इंसान एक ऐसा जीव है जो पशु- पक्षी, पेड़ -पौधों सभी का आदर, सम्मान करता है। सबसे प्रेम करता है हमारे बड़े- बुजुर्ग भी कहते हैं -कि हमें हमेशा पशु- पक्षियों से प्रेम करना चाहिए। उनका ख्याल रखना चाहिए क्योंकि वह बेजुबान जानवर है ,हालांकि वह अपनी भाषा में अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते हैं किंतु हम उनकी भाषा समझ नहीं पाते कि वह क्या कह रहे हैं कई बार कुछ पशु हमारे पालतू भी होते हैं जिनके साथ रह- रहकर उनके हाव-भाव व्यवहार से हम उनको समझने लगते हैं और वह हमें समझने लगते हैं एक प्रकार 'प्यारा रिश्ता' बन जाता है।
कई बार तो ऐसा होता है कि कोई पशु या पक्षी पालतू भी नहीं होता किंतु हमारे व्यवहार, हमारी दयालूता को , प्रेम को भी समझ जाते हैं। हमें किसी से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होती किंतु वह हमारे व्यवहार से ही, हमारे प्रेम को समझ कर उस अनजान रिश्ते को अपना लेते हैं और वह हमारे करीब आने लगते हैं ऐसे कई उदाहरण आज भी देखने को मिल जाएंगे, जहां पक्षी स्वतंत्र उड़ते हैं किंतु किसी व्यक्ति विशेष से ज्यादा लगाव के कारण उसके घर पर या उसके इर्द -गिर्द मंडराने लगते हैं।
प्रकृति ने , जिस तरह से हमें यह पेड़ -पौधे ,वनस्पति, औषधियाँ दी हैं, उसी प्रकार हमें यह पशु -पक्षी भी दिए हैं जो प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने में हमारा सहयोग करते हैं। खुले गगन में स्वतंत्र विचरण करते हैं। मानव के स्पर्श मात्र से ही , कोई भी पशु अथवा पंछी समझ जाता है कि यह स्पर्श कैसा है ?और उसे प्यार के बदले, प्यार का एहसास जाता है।
पहले समय में हमारे घरों में गाय -भैंस इत्यादि उपयोगी जानवर पाले जाते थे, जो हमारे खेती -बाड़ी के काम आते थे और गाय -भैंस दूध देती थीं। किंतु अब खेती, आधुनिक औजारों से होने लगी है, अब इतने लोग पशुपालन पर ध्यान भी नहीं देते हैं, धीरे-धीरे स्थान अभाव के कारण भी अब जानवर कोई नहीं पालता है क्योंकि गांवों का भी शहरीकरण होता जा रहा है हर व्यक्ति आधुनिकता की दौड़ में भाग रहा है। दूसरों की नौकरी करके आज अपने को 'लाट साहब' समझते हैं।
हाँ यह बात तो मैं मानती हूँ ,ऐसे घरों में पशु पलते थे ,गाय -भैंसों के कारण दूध -दही की कमी नहीं खलती थी किन्तु तब भी वो किसान गरीब का गरीब ही लगत था इसी कारण से अब किसान भी नहीं चाहता कि उसका बेटा बड़ा होकर किसानी करे। अब वो भी चाहता है ,उसका बेटा पढ़ -लिखकर शहरी बन जाये। कुछ ऐसे व्यवसाय हैं जिनके कारण 'पशुपालन' किया जाता है जैसे -डेयरी फार्म ,मुर्गी फार्म ,सूअर पालन मछली पालन इत्यादि व्यवसाय है यहां पर मांसाहार खाने वालों के लिए ये चीजें उपलब्ध होती हैं।
व्यापार करने वाले भी 'पशु पालते ''हैं किन्तु प्रेम के लिए नहीं ,अपने व्यापार के लिए।'' पशु प्रेम'' के कारण कुछ लोग मांसाहार खाने वालों पर पाबंदी लगाना चाहते हैं किंतु मांसाहार बंद नहीं हो रहा है।
पहले समय में गांवों में गाय -भैंसें पाली जाती थीं , बकरियां पाली जाते थे किंतु आजकल छोटे घर हो गए हैं छोटे घरों में कुत्तों को पाला जाता है, जो 'पशु प्रेमी' है वह कुत्तों का पालन करते हैं, ज़्यादातर घरों में एक कुत्ता दिख ही जाता है, जो 'विदेशी 'होता है ,उसके बाल लम्बे, देखने प्यारा लगता है। किन्तु क्या इन छोटे घरों में कुत्ते रखने की आवश्यकता है ?हम यह कह सकते हैं, कि इसको भी लोगों ने ''स्टेटस सिंबल'' बना दिया है घर में चार लोगों के रहने की जगह है तो पांचवा कुत्ता रहता है,जो पड़ोसी ये कहते हुए इठलाते हैं-'' ,जब ये छह माह का ही था ,इसे तभी खरीदा था ,बीस हजार का आया था। ''उसका खाना ,उसके कपड़े ,उसकी दवाइयां इत्यादि पर बहुत खर्चा आ जाता है।
