Mysterious nights [part 79]

    `ठाकुर जगत सिंह जी, मेरे माँ बनने की खबर से बहुत खुश थे, सुनयना देवी भी बहुत खुश थीं,घर में नया सदस्य जो आने वाला था। 

जब सभी खुश थे ,तो क्या आप खुश थीं ,आप माँ बनने जा रहीं थीं ?शिखा ने पूछा। 

  न जाने क्यों ?मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था,मैं समझ नहीं पा रही थी, किस राह पर मैं आगे बढ़ी थी और किस रास्ते में आकर भटक गई हूं। यह सब ज्वाला के कारण ही हुआ। न वो मुझसे इस तरह मुख मोड़ता और न ही जगत सिंह जी को मेरे करीब आने का मौका मिलता।

आप उन्हें दोष नहीं दे सकतीं ,तुरंत ही  शिखा बोली -इसमें  उनकी भी क्या गलती थी ? उन्हें आपने ही क़रीब आने दिया। 


हाँ ,शायद तुम ठीक कह रही हो ,धीमे स्वर में दमयंती ने जबाब दिया, मैं उनको अपने करीब लाकर ज्वाला को जलाना चाहती थी किन्तु मैं अपने ही बनाये दलदल में धंसती चली गयी। अब ज्वाला घर में कम ही आता था यह सब खुशियां घर में रौनक तो ले आईं  थीं किन्तु तब भी मैं चाहती थी -कि  ज्वाला मेरे क़रीब आए और मुझसे मिले, मैं उसके चेहरे के वो भाव देखना चाहती थी ,जब उसे पता चले, कि मैं उसके बच्चे की नहीं वरन उसके भाई के बच्चे की माँ बन रही हूँ। उसके आने का पता ही नहीं चलता था, कब ज्वाला आ रहा है और कब गया ? मैं  समझ ही नहीं पाई कि यह क्या चाहता है ?जब वह मिलता तो उससे बातें होतीं , तभी तो उसे, मैं समझ पाती लेकिन वह तो मिलता ही नहीं था। 

मेरा आठवां महीना चल रहा था आखिर एक दिन मुझे पता चल ही गया , ज्वाला आया हुआ है, धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए मैं , उसके कमरे तक पहुंच ही  गई। ज्वाला मुझे  इस तरह  देखकर अचंभित सा रह गया। 

अरे ! तुम यहां क्यों आई हो? और वह भी ऐसी हालत में कहते हुए वो आगे बढ़ा और उसने मेरा हाथ पकड़कर बड़े प्यार से मुझे कुर्सी पर बैठाया।मैं देख रही थी ,मेरी ऐसी हालत देखकर भी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आये , उनमें ग्लानि थी ,न ही क्रोध ! जबकि साधारण इंसान के लिए ,ऐसा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है   

क्या तुम, जानते हो,कहते हुए ,मैंने अपने उदर की तरफ इशारा किया। 

हाँ ,उसने गर्दन हिलाई , तुम्हें पता चला तब भी तुम, मुझसे मिलने नहीं आये।  

क्या मेरा आना आवश्यक था ?भाई तो वहां थे ही..... मैं तुम्हारी पल -पल की ख़बर रखता हूँ ,ये तो ख़ुशी की बात है ,तुम इस घर का वारिस ला रही हो। 

दमयंती ने उसकी आँखों में देखा और बोली -क्या तुम्हें इस बात का तनिक भी अफ़सोस नहीं है ? काश ! ये बच्चा हमारा होता ,दमयंती के इतना कहते ही ,ज्वाला ने उसके होंठो पर अंगुली रख दी और बोला -ऐसे मत कहो !ये भी हमारा ही है ,इस घर का वारिस है ,ईश्वर ने चाहा तो और भी बच्चे होंगे ,हमारे भी होंगे। 

ये तुम क्या कह रहे हो ?

सही कह रहा हूँ ,तुम इस घर की मालकिन हो ,हम सब पर तुम्हारा अधिकार है, ईश्वर ने चाहा तो तुम और भी बच्चों की माँ बनोगी। 

ये तुम लोग, क्या पहेलियाँ बुझाते रहते हो ? 

कोई पहेली नहीं है ,तुम समझना ही नहीं चाहतीं ,मैं पहले भी तुमसे प्यार करता था और आज भी करता हूँ। भाई भी तुमसे प्यार करते हैं। 

आश्चर्य से मैं ,उसके चेहरे की तरफ  देख रही थी और सोच रही थी - कैसे लोग हैं ? न ही इसके मन में कोई घृणा है ,न ही क्रोध है और इस बच्चे के लिए भी दुआएं कर रहा है। 

उसने दमयंती की आँखों के सामने चुटकी बजाई और बोला -क्या सोच रही हो ?

कुछ भी तो नहीं ... 

और कुछ सोचना भी नहीं ,तुम बस अब आराम करो ! कोई भी परेशानी हो तो ये बंदा हाज़िर हो जायेगा। 

तुम इतने दिनों से कहाँ थे ?दिखलाई भी नहीं दिए। 

मैं तो हमेशा से ही यहीं था ,अच्छा एक बात बताओ !जब तुम भाई के साथ होती थीं ,क्या एक बार भी मेरा विचार आया था ?

