रचित बताता है ,मामा जी ने ,उस प्रोफेसर को अपने वश में कर ,उसी से उसकी पत्नी की ही हत्या करवा दी। वो जब सामान्य हुए तो पूछा -मेरी पत्नी घर में ,कहीं नहीं दिख रही है। मामा जी चाहते ,तो झूठ बोलकर ,उनसे कुछ और भी कह सकते थे क्योंकि उन्हें तो कुछ भी स्मरण नहीं रहा। किन्तु मामा जी ने जब उन्हें सच्चाई बताई -'तुमने ही, अपनी पत्नी को मार दिया है ,अब तुम्हें उससे छुटकारा मिल गया है।''अब तुम स्वतंत्र हो,वे इतनी आसानी से सब कह गए जैसे कोई विशेष बात नहीं हुई हो।
जब प्रोफेसर साहब को इस बात का पता चला कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ क्या किया है ?तो उन्हें बहुत दुःख हुआ ,वे उसे मारना तो नहीं चाहते थे। तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ इस डॉक्टर से इलाज करवाने से अच्छा था ,मैं ऐसे ही तनाव पूर्ण जीवन व्यतीत करता ,डॉक्टर से बोले -ओ पागल डॉक्टर !तुमने मेरे हाथों से ये क्या करवा दिया ?क्या तुम इस तरह से इलाज़ करते हो ? कहते हुए वह मामा से लड़ने लगा ।
तब मामाजी मुस्कुराते हुए बोले - हमारे दो मन होते हैं,' चेतन मन 'और 'अचेतन मन ! अचेतन मन कुछ और चाहता था, किंतु चेतन मन उस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा है। अचेतन मन तो छुटकारा चाहता था।
ये सब तुमसे किसने कहा ?
तुम्हारे मन ने ,न भी कहता तो भी 'मैं मन की बात पढ़ लेता हूँ। ''कहते हुए डॉक्टर जोर -जोर से हंसने लगा।
तब उन्हें इस बात का बहुत ही अफसोस और दुख हुआ कि मैं इस डॉक्टर के चंगुल में गलत फंस गया। इस डॉक्टर से,अपनी जिंदगी को सरल बनाने के लिए, उनसे इलाज करा रहा था किंतु इन्होंने तो मेरी जिंदगी और दूभर बना दी। मैं तमाम उम्र, इस बात के 'अपराध बोध '' में जीता रहूंगा कि मैंने अपने इन्हीं हाथों से, अपनी ही पत्नी की हत्या कर दी ।
महीनों तक वो परेशान रहे और उन्होंने अपना इलाज कराना भी बंद कर दिया उसके पश्चात एक दिन अचानक, एक पत्र छोड़कर उन्होंने आत्महत्या कर ली। यह बात जब मामा को पता चली , तो वह परेशान हो गए और डर भी गए कि कहीं उसने उस पत्र में मेरा नाम न लिख दिया हो। तब उन्होंने संन्यास लेने का ढोंग रचा और घर से बाहर चले गए ताकि किसी को भी उनके विषय में कुछ पता ना चले।
जिस समय मैं अपने मामा के घर जा रहा था, उसी समय वो बाहर जा रहे थे। मैंने उन्हें देख लिया, और उन्हें पुकारा -मामा जी !
उन्होंने इधर -उधर देखा और मुझे देखकर बोले -तुम यहाँ कैसे ?कहते हुए ,तब वो मुझे, घर के अंदर न लेजाकर एकांत स्थल पर ले गए और मेरे आने का कारण पूछा -तब उन्हें मैंने बताया, कि मैं अपने घरवालों के लिए' गुमशुदा 'हूं, किस तरह छह माह के पश्चात, मुझे मेरे होने का एहसास हुआ है। हो सकता है, उन्होंने मुझे मरा हुआ समझ लिया हो। उन्हें मालूम नहीं है, कि मैं कहां हूं।
तुम सहायता भी किससे लेने गए ,जिसकी स्वयं की ज़िंदगी और सोच बिखरे पड़े थे, शेखर ने कहा।
अपनी बातों को जारी रखते हुए रचित बोला - तब मामा जी ने मुझसे पूछा -मुझे बताओ, तुम मुझसे क्या चाहते हो ?
