Khoobsurat [part 8]

 तमन्ना, जब सावी के विचारों से अवगत हुई , तो उसे बहुत दुख हुआ और उसने, सावी से मिलना भी कम कर दिया। वह सावी को अपना हमदर्द और दोस्त समझने लगी थी हालांकि वह अभी उससे इतनी नहीं खुली थी, कि वह अपने दिल की बात उससे कह सके फिर भी, उससे अपनेपन का लगाव सा हो गया था  उसे लगता था ,सावी उसे समझती है किंतु जब मेले में उसने, सावी के विचार सुने , तो उसे बहुत दुख पहुंचा और उसने सावी से मिलना छोड़ दिया। 


अक्सर सावी, उससे मिलने के लिए छत पर आती किंतु तमन्ना को न देखकर,उदास हो , वापस लौट जाती, उसे भी जैसे ''तमन्ना'' की आदत सी हो गई थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं' तमन्ना' को उसने खो तो नहीं दिया ,उनकी बातें तो नहीं सुन ली हैं। यदि वह तमन्ना से मिले, तो उससे पूछे- कि आखिर क्या हुआ है ?शुरू -शुरू में तमन्ना उसे अच्छी नहीं लगती थी किन्तु धीरे -धीरे साथ में रहते, उसे अच्छी लगने लगी थी। वह जानती थी ,तमन्ना साधारण सी लड़की है ,उसमें कोई बनावट नहीं है ,यही सादगी उसे पसंद आई।

 मेले में उसने जो भी कहा - वो तो ऐसे ही ,लड़कियों को दिखाने के लिए कह दिया था। तमन्ना के इस बदले हुए व्यवहार का क्या कारण है ?वह जानने के लिए उत्सुक थी किंतु तमन्ना ने उसे ऐसा कोई मौका ही नहीं दिया ताकि सावी अपना पक्ष रख सके।  

'तमन्ना' अब उदास रहने लगी थी, वह किसी से कुछ कहना नहीं चाहती थी, न ही कुछ सुनना चाहती थी,उसके अंदर की'' हीनभावना ''उसे आगे नहीं बढ़ने देती थी। अंदर बहुत कुछ चलता रहता था ,किन्तु बाहर अपने को इतना अभिव्यक्त नहीं कर पाती थी।  उसे लगता था जैसे, उसे कोई समझ ही नहीं पाएगा। अब तो लगता है शायद, मम्मी भी झूठे ही बहका देती हैं। 

चारों तरफ तमन्ना को  निराशा ही नजर आती, तब एक दिन नित्या  उसके पास आई थी गर्मियों की छुट्टियां थी, नित्या उससे मिलने आई थी,लगभग पांच फुट चार इंच लम्बी,पतली -दुबली, गौर वर्ण ,चेहरे पर मुस्कान लिए ,रेशमी मुलायम बाल ,एक पल को तो तमन्ना को, उससे ईर्ष्या महसूस होने लगी किन्तु उसकी मुस्कान ने जैसे उसे आगे बढ़ने ही नहीं दिया। नित्या ने स्वयं ही आगे बढ़कर तमन्ना को गले लगा लिया ,ऐसा अपनत्व तो आज तक किसी ने नहीं दिखलाया ,वो स्वयं ही कहाँ, किसी से अपने भावों को ठीक से व्यक्त कर पाती है ?इसका अपना तरीका है किन्तु जो भी है, देखकर और मिलकर तमन्ना को अच्छा लगा, एक पल के लिए जैसे वो अपने ग़म भूल ही गयी थी। 

नित्या ने ढेर सारी बातें कीं ,उसने अपनी बुआ को अपने घर की, आस -पास की ,स्कूल की बातें बहुत सारी बातें बताई ,उसकी बातें सुनकर तमन्ना मुस्कुरा तो रही थी किंतु ऐसा लग रहा था ,उसकी ये मुस्कान झूठी है नित्या ने तमन्ना को अपने में ही खोये देखा ,उसके चेहरे पर उदासी देखी , नित्या को अच्छा नहीं लगा। जब दोनों ,तमन्ना के कमरे में साथ थीं ,नित्या  ने उससे पूछ ही लिया- तुम इस तरह दबी- दबी सी और बुझी- बुझी सी क्यों हो ?

