थाने में अचानक न जाने क्या हुआ ?वो लोग रचित को बाहर भेजने की बजाय, अंदर लॉकअप में रखना चाहते हैं। अब तक रचित को लग रहा था, कि वह सही और सच बोलेगा तो वे लोग ,उसे जाने देंगे, मैंने जो कुछ भी था ,आपको सब बता दिया और जो कुछ भी पूछना चाहते हैं ,मैं बताने के लिए तैयार हूँ किन्तु इस तरह मुझे आप बंद नहीं कर सकते।
हम तुम्हें जेल में नहीं भेज रहे हैं, अपने साथ ही रखेंगे क्योंकि अभी हमारे पास एक और केस आ गया है पहले उससे निपट लें, तब तुमसे बाकी की कहानी सुनेंगे। विकास, रचित को अपने साथ ले गया और सुधांशु, उस सिपाही को साथ लेकर, 'डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी' के पास पहुंच गया।
डॉक्टर साहब! आप यह क्या कर रहे हैं ?
क्यों, मैं क्या कर रहा हूं ? मुझसे पूछते हैं, अपने आप को नहीं देखा कि तुम लोग क्या कर रहे हो ?
क्यों, हमने क्या किया है ?
आप जानते हैं न... 'मैं मन की बात पढ़ लेता हूं ,' आपने यहां रचित को बुलाया है , क्या यह सही है ?
हां बुलाया था , किंतु उससे आपका क्या लेना देना है ? आप उसे कैसे जानते हैं ?यहाँ तो आपको कोई नहीं जानता ,बस आपके एक मित्र ही तो आपको जानते हैं ,क्या नाम है ,उनका !सोचने अभिनय करते हुए ,सुधांशु कहता है -'सुखविंदर 'मैं सही कह रहा हूँ न....
मुझे मत समझाइए ! आप उससे कुछ न कुछ तो पूछ रहे थे ।
हां, सामान्य जानकारी ले रहे थे , तब तक सुधांशु चश्मा पहने खड़ा रहा और उसने एक बार भी, नजर भर कर डॉक्टर की तरफ नहीं देखा और बोला- डॉक्टर साहब ! आप अपना ये तरीका , अपने क्लीनिक में मरीजों पर आजमाइए , यहां हमारे सिपाहियों के साथ, इस तरह की छेड़खानी करना उचित नहीं है। आप इसे तुरंत ही ठीक कीजिए। सिपाही दयाराम की तरफ इशारा करते हुए बोला।
ओह ! तो आप समझ गए, यदि ना करूं तो..... आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे,बड़े आत्मविश्वास से डॉक्टर बोला
डॉक्टर साहब !आप यह ठीक नहीं कर रहे हैं, आप स्वयं तो ठीक हैं , ही नहीं और अपने साथी को भी गलत राह दिखा रहे हैं, आप क्या समझते हैं ? ऐसे कार्य करके आप कानून से बच जाएंगे। देखिए! गलत कार्यों की हमेशा सजा मिलती है, चाहे अपराधी, कितना भी होशियार क्यों न हो ?आपने अपनी शिक्षा और विद्या का गलत उपयोग किया है।
मैंने किया ही क्या है ?आपके पास मेरे विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं है ,ऐसे ही जबरदस्ती मुझको यहाँ ले आये हैं।
हम सिर्फ पूछताछ के लिए आपको लाये थे ,हम लोग ये जानना चाहते थे कि आप उस तहखाने क्या कर रहे थे ?बस छोटी सी तो बात थी किन्तु आप न जाने क्या -क्या सोच रहे हैं ?और जब आपने कुछ किया ही नहीं है ,तो आपको क्या फ़र्क पड़ता है ,यहाँ रहें या तहखाने में ,आप तो सन्यासी हैं। ये जो आपने हमारे सिपाही की' मति भर्मित' की है ,ये आपने अच्छा नहीं किया ,इस तरह तो आप ,हमारे शक को पुख़्ता कर रहे हैं।
कैसा शक़ ?
यही कि आप अपनी विद्या का दुरूपयोग कर रहे हैं।
क्या आपने मेरे भांजे को यहाँ नहीं बुलाया ?
ये आपसे किसने कहा ?हम तो आपके भांजे को जानते तक नहीं , यदि हमें बुलाना ही है तो आपके भांजे को क्यों बुलाएँगे ?आपके परिवार के लोगों को बुलाएँगे। ये सब आपसे किसने कहा ?
