तमन्ना,पर नित्या की बातों का असर हुआ और अब उसने जिंदगी को नए सिरे से देखना आरंभ कर दिया , उसे लगता है, नित्या सही कह रही है, इस तरह से छुपकर रहने से, कोई लाभ नहीं होगा।कब तक अपनी इच्छाओं का दम घोंटती रहूंगी ?किसी को मेरे साथ रहना ,मुझसे दोस्ती करना अच्छा लगता है या नहीं ,ये वो जाने, कोई मुझसे दोस्ती करना चाहे या ना करना चाहे, किंतु मैं अपने आप को तो नहीं नकार सकती। उसने निर्णय किया कि अब वह अपने लिए जीएगी, और उसकी भावनाओं का सहारा बनेंगी, उसकी ये कलाकृतियां !
अब अक्सर तमन्ना, मोेहल्ले के बगीचे में चली जाती और चुपचाप एक कोने में बैठकर चित्रकारी करती रहती, एक लड़का अक़्सर उसे इस तरह आते हुए देखकर, सोचता यह न जाने, यह क्या कर रही है ? और सच में ही, एक दिन वह उसके समीप आया और उसने उसकी चित्रकार को देखा, तो वह उससे प्रभावित हुए बिना न रह सका किंतु जैसे ही, उसने तमन्ना को देखा, उसके चेहरे के भाव बदल गए।
कला तो अच्छी बना लेती हो ,किन्तु जब कोई तुम्हें देखेगा,तो ये कला भी व्यर्थ हो जाएगी। उसने सच्चाई बयान कर ही दी, उसके शब्द तीखे थे किंतु सच्चे थे।
यह बात तो मैं भी जानती हूँ , कि मैं क्या हूँ ? सुंदर नहीं हूँ ,तो क्या हुआ ? मेरे जीवन का महत्व समाप्त नहीं हो जाता किन्तु मुझे तुम्हारी ये बात अच्छी लगी कि जो भी उसके मन में है, वह स्पष्ट कह दिया। तमन्ना सोच रही थी -कभी -कभी किसी का स्पष्ट कहना भी डरा जाता है किन्तु सच्चाई से मुँह मोड़ना भी तो उचित नहीं।
क्यों ?मैं क्यों किसी से ड़रने लगा ?तुम हो ही कौन ?जिससे मुझे डर लगना चाहिए,जो देखा महसूस किया कह दिया।
तुम्हारी ,ये बात अच्छी है, इंसान को स्पष्टवक्ता होना चाहिए किन्तु मेरे सामने ही नहीं आगे भी इसी प्रकार स्पष्ट रहना और कहना ,कहते हुए तमन्ना ने अपना सामान उठाया और अपने घर की तरफ मुड़ गयी। नित्या की बातों से उसे हिम्मत तो मिली किन्तु वो उसका दर्द कम करने में सफ़ल न हो सकी।
कल्याणी जी ,आज फिर से अपनी बेटी का उदास चेहरा देखकर, वो समझ गयीं ,अवश्य ही आज इससे किसी ने कुछ कहा है ,उन्होंने तमन्ना को समझाया -हर व्यक्ति की अपनी एक अलग विशेषता होती है -'' कोई बाहरी रूप से सुंदर होता है तो कोई आंतरिक रूप से सुंदर होता है। तुम्हारा ह्रदय, मन अंदर से सुंदर है। उस समय तो वह अपनी मम्मी की बातों से संतुष्ट हो गई या संतुष्ट होने का अभिनय किया किंतु कमरे में आकर सोचने लगी -समाज, दुनिया के लोग यह बात क्यों नहीं समझते हैं ?
