Khoobsurat [part 6]

 एक दिन शिल्पा, बगीचे में बैठी, कोई  चित्र बना रही थी। मनमोहन सर ! ने ही कहा था-' प्रकृति चित्रण'' 'बनाना है ,प्रकृति से जो तुम्हें महसूस होता है, जैसी तुम्हें प्रकृति नजर आती है, उसका चित्र बनाकर लाओ !सभी छात्र कुछ दूरी बनाकर अपने तरीके से उस प्रकृति का चित्र अपने -अपने नजरिये से ड्राइंग के कोरे पन्नों पर उकेर रहे थे। उसी  पेड़ के पीछे ,दूसरी तरफ कुमार बैठा हुआ, अपना कोई कार्य कर रहा था ,तभी उसे लगा ,जैसे उस पेड़ के पास वो अकेला ही नहीं है, उसे  किसी की आहट भी महसूस हुई ,तब वह इधर -उधर देखता है और  पेड़ के दूसरी तरफ झांककर देखने लगा।

 वास्तव में सुंदर चित्र बनाया है,चित्रकारी करती एक लड़की को देखकर, वह बोला ,उसके क़रीब आ गया ,तब तक उसने शिल्पा को पहचान लिया था और शिल्पा की तरफ देखकर, बोला -अरे तुम !तुम तो वही हो न..... जो उस दिन बस में मुझसे टकराईं थीं ।


 शिल्पा ने एक नजर उसे देखा ,उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आए बोली -हां,और उस दिन मैं नहीं तुम टकराये थे।  उसकी कला की प्रशंसा की इसीलिए उसे धन्यवाद !कहा।  

क्या तुम जानती हो ? 'तमन्ना 'आज के समय की उभरती कलाकार है ,अब उभरती क्या ?लोग तो उसे जानने लगे हैं। उसके जैसे  भावों को उकेरना हो या फिर उसके जैसा' दृश्य चित्रण' हर कोई नहीं बना  सकता। 

हाँ ,अपने चित्र में ध्यान देते हुए शिल्पा बोली -हाँ, मैंने उसका नाम सुना है, अच्छी पेंटिग्स बनाती हैं।मुझे लगता है ,तुम उसके अच्छे प्रशंसक हो। 

ख़ाली प्रशंसक ही नहीं ,बड़े वाला प्रशंसक हूँ, उसकी बातें सुनकर शिल्पा हंस दी ,तब जैसे उसे ध्यान आया और बोला -ये तुम किस तरह से बातें कर रही हो ?क्या तुम्हें अपने सीनियर से बात करने की तहज़ीब नहीं ? वो कितनी बड़ी कलाकार है ?

तुम्हें कैसे मालूम ?वो बड़ी कलाकार है ,एक दो प्रतियोगिता जीतने से कोई महान नहीं बन जाता ,अभी उसे ''उभरता कलाकार'' कह सकते हैं ,क्या तुम उसे जानते हो ?  उससे मिले हो, कभी उसे देखा है,उसकी तरफ देखते हुए पूछा।  

शिल्पा के इस तरह प्रश्न पूछने पर ,कुमार का स्वर धीमा हो गया और बोला -नहीं, देखा है तो क्या हुआ ? उसकी कलाकृतियां बहुत कुछ कहती हैं -ऐसा लगता है-  जो भी कलाकृति वो बनाती है,दिल से महसूस करती है,  मेरे लिए ही बनाती है। शिल्पा के करीब पेड़ के तने से पीठ टिकाकर बैठ गया ,बस, एक बार उससे मिलना ही चाहता हूं ,उसकी आँखों में उम्मीद भरी चमक थी। किन्तु धीमे स्वर में बुदबुदाया -' आज तक उसकी एक तस्वीर तक नहीं देखी ,पता नहीं ,क्यों अपने को छुपाये रखना चाहती है ?

अपने चित्र में व्यस्त होते हुए ,शिल्पा बोली -ये सब तुम, मुझे क्यों बता रहे हो ?

अब जैसे उसे अपनी गलती का एहसास हुआ,तब बोला -मुझे माफ़ करना ,भावुकता में कुछ ज्यादा ही बोल गया, तुमसे भी मैं इसीलिए बात कर रहा हूँ ,तुम भी एक कलाकार हो वरना तुम कहाँ और वो कहाँ ?

तुम इतनी महान कलाकार के प्रशंसक और मैं  छोटी सी कलाकार !उसकी और मेरी तुलना क्या ?कहाँ रहती है ,वो !

सुना तो ये है कि यहीं इसी शहर में रहती है किन्तु कभी उससे मिल नहीं पाया। 

क्यों ?क्या उसने मिलने से इंकार कर दिया ? 

