शेखर ! कुछ समझ नहीं आ रहा है , इस कॉलेज में चल क्या रहा है ? इस कॉलेज का एक अध्यापक, अचानक ही गायब हो जाता है या चला जाता है , किसी को कुछ भी मालूम नहीं है और उसका इलाज'' डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी'' से चल रहा था, जो स्वयं भी लापता हैं , दुनिया के लोगों का इलाज करने निकले हैं। क्या इन हत्याओं में, इनमें से किसी का हाथ हो सकता है।
पता नहीं ,सर ! यह केस न जाने कहां से कहां जा रहा है ? या हमें भटका रहा है, हैरान होते हुए शेखर ने कहा।
तुमने कल नितिन को आने के लिए कह दिया था ना.....
जी सर ! विकास ने एक फाइल इंस्पेक्टर सुधांशु के सामने रखी, और बोला - मैंने उसे थाने पर ही बुलाया है, आज हम उस कॉलेज में नहीं जाएंगे।
ये कौन सी फाइल है ? फाइल को खोलकर देखने का उपक्रम करते हुए।
ये प्रकाश के केस की फाइल है ,सर ! हमारी जॉंच चल रही है ,उसके पिता ने बहुत बड़ा वकील किया है।
ये अमीर लोग पैसे के बल पर,कुछ भी कर सकते हैं ,थोड़ा सतर्क रहना। अच्छा !ये बताओ ! नितिन यहां आएगा , कहीं ऐसा ना हो, भाग ही जाए सुधांशु परेशान होते हुए बोला।
कुछ देर इंतजार कर लेते हैं, नहीं आता है तो उसे लाने के लिए किसी हवलदार को भेज देंगे विकास ने उसे आश्वस्त किया।
नितिन मन ही मन घबराया हुआ था और उसे लग रहा था, कि पुलिस वालों को उस पर शक हो गया है। नहीं जाऊंगा तो और ज्यादा शक होगा, यह सोचकर वह सुमित से कहता है , मैं थाने जा रहा हूं।
हाँ जाओ ! अब सुमित और रोहित को अब उस पर इतना विश्वास नहीं रह गया था। वह उससे बच रहे थे, उन्हें लगता था उसके कारण कहीं हम भी ना फंस जाएं । अच्छा !एक बात बताओ !
क्या ? नितिन ने रुक कर पूछा।
सच-सच बताना , क्या सच में ही, तुमने किसी को मारा है। फोटो में जो लड़की तुम्हारे साथ थी ,वो कौन थी ?
तुम मेरे दोस्त होकर,यह कैसी बातें कर रहे हो, क्या तुम लोगों को लगता है ?मैं किसी की हत्या कर सकता हूं ?
पुलिस वालों ने जो फोटो दिखाए थे उन्हें देखकर तो ऐसा ही लगता है, रोहित स्पष्ट बोला।
अरे यार ! मैं नहीं जानता वह लड़की और वो लड़का कौन है? लेकिन हां मेरा हमशक्ल है।
कपड़े भी उसने तुम्हारे जैसे ही पहने हैं, हमशक्ल कैसे हो सकता है ? किसी की शक्ल भला इतनी कैसे मिल सकती है ?
अब तुम लोग क्या मुझे अपराधी साबित करना चाहते हो।
नहीं, हम तो सच की गहराई तक जाना चाहते हैं।
पहले पुलिस वालों से निपट लूं, फिर तुमसे भी बात करूंगा यह कहकर नितिन वहां से निकल गया। तभी एक कॉलेज के कर्मचारी ने उसे रोक कर पूछा - तुम कहां जा रहे हो ?
मन ही मन नितिन बड़बड़ाया और बोला -अब क्या तुम्हें भी बताकर जाना होगा ?
नहीं, प्रिंसिपल साहब !तुम्हें पूछ रहे हैं।
मैं वापस आकर उनसे मिलूंगा, यह कहकर नितिन आगे बढ़ गया।
थाने में सभी उसकी प्रतीक्षा में थे, विकास ने तो किसी हवलदार से कह भी दिया था किंतु नितिन को देखकर विकास बोला -लीजिये ! वो आ गया। सब शांति से अपनी कुर्सी पर बैठ गए।
नितिन को, कुर्सी पर बिठाकर सुधांशु ने शांतिपूर्वक नरम शब्दों से नितिन से पूछा -जब तुमसे सौम्या ने इनकार कर दिया था, और तुम परेशानी में थे। जब तुम इस कॉलेज से, बाहर गए थे, क्या सोचकर बाहर निकले थे ?