नहीं, ऐसा तो नहीं है ,अपने को व्यस्त दिखलाते हुए तमन्ना बोली। 

मुझे तो ऐसा नहीं लगता,तेरे चेहरे पर चमक नहीं ,मुस्कान तो न जाने कहाँ खो गयी है ? तुझे याद है ,तू खुलकर कब मुस्कुराई थी ?नित्या उसके सामने बिस्तर पर लेट गयी और उसके चेहरे को देखने लगी। 

तो क्या करूं? मैं सुंदर भी नहीं हूं,तेरी तरह आकर्षक भी नहीं , मुझसे कोई दोस्ती भी नहीं करना चाहता। न जाने ईश्वर ने मुझे क्या सोचकर बनाया है?उसके मन का दर्द बाहर आ ही गया। 

 ऊपर वाले को दोष मत दे ! तू अपने आप को पहचान ! क्या  तेरा रूप- रंग ही तेरी पहचान है ,क्या तुझ में कोई और काबिलियत नहीं है, कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो तुझसे भी ,ज़्यादा देखने में बुरे लगते हैं,तू इतनी भी तो, बुरी नहीं लगती है, कहते हुए उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। हां, यह कह सकते हैं कि एकदम सुंदर नहीं है आकर्षक व्यक्तित्व  तो नहीं है किंतु यह नहीं कह सकते कि तुम देखने योग्य ही नहीं हो या तुम दोस्ती करने के योग्य ही नहीं हो। जब तुम्हें ईश्वर ने बनाया है तो अवश्य ही तुममें कुछ विशेष होगा ,अपनी उस क़ाबिलियत को बाहर निकालो और अपने इस दर्द को भी दबाकर नहीं बैठना है ,इसे बह जाने दो !

यह बात तो मुझसे  मम्मी ने भी कही थी। 

तब तुमने क्या किया ?उनका कहना माना। इस तरह दो-चार लोगों के कहने पर ''गम के अंधेरों'' में डूब में  डूब जाना भी ठीक नहीं , क्या जिंदगी यही से शुरू होकर, यहीं पर खत्म हो जाएगी ? जिंदगी को जीना चाहती हो तो उस हर पल को जियो ! अपने अंदर की तमन्ना को बाहर निकालो ! तुम्हें लगता है,तुम्हारे साथ इस जिंदगी ने खेल खेला है, तो क्यों ना तुम भी इस जिंदगी के साथ एक खेल खेलो !

कैसा खेल ? आश्चर्य से तमन्ना ने उससे पूछा -एक तमन्ना जो बहुत बड़ी कलाकार है, लेकिन किसी के सामने नहीं आती है। 

और दूसरी....... 

सब अभी पूछ लोगी, जब से आई हूं एक बार भी मुझसे प्यार से बैठ कर बातचीत नहीं की है, अपनी जीवन की परेशानियों में, मुझे भी उलझा दिया है। कहते हुए, नित्या ने, उसके लिए एक रहस्य बना दिया। आखिर ये  क्या करने के लिए कह रही है,और क्या करना चाहती है ?तमन्ना के मन में यह बेचैनी बढ़ रही थी।

तमन्ना को इस तरह सोचते देखकर नित्या बोली -फिर से सोचने लगी ,अब दिमाग़ पर ज्यादा ज़ोर मत ड़ाल !मन को शांत कर गहरी स्वांस ले ,बेचैनी ,दर्द ,झिझक सब भूल जा ! मन को हल्का कर ले, खुले आकाश में उड़ सके अपने को इतना हल्का बना ले ताकि तू अपने विचारों को ऊंचाई पर ले जा सके।वहां न ही कोई तेरा मित्र है ,न ही रिश्तेदार !बस तू ही तू है ,जो अपने लिए जीती है। अपनी कल्पनाओं को नई उड़ान देती है। तुझे किसी के लिए क्यों जीना है ? पहले अपने लिए तो जीकर देख ! अपने आपको खुश रख ,चेहरे पर ये एक ही मुस्कान ,न जाने कितने कमाल कर जाती है ?उसे क्यों छुपाया हुआ है ?क्यों ये गंभीरता का लबादा ओढ़ा है ? जब तू अपने लिए जीना सीख़ लेगी तो दूसरे अपने आप ही, तुझसे दोस्ती करना चाहेंगे।   

क्या तमन्ना पर नित्य की बातों का कुछ असर होगा या नहीं ,क्या अब वो ज़िंदगी को नए सिरे से देखना आरम्भ कर देगी ? नित्या तमन्ना से किस खेल की बातें कर रही थी ?जानने के लिए आइये आगे बढ़ते हैं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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