नहीं, ऐसा नहीं है ,वो किसी से भी नहीं मिलती है। 

बड़ी अज़ीब लड़की है ,सोचते हुए शिल्पा ने उससे कहा।

इसमें अज़ीब कुछ भी नहीं है ,बस, वो अपनी पहचान छुपाना चाहती है। 

तुम उसे बहुत समझते हो,वैसे तुम इस कॉलिज में क्या कर रहे हो ? क्या तुम भी आर्टस में हो ?

नहीं ,मेरा विषय' विज्ञान' है किन्तु  जबसे तमन्ना की पेंटिंग्स देखीं हैं ,आर्ट का भी दीवाना हो गया हूँ। 

मुझे तो लगता है ,तुम्हारी कला में नहीं, कलाकार में रूचि दिखलाई देती है, हँसते हुए शिल्पा बोली।  

शिल्पा की बात सुनकर वो भी मुस्कुरा दिया और बोला -उसे लेकर मेरे कुछ सपने हैं ,जब वो मिलेगी तो उससे बहुत कुछ कहने का मन है।   

तुम उसके सपने देखो !मैं चली !मेरा भी काम हो गया ,कहकर शिल्पा ने चित्र अपनी फाइल में रखा और अपना सामान समेटने लगी।

क्या अपना बनाया चित्र दिखलाओगी नहीं ? वहीं बैठे -बैठे कुमार ने कहा। 

नहीं ,तुम्हें तो' तमन्ना' के चित्रों में ही दिलचस्पी है ,तुम्हें मेरा बनाया चित्र पसंद नहीं आएगा ,तब तुम्हें अपना चित्र दिखलाकर मैं क्यों अपनी कला का अपमान करवाऊं ? चलते समय उससे बोली -एक बात कहूं ,मैंने सुना है ,एक और प्रतियोगिता है ,हो सकता है ,उसमें उसने भी भाग लिया हो। 

कुमार की आँखें चमक उठीं और पूछा -ये प्रतियोगिता कब और कहाँ है ?

दिल्ली की किसी ''आर्ट गैलरी ''में है ,कहते हुए वहाँ से आगे बढ़ गयी ,तब कुमार उसे जाते हुए देखकर बोला -मैंने तुम्हारी कला का अपमान नहीं किया ,शुरू में ही कहा था -सुंदर है ,स्मरण करो। उसकी बात सुनकर शिल्पा ने पीछे मुड़कर देखा और मुस्कुराकर वापस आ गयी। 

प्रसन्नता से कुमार अपने नाख़ून कुतरने लगा ,ये उसकी आदत है ,अब उसके साथ प्रसन्नता और बेचैनी दोनों ही थीं कभी अंगुलियां मुँह में डालकर काटने का प्रयास करता ,लगता है ,अबकि बार उससे भेंट हो ही जाएगी। 

''तमन्ना'' आईने  के सामने बैठी अपने को निहार रही थी ,इन खूबसूरत पेंटिंग्स के सामने मैं क्या हूँ ?उसे खुश होना चाहिए या फिर दुखी ,इन पेंटिंग्स को देखकर लोग, मुझसे मिलना चाहते हैं ,मेरे प्रशंसक बन जाते हैं किन्तु  मुझसे क्या अपेक्षा रखते हैं ?उसे आज भी अपना वो दिन स्मरण हो आया ,जब पहली बार उसे वो लड़का मिला था। तब लोग, तमन्ना को नहीं पहचानते थे ,एक सीधी -साधी लड़की ,जो इतनी सुंदर चित्रकारी करती थी और खुश होती थी ,तब उस लड़के ने ,उससे कहा था -जितनी अच्छी तुम चित्रकारी करती हो, काश !तुम भी उतनी ही सुंदर होतीं,तुम्हें देखकर तो लोगों को निराशा ही होगी।

ये तो मेरी कला है ,जो मेरे हाथों में है किन्तु ये रूप -रंग तो ईश्वर की देन है ,इसमें कोई बदलाव तो नहीं कर सकती।यदि मेरी कला में इतनी शक्ति होती तो ,मैं सबसे पहले अपने इस रूप -रंग में बदलाव कर अपने को बदल डालती किन्तु ऐसा होना सम्भव नहीं है। अपने को मेकअप के माध्यम से अपने को सजाने का प्रयास करती है ,बहुत हद तक सफल भी होती है किन्तु ये सब कब तक? आईने की उस लड़की से पूछती है ,कभी तो इसे उतारना ही पड़ेगा,इनमें असली'' तमन्ना'' कौन है ?आईने से बाहर या आईने के अंदर। तब वो आईने की तमन्ना से कहती है -एक दिन तुम देखना ,कोई तो ऐसा होगा जो मेरी कला के साथ -साथ मुझसे भी प्रेम करेगा, सभी रूप -रंग के लोभी नहीं होते। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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