इसने ही तो बताया था ,ये कह रहा था -आपका भांजा अब सब बता देगा ,आपने क्या -क्या कांड किये हैं ?तब आपकी सारी' हेकड़ी निकल 'जाएगी।
नहीं ,ये ऐसा नहीं कह सकता।
क्यों ,नहीं कह सकता ,कहते हुए डॉक्टर ने चुटकी बजाई और सिपाही से बोला -तुम्हारे सब लोग क्या कर रहे हैं ?
वह कुछ कहना नहीं चाहता है फिर भी न जाने क्यों? बोले जा रहा है और कहता है -यह लोग आपके भांजे से पूछताछ में जुटे हुए थे और तुम्हारे खिलाफ उसने बहुत सारी बातें बताई हैं। जैसे भी सबूत मिलेगा तुम्हें पकड़ लिया जाएगा।
डॉक्टर बोला, मिल गया सबूत !
यह तो वहां था भी नहीं, यह तो चाय- समोसे लेने गया था, इसे भी कोई गलतफहमी हो गई होगी।कानून भी ऐसे गवाह को नहीं मानता जिसकी मति उसके अपने वश में न हो।
तो दूसरे से पूछ लेते हैं, तभी दूसरे सिपाही को भी उसने चुटकी बजाकर,पहले ही अपने वश में कर लिया था ।
यह क्या हो रहा है ? इंस्पेक्टर सुधांशु परेशान हो गया और जोर से चिल्लाकर बोला -कोई भी, डॉक्टर की आंखों में मत देखना !
तब डॉक्टर ने पहले वाले सिपाही से कहा -इधर आओ ! आकर यह गेट खोलो और मुझे आजाद करो !
नहीं, दयाराम तुम्हें इसकी इजाजत नहीं है, किंतु दयाराम के कानों तक इंस्पेक्टर सुधांशु के शब्द गए ही नहीं और उसने कूंजी ली और ताला खोलने लगा। नहीं तो रुको ! इंस्पेक्टर डांटते हुए दौड़कर उसके हाथ पकड़ता है। दयाराम जानता है, कुछ तो गलत कर रहा है, किंतु वह अपने वश में ही नहीं है। वह डॉक्टर जो भी कह रहा है, वही दयाराम कर रहा है तभी डॉक्टर दूसरे सिपाही से कहता है -इस इंस्पेक्टर को पकड़ लो !
रचित को लॉकअप में डालकर जब विकास वापस आता है तब वह शेखर से पूछता है -क्या हुआ ? सर अभी तक नहीं आए।
पता नहीं, क्यों देर लग रही है ?
चलो, चलकर देखते हैं, जैसे ही वह मुड़ते हैं, तभी उन्हें एक सिपाही को, इंस्पेक्टर सुधांशु को पकड़ते हुए देखता है। अरे यह क्या हो रहा है ? दूसरा यानि दयाराम दरवाजा खोलने का प्रयास कर रहा था।
तभी शेखर चिल्लाया -दयाराम! यह क्या कर रहे हो ?
इंस्पेक्टर सुधांशु चिल्लाया -डॉक्टर ने इनको सम्मोहित कर दिया है, कोई भी डॉक्टर की आंखों में मत देखना। तब तक डॉक्टर लॉकअप से बाहर आ जाता है।
देखा इंस्पेक्टर मुझे कोई नहीं रोक सकता, तुम भी नहीं।तुम जानते नहीं हो ,मुझे संम्मोहन ही नहीं ,मैंने और भी कई विद्याएं सीखीं हैं। मैं चाहूं तो अभी इसी थाने में सबको सम्मोहित करके, तुम सबको लॉकअप में डाल सकता हूं लेकिन मुझे ऐसा नहीं करना है मुझे अपने को आजादी दिलानी है इसीलिए मैं अब जा रहा हूं।
डॉक्टर यह तुम ठीक नहीं कर रहे हो, एक दिन तो पकड़े ही जाओगे और जब पकड़े जाओगे तो तुम्हें सजा से कोई नहीं रोक सकता।
जबकि जब देखेंगे इंस्पेक्टर ! अभी तो मैं जा रहा हूं, कहते हुए उसने चुटकी बजाई और थाने से बाहर निकल गया। उसके बाहर जाते ही अन्य सभी सिपाही सामान्य स्थिति में आ गए और अपने आप को देखकर बोले -हम यह क्या कर रहे थे ? डॉक्टर कहां गए ?
तुम्हारी लापरवाही के कारण वह डॉक्टर भाग गया, इंस्पेक्टर सुधांशु बोला। अब तुम सब एक बार ध्यान से कान खोलकर सुन लो, उसे पकड़ने के लिए सबसे पहले काले चश्मे लगाने हैं कोई भी उसकी आंखों में नहीं देखेगा और जैसे ही वह पकड़ा जाता है ,सबसे पहले उसकी आंखों पर पट्टी बांधना ।
