह तो मुझे दोष दे रही होगी, क्या यह उसके साथ छल नही है ?

छल केेसा ?जो चीज कभी हमने, सोची भी नहीं होती ,तब भी कई बार हमें विवश होकर, कार्य करना पड़ जाता है।'' क्या ज़िंदगी हमसे पल -पल छल नहीं करती है ?न जाने किससे मिला देती है ? किससे दूर कर देती है। कब हमें छलकर मौत के द्वार लाकर खड़ा कर दे ?क्या ,पता चल पाता है  ?हम तो फिर भी इंसान हैं ,गलती तो इंसानों से ही होती है किन्तु हम इसे गलती नहीं कहेंगे। ये, हम जो भी कर रहे हैं ,अपने बच्चों की ख़ुशी और इस परिवार को बनाये रखने के लिए कर रहे हैं।

हमने आपसे कब मना किया कि आप परिवार की खुशियां न सोचें, किन्तु इन सबके लिए हमें क्यों अपनी खुशियों की क़ुरबानी देनी पड़ रही है ?

इसमें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है ,कुछ दिनों के कष्टों के पश्चात ही तो, इस घर की खुशियों के कमल खिलेंगे, तुम्हारी यह कुर्बानी बर्बाद नहीं जाएगी। इस घर को बनाए रखने में, तुम्हारा बहुत बड़ा हाथ होगा।

पता नहीं ,हाथ होगा या नहीं किन्तु वह कल मेरी प्रतीक्षा करती रही होगी और मुझे न पाकर उसे  कितना दुख हुआ होगा ? 

उसने तुम्हारी प्रतीक्षा की होगी यह मैं मानती हूं, किंतु तुम्हारी कमी 'हरिराम' ने पूरी कर दी है,उस समय उनके चेहरे पर कठोरता थी। 

 क्या उनका जाना जरूरी था ? 

हाँ ,तुमसे तो बड़े वही हैं ,उसे दुःख हुआ होता तो अब तक यहाँ आ गयी होती ,तुमसे लड़ती -झगड़ती  किन्तु अब वो धीरे -धीरे इस वातावरण में अपने को ढाल ही लेगी। शुरू में देखा था, कितनी चिल्लाई थी ?किन्तु अब वह परेशान तो हुई होगी किन्तु समय के साथ समझौता कर लेगी। इसके पश्चात..... वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई और ज्वाला ने मेज पर हाथ पटका, माँ को कुछ कह भी नहीं सकता था और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ,उसको इस तरह क्रोध में देखकर सुनयना जी भी ,कुछ सोचने लगीं और बाहर खड़ी दमयंती  जो कुछ देर पहले ज्वाला से, अपने सवालों के जबाब मांगने आई थी और उन माँ -बेटों की दलीलें सुन रही थी। वो वहां से हटकर ,अपने कमरे में वापस लौट आई।

क्या अब यही मेरी ज़िंदगी रह गयी है ? इसका अर्थ है ,मुझे अब 'हरिराम 'के साथ रहना होगा जब तक उसका कोई बच्चा नहीं हो जाता। ये लोग मेरा इस्तेमाल कर रहे हैं ,इस औरत को मेरे जज्बातों से कोई मतलब नहीं है ,मेरे भावनाओं को तो तब समझेगी ,जब अपने बेटे को ही नहीं समझ रही है। आखिर एक औरत इतनी कठोर कैसे हो सकती है ?आखिर ये बाबा जी कौन हैं ?ये सुनयना देवी को क्या पट्टी पढ़ा रहे हैं ,क्या इसका कोई हल है या नहीं ,मुझे जानना होगा। सही तो कह रहे हैं ,'ज्वाला जी ' इतने बिगड़ी हुई संतान ,घर आते ही, अपनी माँ की इतनी आज्ञाकारी संतान कैसे बन जाती है ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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