मैं नहीं जानता था, मुझे कहां जाना है और क्यों जाना है ?कुछ समझ नहीं आ रहा था , बस यहां से कहीं दूर चले जाना चाहता था।
तब तुम शिमला कैसे पहुंचे।
पता नहीं, उस समय क्या सोच रहा था और कहां जा रहा था ?
अच्छा एक बात बताओ ! क्या उस समय या रास्ते में, बस में या ट्रेन में तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिला था , जो तुमसे सहानुभूति रखता हो या जिसके सामने तुमने अपनी बातें कही हों।
नहीं तो, मुझे तो नहीं लगता कि कोई ऐसा व्यक्ति मिला था जो मेरा हमदर्द हो सकता था।
याद करो ! दिमाग पर जोर डालो, शायद कुछ ऐसी बात याद आ जाए , जो इस केस के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है और तुमन उसे पर ध्यान ही नहीं दिया।
नितिन ध्यान से सोचने लगता है, वह कॉलेज से कब और कैसे चला था ? और राह में उसने कब बस और ट्रेन बदली। तभी अचानक, उसे याद आया। हां सर ! एक व्यक्ति था, मैं चुपचाप अपनी जगह पर बैठा हुआ था,,उदास था परेशान था किंतु वह व्यक्ति मुझे देखे जा रहा था। कुछ देर बाद मुझसे बोला -' कहां जा रहे हो ?' मैंने पहले उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि मुझे उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। वह व्यक्ति चुपचाप बैठा रहा, कुछ देर के पश्चात बोला -अपने मन में जो भी भाव है , उनको प्रकट कर देना ही बेहतर होता है। उन भावों से हमें कभी-कभी सुख भी मिलता है और दुख भी मिलता है।
देखने में वह व्यक्ति कैसा था ? अचानक से विकास ने पूछा।
सोचते हुए नितिन बोला - दाढ़ी बढ़ी हुई थी, बाल बिखरे थे किंतु देखने से लग रहा था लंबे सफर के कारण उसकी यह हालत हुई है ,करीब चालीस या पेंतालिस के करीब उसकी उम्र रही होगी और बातचीत से लग रहा था कि वह बहुत ही, पढ़ा लिखा और समझदार इंसान है।
क्या तुमने उससे ,उसका नाम पूछा ?
हां पूछा था , किंतु नाम के बदले वह सिर्फ मुस्कुरा दिया , उसने अपने विषय में कुछ और बताया , तुम बताओ ! तुम्हारी उससे क्या बातचीत हुई ?
वह लगातार मेरी आंखों में देख रहा था, और मुझे टटोल रहा था। न जाने अचानक क्या हुआ ? उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं, शायद मैं सो गया था।
वह व्यक्ति वहीं था, या वहां से चला गया था।
जब मैं जागा, तो वह मुस्कुरा रहा था और बोला -दिल पर घाव लगे हैं , उनका मरहम लेने जा रहे हो। किसी ने गहरी चोट दी है, यह सुनकर मैं आश्चर्य चकित रह गया कि वह क्या कह रहा है और सही कह रहा है। तब मैंने पूछा -क्या तुम ज्योतिषी हो।
नहीं, मैं मन की बात पढ़ लेता हूं , मन में जो कुछ भी है, उसे निकाल फेंको ! अब बदले की बारी है यही तो लोगों को मिलता आया है, धोखा !धोखा सिर्फ धोखा ! इसका परिणाम उन्हें भुगतना होगा।
यह आप क्या कह रहे हैं ? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
समय के साथ सब समझ जाओगे, उसने जवाब दिया। बस ध्यान लगाना, और मैं तुम्हारे करीब हूंगा। तुम्हारा बदला भी पूरा हो जाएगा। यह कहकर वहां से चला गया। किंतु मैंने फिर कभी उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया था । वैसे ही कुछ भी कह कर चला गया। इस बात को मैंने ऐसे ही जाने दिया, इसलिए इस बात का आपसे या किसी से भी जिक्र भी नहीं किया। मुझे यह बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं लगी।