कुछ ऐसे'' पशु- प्रेमी'' भी हैं जो बाहर सड़क पर यदि कोई घायल जानवर चिल्ला रहा है, भूखा है ,उसे रोटी नहीं देंगे किंतु अपने घर में कुत्ता पालने का अभिनय अवश्य करते हैं। गाय के गोबर से बदबू आती है ,उसके करीब जाते हुए ,नाक -भोंह सिकोड़ेंगे किन्तु कुत्ते की 'पॉटी ''को प्लास्टिक की थैली में ऐसे उठा लेते हैं ,जैसे उसने ''पॉटी ''नहीं की। अब आम भाष में कहा जाये तो ''गू तो गू ही होता है या पॉटी कहने से उसकी फ़ितरत बदल जाती है।
यह शौक इतनी जोर- शोर से बढ़ गया है कि आजकल कलयुग में इंसान, इंसान को ही समय नहीं दे पाता है किंतु कुत्ते के लिए समय अवश्य निकाल लेता है आजकल महिलाएं गर्भवती नहीं होना चाहती हैं , क्यों? क्योंकि उनके पास समय नहीं है, बच्चे का पालन -पोषण कैसे करेंगे? किंतु कुत्ते पालने का समय उन्हें अवश्य मिल जाएगा उसको बड़े प्यार से लाड़-चाव से अपने पास रखती हैं, बिस्तर पर लेटाती हैं,कोई रिश्तेदार यदि घर में आ जाये तो घर में परेशानी का सबब बन जाता है ,यहाँ तक कि पति को भी इतनी अहमियत नहीं मिलती जितनी उस कुत्ते को मिलती है।
ये कैसे ''पशु-प्रेमी ''हैं? उन्हें कपड़े पहनाती हैं , सर्दियों में उसकी देखभाल की जाती है, उसे नहलाया जाता है। किंतु यदि ऐसे में कोई बुजुर्ग हमारे घर पर है ,तो उसे एक कप चाय देते हुए ,पहले चार बात सुनायेंगीं ।
प्रेम तो प्रेम होता है, वह इंसान से किया जाए या फिर पशु-पक्षियों से,आज के आधुनिक युग में जहां घर के किसी एक सदस्य को ठीक से, भोजन देने का भी समय नहीं है, कुत्ते के लिए समय निकाल लेते हैं। ''पशुपालन'' में आजकल कुत्ते का शौक ही, लोगों में ज्यादा चल रहा है। पशु हो या पक्षी यह तो संसार में स्वच्छंद विचरण करने के लिए ही हुए हैं, आजकल कुत्ते पालन इतना आवश्यक भी नहीं है क्योंकि अब इसने बड़े घर नहीं रहे हैं। दो-दो या तीन- तीन कमरों के फ्लैट रह गए हैं।'' कुत्ता पालना '' वह एक ऐसा जानवर है जिसकी लार में' रेबीज के कीटाणु' होते हैं किंतु शौक तो शौक है ,उसके लिए इंजेक्शन लगवा एंगे किंतु पालना जरूरी है।क्या इसे ही'' पशु प्रेम''कहते हैं। जो गाय घर के आंगन की शोभा होती थी ,कान्हा के साथ रहती थी ,आज वे गायें सड़कों पर भूखी फिरती हैं,प्लास्टिक और कचरा खा रही होतीं हैं।
कई स्थानों पर तो गायों के दर्शन तक नहीं होते,कुछ घरों में पहली रोटी गाय के लिए निकाली जाती थी किन्तु अब ये परम्परा भी समाप्त होती जा रही है। जब खाना ही घर में नहीं बनता ,सुबह नौकरी पर जाने की आफ़त जो रहती है। हाँ अभी भी तीज -त्यौहार में गाय ढूंढने चलते हैं ,जो छोटे शहरों में तो मिल जाती हैं ,बड़े शहरों में तो ,वो भी नहीं। ईश्वर की बनाई सभी चीजें हैं ,यहाँ तक की इंसान भी..... उसकी बनाई हर वस्तु से प्रेम होना चाहिए। जो पशु या पक्षियों से प्रेम करते हैं ,तो वही विशेष नहीं ,बाहर भी कोई मिल जाता है ,तो बहुत से 'पशु प्रेमी 'ऐसे भी होते हैं जो सड़क पर किसी बीमार या दुर्घटनाग्रस्त पशु अथवा पक्षी को देखते हैं ,तो उसकी सेवा में लग जाते है। असल में तो यही 'पशु प्रेम 'है।