मैंने कहा -घर चलकर बात करते हैं।
तब वो बोले - मैं घर को त्याग चुका हूं, यह जो बातें मैंने आपको बताई थी, वह मुझे धीरे-धीरे मामा के साथ रहने पर ही पता चली थीं।
चलो, यह बात तो तुम्हारे मामा की हो गयी , किंतु तुम अब हमें यह बताओ ?तुम यहाँ क्यों आये हो ?क्या तुम्हारा इरादा नितिन से बदला लेने का था , तुमने नितिन से बदला लेने के लिए क्या सोचा ? तुम उसके साथ क्या करना चाहते थे ?
यह बात तो,बाद की है, उससे, पहले मामा के घर छोड़ देने कारण ,हमें आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा । मेरे पास तो एक भी पैसा नहीं था। मैं जानता था, नितिन किस कॉलेज में पढ़ता है ? उसके करीब रहने का प्रयास करने लगा। तब मामा ने साधु का चोला पहना और भिक्षा में जो मिलता, उससे हम अपना जीवन यापन करते। मामा लोगों को सम्मोहित करके, उन्हें कुछ आश्चर्यजनक चीजें दिखाते , जिससे उन्हें अच्छा लगता उनके मन की बात उनसे ही पूछ कर, उनकी समस्याओं का समाधान बताते। तब मुझे लगा कि मुझे इस कॉलेज के अंदर जाना चाहिए ,उससे पहले कॉलिज की कैंटीन में काम करने का सोचा किन्तु वहां का डर था हमें जो भी करना था गुपचुप तरीक़े से ही करना था ,तब मैंने' पुस्तकालय अध्यक्ष 'का कोर्स किया।
उन्हीं दिनों, नितिन,सौम्या के इनकार करने के कारण, परेशान चल रहा था , हम लोग कॉलेज के पीछे इस कुटिया में रहते थे। एक दिन,अचानक ही नितिन वहां आ गया,जो मानसिक रूप से बहुत परेशान था। उस समय नितिन को अपनी ओर आते देख ,मामा जी ने तुरंत ही हवन का अभिनय किया और मैं नीचे तहखाने में पहुंच गया। जिसकी जानकारी मामा जी को पहले से ही थी ,वहां कोई आता -जाता नहीं था। न ही किसी को हमारे वहां रहने की भनक लगी।
जब मामा जी को मैंने ,नितिन को दिखाया ,वो उसके पीछे लग गए और न जाने किस तरह से नितिन को अपने वश में कर लिया ?उनके इशारे से ही तो नितिन शिमला जा रहा था। उसे क्या करना है और क्या नहीं ? वह यहां से चला गया, उस ट्रेन में मामा जी भी साथ में थे। ऐसे में इंसान सोचता है कि यह कार्य मैं स्वयं कर रहा हूँ ,उसकी अपनी सोच है। उन्होंने ट्रेन में नितिन से बातें भी की, वहीं उसने उन्हें अपने सामने देखा वरना वह जो कुछ भी कर रहा था उनके इशारे पर ही कर रहा था।
तभी थाने के अंदर से कुछ हलचल होने लगी, इंस्पेक्टर सुधांशु एक सिपाही से बोला - जरा देख कर आओ ! अंदर क्या हो रहा है ?
वह कुछ देर पश्चात वापस आया, और बोला- इसे छोड़ दो ! सुधांशु ने उसका चेहरा देखा, और उससे बोला -हमने तुझे अंदर जाकर देखने के लिए कहा था , तुमसे यह नहीं पूछ रहे हैं कि हमें क्या करना है क्या नहीं करना है।
जब मैंने कहा है, छोड़ दो तो छोड़ दो !
तभी शेखर बोला -अचानक इसे क्या हो गया ? अभी तो यह अच्छा- खासा अंदर गया था।
ओह नो ! सुधांशु को जैसे कुछ स्मरण हुआ और बोला - इसे हमने अंदर भेज कर कितनी बड़ी गलती कर दी ?
क्यों क्या हुआ? विकास ने पूछा।
तब सुधांशु रचित से बोला -अब तुम जा सकते हो। बाकी की कहानी कल बताना।
सर! यह आप क्या कर रहे हैं ? इसे क्यों भेज रहे हैं ? इससे तो हमें सम्पूर्ण जानकारी मिल रही है। तब वह कान में धीरे से बोला -इसकी बहुत सारी जानकारी हमारे हाथ लग चुकी है, यह भी हो सकता है, यहां से जाकर भाग जाए ,तब हम इसे ढूंढ भी नहीं पाएंगे।
हां तुम सही कह रहे हो ? अभी इसे ले जाकर लॉकअप में बंद कर दो !
रचित बोला मैंने क्या किया है ? मुझे जेल में क्यों डाल रहे हैं ? मैं तो सब बता रहा हूं, कि क्या हुआ था ?