Middle class life

 मध्मवर्गीय जिंदगी, एक आम आदमी की तरह ही होती है बल्कि वह  'आम आदमी ''ही होता है और आम आदमी 'वही जिसका सम्पूर्ण जीवन समझौते करते हुए बीतता है। ''आमदनी अठन्नी , खर्चा रुपया ''उसके पास न बहुत अधिक पैसा होता है और न ही वह बहुत गरीब होता है। वह हमेशा दो पाटों के मध्य में, अपने को फँसा हुआ महसूस करता है। उसकी इच्छाएं ,आवश्यकताऐं बहुत होती हैं, वह भी एक अच्छी जिंदगी जीना चाहता है किंतु साधन सीमित होने के कारण , वह खुलकर जी भी नहीं पाता। उसके उत्तरदायित्व बहुत अधिक होते हैं। 


 गरीब व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों  से मुक्त हो जाता है,उससे क्या कोई उम्मीद लगायेगा ?किन्तु मध्मवर्गीय व्यक्ति'' दिलदार'' भी होता है। यदि उसकी अपनी जेब में पांच रुपया भी है ,तो उससे भी ,गरीब व्यक्ति या जरूरत मंद की सहायता के लिए तत्पर रहेगा  क्योंकि ' जरूरत और भूख 'का एहसास उसे भी होता है ,इसलिए दूसरे की परेशानी को शीघ्र ही समझ लेता है। गरीब तो पहले से ही दीन हीन है,वो क्या किसी का सहयोग करेगा ? समाज के चंद लोग, उसकी सहायता का कभी -कभी कार्यभार उठा लेते हैं।  आवश्यकता पड़ने पर, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह भीख भी मांग सकता है, उसको कोई कुछ कहने वाला नहीं। 

 किंतु हमारे मध्यम वर्गीय परिवार, का व्यक्ति समाज से जुडा होने के साथ-साथ आत्मसम्मान भी रखता है। रात- दिन परिश्रम करता है, उन्नति के लिए आगे बढ़ना चाहता है किंतु भीख मांग कर नहीं खाएगा क्योंकि समाज के लोग उसे देखकर क्या कहेंगे ? उसे ऐसा एहसास होता है, कि लोग उसे जानते हैं, उसका समाज में एक रुतबा है। ऐसी गलतफ़हमी में भी वो जीता है। 

मासिक वेतन मिलने पर ,उसका जीवन बजट पर ही निर्भर रहता है। कम से कम आय में अधिक से अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है। इतना ही नहीं ,जुगाड़ से भी ,कई कार्य निपटा कर खुश हो लेता है। ऐसे में अपने को किसी वैज्ञानिक से कम नहीं समझता किन्तु ये बात वो ही समझता है कि सी मित आय में जीना उसकी मजबूरी बन गयी है। उसे माता -पिता की बीमारी ,पत्नी की आवश्यकताओं को पूर्ण करना ,बच्चों की शिक्षा के साथ -साथ भविष्य के लिए भी जोड़ना होता है ताकि बच्चों के विवाह इत्यादि में काम आ सके। 

अपने दैनिक या छोटे -मोटे खर्चों में भी कटौती करने का प्रयास करता है ,जैसे -सालों से उसने कोई फ़िल्म नहीं देखी क्योकि टिकट के पैसे बचाकर किसी अन्य काम में आ जाएगें यही सोचकर महीनों उसने पहनने के लिए कोई नया कपड़ा नहीं लिया ,ताकि उस पैसे से बच्चो की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकेगा। पति -पत्नी दोनों ही गाड़ी के दो पहिये होते हैं ,यदि पत्नी सहयोग देने वाली मिल जाती है तो जीवन सार्थक हो जाता है किन्तु इसके विपरीत मिले तो दिन परिश्रम में और रात्रि झगड़े में, सोचते हुए कटती है। 

तब भी मध्मवर्गीय परिवार छोटी -छोटी खुशियों को जीता है ,जब बंटू के जन्मदिन पर माँ हलवा -पूरी बनाकर खुश होती है ,वहीं बंटू अपने दोस्तों को देख 'केक ' की मांग करता है ,उसकी ख़ुशी के लिए ही सही, जुगाड़ से या फिर अपनी आवश्यकता को मार वो अपने बेटे की ख़ुशी के लिए छोटा सा ही सही ''केक ''लाता है। वर्तमान में जीते हुए भी भविष्य को संवारने की चिंता सताती है। ऐसे में भी ,सिलेंडर बढ़ते दाम ,बढ़ती महंगाई उसके आगे बढ़ते कदमों को जकड़ने का प्रयास करती है जिसका उसके बज़ट पर असर पड़ता है और उसकी सम्पूर्ण योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं। वो कभी अपने को बेचारा तो कभी विवश पाता है। 

धनी वर्ग के लोग, उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं होती, उतना ही उनमें अहंकार भरा होता है। वे अपनी संपूर्ण आवश्यकताऐ पूर्ण कर सकते हैं किंतु आगे वे भी बढ़ना चाहते हैं ,और पैसा !और पैसे की लालसा ! उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती रहती है। वे समाज के, दमदार, इज्जतदार, पिलर है। उनका रहने सहने का तरीका अलग ही होता है। यह सामान्य जन से अलग, समाज में रहते हुए भी समाज से कटे रहते हैं। उनका मेल , उनके साथ के ही, लोगों से होता है। मध्यम वर्गीय इंसान, उन्हें देखकर आगे बढ़ने का प्रयास करता है  किंतु उसके उत्तरदायित्व, इतने अधिक होते हैं वह उन्हें जानकर भी नजरअंदाज  नहीं कर  सकता। 

 वह सन्यासियों की तरह घर -परिवार छोड़कर भी नहीं जा सकता। अपने परिवार का भरण -पोषण  करता है इतने दबाव के पश्चात भी, वह खुश रहने का प्रयास करता है और आगे बढ़ता जाता है। ताउम्र जोड़ -घटाव के चक्रव्यूह में फंसा रहता है। उसे ही समाज की परवाह होती है और अपने को समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा समझता है।  हर सुबह की ताजगी के साथ एक नई शुरुआत करता है शाम को थकहार कर सो जाता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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