Mysterious nights [part 82]

 दमयंती ,स्नानागार में ,अपने ज्वाला की प्रतीक्षा में थी ,सामाजिक दृष्टि से देखा जाये, तो ये गलत ही था किन्तु उसे लगता है, उसके साथ सही हुआ ही कब था ?जिससे विवाह हुआ, उससे प्यार नहीं करती थी और जिससे प्यार करती है ,वो जानते -बुझते हुए भी, उससे दूर रहा।

वह शिखा से बताती है - न जाने मैं, कैसी होती जा रही थी ?'जगत' के चले जाने जाने पर, फिर से' ज्वाला' की ज्वाला मेरे अंदर भड़कने लगी थी जबकि ज्वाला के रूखे व्यवहार से आहत होकर ही मुझे, उस पर क्रोध आया और इसी कारण से ही ,मैं 'जगत सिंह जी 'की तरफ  बढ़ने लगी थी। मैं उनके करीब जाकर  'ज्वाला ''को जलाना चाहती थी ताकि वो जब मेरा 'जगत सिंह जी 'के प्रति आकर्षण देखेगा तो ईर्ष्या के कारण ,मुझसे लड़ेगा और मेरे करीब आएगा ,किन्तु न जाने, वो किस मिटटी का बना था ? उस पर कोई असर नहीं हुआ ,तब मैंने 'जगत जी 'को ही अपना सबकुछ मान लिया। 


उनका व्यवहार,उनकी शालीनता मुझे उनकी तरफ खींचने लगी थी किन्तु गर्वित के होने के पश्चात ,वो भी न जाने कहाँ चले गए ?तब मेरा प्यार फिर से 'ज्वाला 'की प्रति उमड़ पड़ा। ज्वाला भी, मेरे मन की चिंगारी को ओर भड़का रहा था और मैं भी खुले दिल से उसका स्वागत करना चाहती थी। गर्वित के होने से पहले ,उस दिन जब ज्वाला ने मुझे, जो कुछ भी बतलाया था ,उसके आधार पर तो मेरा संबंध अनुचित नहीं था। मैं उसकी प्रतीक्षा में,पहले ही सब तैयारी किये बैठी थी।मेरा रोम -रोम जैसे उसके प्यार के लिए तड़प रहा था। 

यदि इसे, आप अपना प्यार कहती हैं ,तो सही है किन्तु पति के न होने पर ,उसकी तरफ आकर्षित होना ,प्यार नहीं था ,जो मैं कहना चाहती हूँ वो तो शायद आप समझ ही गयी होंगी,शिखा ने दमयंती की कहानी सुनकर जबाब दिया।  

हाँ ,ये भी कह सकती हो ,मेरे पति के दूर जाने के कारण ,शायद मेरे मन में ये विचार आ रहे हों किन्तु ज्वाला को तो मैं पहले से ही प्रेम करती थी और औरत होने के नाते मेरी भी कुछ जरूरतें थीं या नहीं। ऐसे में मुझे उसके साथ की आवश्यकता महसूस हुई तो इसमें क्या बुराई है ? अब तुम अपने को ही देख लो !तेजस के चले जाने पर तुम्हें भी तो किसी सहारे की आवश्यकता तो महसूस हुई होगी ,अभी नहीं तो ,कुछ समय पश्चात ,तुम्हारा ये यौवन तुम्हें चैन से रहने नहीं देता। 

ये तो अपनी -अपनी समझ है ,तेजस के चले जाने पर मैं यही सोचकर यहाँ आई थी कि सम्पूर्ण जीवन उसके नाम पर ही बिता दूंगी किन्तु समाज और घर के लोग, उस सोच को जब तक कलुषित नहीं कर देते उन्हें सुकून नहीं मिलता। यहाँ आकर आप लोगों की सोच देखी तो आश्चर्य हुआ ,यदि मैं स्वयं ही किसी के साथ हो जाती तब भी लोगों को कहने से कोई नहीं रोक पाता ,तब कहते -'पति को गए ,ज्यादा दिन नहीं हुए और अब देवर से इश्क लड़ाने लगी। '

क्या तुम इस समाज से डर रही हो इसीलिए अपने कदम आगे नहीं बढ़ा रहीं थीं ?अचानक दमयंती ने पूछा।

नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,मुझे किसी का ड़र या दबाब नहीं किन्तु मेरे ऐसे संस्कार भी नहीं कि पति के जाते ही, मैं किसी नए की तलाश में जुट जाऊँ ,मेरी छोड़िये !अब आप मुझे ये बताइये ! तब ज्वाला जी वहां आये या नहीं। 

बता तो रही हूँ ,जब वो आये ,तो मैं प्रसन्नता में बावरी हुई जा रही थी ,उनके आते ही उनके सीने से लिपट गयी ,उन्होंने भी मुझे, अपनी बलिष्ठ भुजाओं में समेट सा लिया और मैं सिमटती चली गयी। बहुत दिनों पश्चात आज मेरी' तमन्ना' पूरी हो रही है। वो मुझे गोद में उठाकर स्वयं भी, उस टब में आ गया ,हम बहुत देर तक एक -दूसरे को महसूस करते रहे। मेरे ह्रदय की धड़कनें बढ़ रहीं थीं ,न जाने क्यों? अचानक मुझे ड़र सा लगने लगा ,कहीं मेरा बेटा रोने न लगे ,मुझे ये भी ड़र लग रहा था, कहीं मेरी सास को पता चल गया तो क्या होगा ?एक -दूसरे से सटे हम पानी से खेलते रहे और एक दूसरे के अंगो को महसूस करने लगे। इस बीच ज्वाला एकदम चुप रहा। तब मैंने पूछा -इस तरह चुप क्यों हो ?क्या कुछ हुआ है ?किन्तु उसने जबाब देने के बदले मेरे अधरों को अपने अधरों से चुप करा दिया। बहुत देर तक हम पानी में अठखेलियां करते रहे उसके पश्चात वो मुझे बाहर कमरे में ले आया। 

मैं तो जैसे कामान्ध हो गयी थी ,मुझ पर ज्वाला के प्रेम का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था ,किन्तु जब मैंने अपनी आँखों को खोला,तब मुझे ज्वाला के स्थान पर किसी और का चेहरा नजर आया। मुझे ये मेरा भ्र्म लगा फिर भी मैंने दुबारा अपनी आँखों को खोलने का प्रयास किया किन्तु उसने मुझे अपने सीने में समा लिया ,तब तक उसने लाइट भी बंद कर दी थी ,मेरी तो जैसे बरसों की प्यास बुझ रही थी ,मैं फिर से उसमें समाती चली गयी। अपने को स्वच्छंद छोड़ दिया था ,तब हम दोनों तृप्त हो एक -दूजे की बांहों में सिमटकर सो गए। एक बात बताऊँ ,मुझे लगता है ,मैं इतनी ज्वाला के प्रेम में अंधी नहीं हुई थी जितनी मैं अपने तन और मन की प्यास को बुझा लेना चाहती थी। न जाने वो कैसी अग्न थी ? जिसने मुझे ये सब करने के लिए बेचेेन कर दिया था। 

इतने पर भी आपको पता नहीं चला और वही तरीक़ा मुझ पर भी आजमाया गया ,क्या आप भूल गयीं? जिसके कारण मुझे पता ही नहीं चला ,मेरे पास रात्रि में कौन था  ?

तुम सच मानो ! ये सब मुझको नहीं मालूम था , कि गर्वित के मन में क्या चल रहा है ?दमयंती दयनीयता से बोली।

इसमें आपकी ही गलती नहीं है ,उसकी परवरिश ही ऐसे परिवार में हुई है ,जहाँ औरतों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता बल्कि उन्हें भोग्या समझा जाता है। 

नहीं, ऐसा नहीं है ,तुम गलत समझ रही हो। इस घर के रिवाज़ के आधार पर उनकी सोच ऐसी बनी है। 

ये आपके परिवार की रस्म कबसे चली आ रही हैं ?क्या आपको कुछ जानकारी है ,इस रस्म से आपको किसने अवगत कराया ?जबकि आप तो कह रहीं थीं ,आपके ससुर अकेले ही थे। तब ये रस्म कैसे आगे बढ़ी ? वहीं पर समाप्त हो गयी। दुबारा क्यों शुरुआत की गयी ?

दमयंती के पास कोई जबाब नहीं था किन्तु शिखा के ऐसे सवाल- जबाब सुनकर वो मन ही मन घबरा अवश्य गयी थी ,उसे लग रहा था,मेरी कहानी सुनने के पश्चात भी इसकी सोच नहीं बदली तो क्या होगा ? 

  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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