भावों भरा दिल, नाजुक सा, कुछ कहता सा......
भाव प्रेम के तो कभी, दिल का दर्द बहता सा।
पत्थर बन जाता, दिल की बात कह न पाता।
अड़ जाता, जिद पर , कुछ न कह,कर पाता।
कहे किससे, क्यों ?पूछता सवाल न रह पाता।
उड़ेल मन के भाव ,अब भार न ये, सह पाता।
कचरा न कहो !इसे यह भाव हैं , मोहब्बत के...
दिखता न कोई अपना, दिल की बात कह पाता।
कहे जिसे दिल की बात, क्या विश्वास वो पाता ?
दिल का दर्द ले अपना, झूठा हमदर्द बन जाता।
कहे दिल की बात,उन भावों का क्या अंजाम हो ?
भरे भाव, दर्द ए दिल सहे, छल न सह पाता।
दिल की बातें [२]
कहनी थीं ,तुमसे कुछ दिल की बातें।
अधरों तक आते ,ठहर जातीं वो बातें।
लब तक आते,ऑंखें भी कह जाती बातें।
समझें न जो ,कहें क्यों ? दिल की बातें।
शायद !कोई समझ सके न......
क्यों कहनी है ? दिल की बातें !
शायद ! पर आकर अटकी हैं ,
कुछ ऐसी गहरी दिल की बातें !
प्रेम ,प्रीत नहीं ,राज़ भरी बातें।
लब तक आते -आते,चुप होती बातें !
गहन अंधकार में छुपी, वो बातें !
यकीं नहीं ,क्यों तुमसे कहनी बातें।
लब पे आते -आते सम्भल जाती, दिल की बातें।
कभी -कभी दिल पर ही लग जाती दिल की बातें।