बाबुल का अंगना छोड़ ! छोड़ ,सभी सखियाँ !
छोड़ आई वो सपने ,खिलती थी,मन की बगिया।
छोड़ दादी की कहानी ,जिसमें थीं सुंदर परियां।
सुंदर यादों को समेटे, चली आई मैं तेरी गलियां।
हाथों में सजाये मेहँदी से बूँटें ,पहनी थी चूड़ियां।
खनकाती तेरे अंगना में ,छनकती है पायलिया।
केशों में वेणी सजी ,धड़कनों की बजे मुरलिया।
आई हूँ ,अंगना में तेरे लिए आ जाओ !सांवरिया !
इस ज़िंदगी पर मेरी ,अब हक़ है ,तुम्हारा।
अब सपनो में तुम हो ,आई हूँ ,तुम्हारे लिए !
प्रेम से अपने सराबोर कर दो,हूँ प्यार तुम्हारा।
सितारों वाली चुनर ओढ़े आई हूँ ,तुम्हारे लिए !
छूटे न ये साथ , होकर रह जाउंगी सदा के लिए।
अब जो भी जीवन है , समर्पण है , तुम्हारे लिए।
सपने देखूंगी तुम्हारे ,उम्मींदे बंधी है ,संग तुम्हारे ,
जीवन धरा पर बहती हूँ, नदिया सी' तुम्हारे लिए !
उम्र -
यह उम्र यूं ही नहीं बढ़ी है ,जनाब !
इस उम्र ने बहुत से अनुभव किए हैं।
बुढ़ापा -
बुढ़ापा यूं ही नहीं आता,
जिंदगी में इसे बहुत तोड़ा और बेबस किया है।
इस बुढ़ापे ने बहुत अनुभव कमाए हैं,
अपनों को गैर और ग़ैरों को अपना बनते देखा है।
जिंदगी-
जिंदगी अहम गुरूर लेकर आई थी ,
बढ़ती उम्र ने हौले से सहला कर समझा दिया।