ज्वाला ने जैसे, उसकी दुखती नस को छेड़ दिया हो,मैं बोली -तुम्हारे कारण ही तो उनके समीप गयी थी ताकि तुम्हें एहसास हो कि मुझे ठुकराकर तुम कितनी बड़ी गलती कर रहे हो ?

अच्छा ,मुझे एहसास दिलाना चाहती थीं ,कहकर वो मुस्कुराया क्या भाई के प्यार में कोई कमी नजर आई ?उसने दमयंती की तरफ देखकर पूछा ,इस बात पर दमयंती ने नजरें झुका लीं। 

मैं जानता था ,वे मेरी कमी महसूस होने ही नहीं देंगे। 

यहाँ तुम गलत हो माना कि उनका व्यवहार अच्छा रहा है ,सामाजिक तौर पर वो मेरे पति भी हैं किन्तु मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो जगह थी वो उसे छू भी न सके। 

छूना भी नहीं चाहिए ,वो तो मेरा ही स्थान है किन्तु तुम्हारे और  मेरे कुछ कर्त्तव्य हैं ,जो हमें मिलकर निभाने हैं। 

कैसे कर्त्तव्य ? दमयंती ने ज्वाला की तरफ देखकर पूछा। 

इस घर के प्रति ,जो हमें मिलकर निभाने हैं। 

क्या मतलब ?

आज तुम्हारे गर्भ में ,इस घर का वारिस पल रहा है। 

जो तुमसे होता ,वो भी तो इस घर का वारिस ही होता दमयंती ने कहा । 

किन्तु तीन भाइयों का क्या ?उन्होंने जो मम्मी के कहने पर अपनी आत्माओं का त्याग किया है। 

क्या मतलब ?

वही जो तुम समझना नहीं चाहतीं ,शायद तुमने ध्यान नहीं दिया ,उन्होंने कहा था -तुम्हें सभी को एकता के सूत्र में बांधना है और तुम वो डोरी हो जिसे सबको बांधना है क्योंकि मम्मी के वायदे के अनुसार यहाँ अब कोई नई स्त्री नहीं आएगी। 

ये तुम क्या कह रहे हो ?तुम्हारा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ,तुम लोग, अपनी बलि कहाँ दे रहे हो ?ये तो तुम लोग मुझसे बलि मांग रहे हो ,मेरे प्यार की, मेरी आत्मा की ,मेरे अरमानों की ,तुमसे तो मैं प्यार करती थी ,तब भी तुमने मुझे समझा नहीं कहते हुए दमयंती की आँखों से अश्रु बह चले। इसका अर्थ यही हुआ ,जगत ही नहीं ,तुम्हें पाने के लिए ,तुम्हारे क़रीब आने के लिए अभी दो के साथ और...... 

तुमने मुझे क्या समझा है ?लगभग चीखते हुए बोली -मुझे नहीं  मालूम था ,तुम्हारे प्यार के लिए मुझे इतनी बड़ी क़ुरबानी देनी होगी। 

इसमें क़ुरबानी कैसी ? तुम्हें सबसे प्यार अपनापन मिल रहा है ,तुम कहोगी तो ,अन्य के साथ भी, तुम्हारे फेरे करवा दिए जायेंगे। ये तो मात्र एक रस्म है ,वरना हम सबका रिश्ता तो तुमसे तभी जुड़ चुका था ,तुम जब यहाँ विवाह करके आई थीं। 

यदि मेरा विवाह सिर्फ तुमसे ही होता तो क्या होता ?क्या  तब भी ये रिश्ते यूँ ही चलते ?मुझे लगता है ,तुम मुझे मेरे प्यार की इतनी बड़ी सजा दे रहे हो। छीः मुझसे तो  सोचा भी नहीं जा रहा ,एक का बच्चा मेरे गर्भ में पल रहा है ,जिससे प्यार करती हूँ ,वो मुझे अपने भाइयों में ऐसे बाँटना  चाहता है ,जैसे मैं कोई इंसान नहीं कोई वस्तु हूँ जिसे सब भाई मिलकर बाँटना चाहते हैं। क्या तुम्हें तनिक भी इस बात का दुःख नहीं है ?कि मैं तुम्हारी पत्नी बनते -बनते रह गयी और तुमसे मिलने के लिए मैं रातों तुम्हारी राह तकती रहती थी  ,तुम्हारे भाई का बिस्तर गर्म करती रही। ये शब्द दमयंती ने जानबूझकर कहे ताकि ज्वाला को एहसास हो, उससे कितनी बड़ी गलती हुई है ?और आगे भी करने जा रहा है किन्तु वो तो जैसे नाम का ही ज्वाला था ,मेरे इतना कहने पर भी ,उसके अंदर की ज्वाला शांत रही। 

आप इतना सब क्यों सहन कर रहीं थीं ?अपने घर दुबारा भी तो वापस जा सकती थीं शिखा ने दमयंती से कहा। 

कहाँ जाती ?या तो मेरा नाता इस परिवार से  ही नहीं जुड़ता और मैं कुंवारी किसी और की पत्नी बन गयी होती तो शायद इतने अत्याचारों से बच जाती। 

तब आगे क्या हुआ ?क्या ज्वाला जी को अपनी गलती का एहसास हुआ ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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