स्वतः ही उसके मन में विचार आया, यदि सभी इसी तरह से आंतरिक सुंदरता को महत्व देने लगे तो बाहरी सुंदरता का तो कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। हम किसी को कोई भी उपहार देते हैं, तो पहले इसकी बाहरी सजावट ही तो देखते हैं , तब उसको खोलकर देखते हैं, कि इसके अंदर क्या उपहार है ? वह सस्ता भी हो सकता है और कीमती भी, इसी प्रकार, यदि कोई तमन्ना की चित्रकारी की प्रशंसा करता है , तो यह उसका आंतरिक गुण है किंतु जब उससे मिलता है ,कहता कुछ नहीं है किन्तु तमन्ना को एहसास हो जाता है, तब उसे पता चलता, कि बाहरी सजावट भी आवश्यक है। न जाने क्यों तमन्ना स्वयं ही, अपने आप से डरने लगी , उसे लगता -वह जिससे भी और जब भी मिलेगी, उसे अपमान ही झेलना होगा।
कई दिनों तक तमन्ना घर से बाहर नहीं गयी ,न ही बग़ीचे में ,जगत अक्सर उसकी कलाकृतियां देखता था और प्रशंसा करने के साथ-साथ, कुछ ना कुछ ऐसा भी कह देता जिससे तमन्ना निराशा से भर जाती थी इसीलिए वह घर पर ही, पेंटिंग्स बनाकर खुश हो लेती। उसके कमरे की खिड़की से बाहर के नज़ारे स्पष्ट दिखते थे,और उसकी नजरें जो दृश्य पकड़ लेतीं ,या उन नजरों को भा जाता ,उसे अपने चित्रों का हिस्सा बना लेती। इस प्रकार लोगो के दैनिक क्रिया -कलाप ,आम लोगों के जीवन का संघर्ष ,जैसे- रिक्शा चलाते हुए ,एक इंसान, जो पेट की आग बुझाने के लिए ,कई लोगों का बोझ उठाने की क्षमता रखता है या विवशता उससे ये सब करवा रही है। सबके अंदर जीने की चाहत है ,उसी चाहत की पूर्ति के लिए ,प्रातः काल उठकर ,अपनी यात्रा आरम्भ करता है।
एक दिन समाचार -पत्र देखा -कोई ''चित्रकला प्रदर्शनी'' लगी है ,तुरंत ही उस समाचार पत्र को उठाकर अपने कमरे में ले गयी और उसके विषय में विस्तार से पढ़ा और उसका विषय भी देखा। उसे लगा ,उसे इस प्रदर्शनी में भाग लेना चाहिए और तुरंत ही,उसने वह समाचार पत्र अपनी मम्मी को दिखाया।
हाँ ,हाँ क्यों नहीं तुम्हें इस प्रतियोगिता में अवश्य भाग लेना चाहिए।
पर मुझे वहां जाना होगा।
तो क्या हुआ ?सभी बच्चे जायेंगे उनमें से एक तुम भी होंगी ,इतनी भीड़ में कौन किसी पर ध्यान देता है ?ज्यादा दिक्क्त नहीं होगी ,मैं भी तुम्हारे संग चलूंगी। स्कूल भी तो जाती हो इसी प्रकार तुम्हें वहां जाना है ,कौन क्या कहता है ?इस बात पर ध्यान ही नहीं देना है ,बस इस प्रतियोगिता पर ध्यान केंद्रित करना है। इस प्रकार सर्वप्रथम आठवीं कक्षा में ,तमन्ना ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वहां वह जीती ,वह इतनी बड़ी प्रतियोगिता भी नहीं थी किन्तु तब भी वो लोगों का सामना कर लेती थी किन्तु जैसे-जैसे बड़ी होती जा रही थी ,उसका ड़र बढ़ता जा रहा था।
इसी प्रकार अन्य प्रतियोगिताओं में भी वो हिस्सा लेने लगी किंतु अब वह बड़ी हो गयी थी ,उसके अंदर का भय लोगों के सामने,उसे आने नहीं देता,उसे लगता जैसे ही वह लोगों के सामने जाएगी ,सब उसे देखकर हंसने लगेंगे ,अक़्सर उसे ऐसे दृश्य दिखलाई पड़ते ,लोग उसकी हंसी उड़ा रहे हैं।
धीरे-धीरे उसकी कलाकारी में निखार आता जा रहा था , प्रशंसकों की संख्या बढ़ती जा रही थी , उसने क्या नित्या ने फोन पर ''तमन्ना पेंटिंग्स '' करके एक आईडी बनाई थी और अक्सर उस पर अपनी पेंटिंग्स डालती रहती थी, इससे उसे बहुत प्रशंसा मिलती किंतु साथ ही लोगों की जिज्ञासा बढ़ती जाती और वे कहते -'अब तुम्हारी कला को तो देख लिया अब हम कलाकार को भी देखना चाहते हैं।' लोगों के लिए तमन्ना एक रहस्य बन गई थी, जिज्ञासु प्रवृत्ति के लोग अपने-अपने सोच के आधार पर, उसकी आकृतियां बनाकर डालते और नीचे लिख देते कलाकार-'' तमन्ना'' लोगों की सोच के बांध को रोका तो नहीं जा सकता था। कभी-कभी कोई हंसी मजाक में अजीब सी आकृति बनाकर डाल देते, जिसको देखकर, तमन्ना घबरा जाती हालांकि उसे हंसना चाहिए कि लोगों के मन में उसके प्रति कितनी जिज्ञासा है? किंतु घबरा जाती और सोचती कहीं मैं इसी तरह, उनकी हंसी का पात्र न बन जाऊं।