इंस्पेक्टर सुधांशु और उनकी टीम ने रचित को थाने में बुला भेजा, थाने में, वह रचित से पूछताछ कर रहे थे हालांकि रचित उनसे अनेक बातें छुपा रहा था किंतु बातचीत के दौरान, धीरे-धीरे उन्हें पता चल ही गया कि वह सरदार जी' सुखविंदर' और कोई नहीं, रचित ही था क्योंकि उन्होंने उसके पीछे अपना सिपाही जो लगा दिया था , उसी ने आकर उन्हें बताया था-' कि कॉलिज के पुस्तकालय का, अध्यक्ष ही ,वही 'सरदार जी ' हैं,जो यहाँ '' डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी ''का मित्र बनकर आया था ,वही ' सुखविंदर' है। इस बात से उन्हें आश्चर्य हुआ और उन्होंने रचित को बुला भेजा।
बातचीत के दौरान ही, उन्हें यह भी पता चल गया कि 'डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी' और कोई नहीं रचित के मामा है। आख़िर उनकी योजना कामयाब रही,उन्होंने जो सोचा था -वैसा ही हुआ।
तुम तो उनके मित्र 'सुखविंदर 'हो न... वे तुम्हारे मामा कैसे बन गए ? तुम दोनों मामा -भांजे ने हमें बहुत घुमाया है।अब हमें सम्पूर्ण सच्चाई बताओ ! आखिर क्या हुआ था ? तुम नहर में कैसे गिरे ? क्या तुम्हें किसी ने ढूंढने का प्रयास नहीं किया ? तुम अब तक कहां थे ? तुम जिंदा हो,यह बात तुम्हारे घरवालों को मालूम नहीं है और यह बात, डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी यानी कि तुम्हारे मामा कैसे जानते हैं ?उन्होंने भी तुम्हारे घरवालों को कुछ नहीं बताया। आखिर तुम दोनों मामा -भांजे क्या करना चाहते हो ?मन में क्या योजनाएं चल रहीं हैं ?
अब तो मुझे लगता है ,तुम नितिन के पीछे हो, नितिन के पीछे आने का तुम्हारा क्या उद्देश्य है ?अब झूठ बोलने से कोई लाभ नहीं है। हमें सब पता चल गया है ,तुम्हारे मामा, नितिन को ट्रेन में किस उद्देश्य से मिले था ?
आपको मामा जी ने तो सब बता ही दिया होगा ,तब मैं क्या बताऊँ ?उदास स्वर में रचित बोला -मुझसे तो कह रहे थे -हमारी योजना विफल नहीं हो सकती और स्वयं ही सब उगल दिया,कहते हुए मेज पर हाथ मारता है।
बुजुर्ग आदमी हैं ,इतने दिनों से तुम्हारे साथ थे ,अब पुलिस वालों की' सेवा' सहन न कर सके इसीलिए सब उगल दिया। रचित हताश हो चुका था ,निराशा से बोला -नितिन और मैं अच्छे मित्र रहे हैं , हम सब एक साथ रहते थे। छुट्टियों में जब नितिन हमसे मिलने आया था। अचानक ही उसके साथ एक हादसा हो गया , उस हादसे में एक लड़की की जान चली गई।
कैसे और क्या हुआ? विस्तार से बताओ ! और वह लड़की कौन थी ?
तब रचित ने सम्पूर्ण घटना का विस्तार से विवरण किया, किस तरह वह पानी में गिरा, यह भी बताया,मेरे पानी में गिरने के पश्चात भी, वो लोग मुझे ढूंढने का प्रयास कर रहे थे। पानी का बहाव बहुत तेज था। मैं पानी के साथ, बहता चला गया। मैं पानी से बाहर आने के लिए जूझ रहा था किन्तु उस तेज पानी का अधिक देर तक सामना न कर सका। अचानक की मेरा सिर एक पत्थर से टकराया और मैं बेहोश हो गया।
जब मुझे होश में आया, तब मुझे पता चला कि मेरे साथ हुई उस घटना को छह माह हो चुके थे। मैं छह महीने तक उसी अस्पताल में था ,मेरे घरवालों के और मेरे विषय में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। मैं कोमा में जो चला गया था, उसके पश्चात जैसे ही मुझे होश आया, मुझे सारी घटना स्मरण हो आईं। मैंने डॉक्टर से पूछा -मुझे यहाँ कौन लाया ?
तब उन्होंने बताया ,कोई अनजान व्यक्ति था,जिसने तुम्हें यहाँ भर्ती करवाया और कुछ दिन उसने तुम्हारी दवाई -गोलियों का खर्चा भी उठाया,एक माह के पश्चात, पता नहीं ,फिर वो क्यों नहीं आया ? तब मैं अपने घर वापस जाने के लिए , सीतापुर के लिए बस में बैठ गया था, मुझे नितिन पर बहुत क्रोध आ रहा था।तब मन ही मन मैंने उससे बदला लेने की ठान ली। मैं उस बस से उतर गया, मैं अपने घर ना जाकर, अपनी मामी के घर चला गया।
जैसा कि आप जानते ही हैं मेरे मामा एक ''मनोचिकित्सक'' है, मामा को भी न जाने क्या सनक थी ? उनके पास इसी कॉलेज के प्रोफेसर का इलाज चल रहा था, अक्सर उन पति-पत्नी में झगड़ा होता रहता था और मेरे मामा- मामी में भी अक़्सर झगड़ा होता रहता था।
पति -पत्नी में झगड़ा होना ये कोई विशेष बात नहीं है ,ये तो अक़्सर सभी पति -पत्नी में होता है ,क्यों शेखर जी ?सुधांशु की बात सुनकर शेखर मुस्कुरा दिया।
मामा ,मामी से तो कुछ नहीं कह सकते थे, किंतु उन्होंने अध्यापक से कहा -एक दिन उसको अपने रास्ते से ही हटा दो ?क्योंकि आपकी परेशानी की जड़ वो महिला ही है ,जब जड़ ही समाप्त हो जाएगी ,तो झगड़े नहीं होंगे और आप निश्चिन्त होकर अपना जीवन जी सकेंगे।
डॉक्टर साहब !आप ये क्या कह रहे हैं ?मैं मानता हूँ ,मैं अपनी पत्नी से परेशान हूँ इसीलिए तो आपसे इलाज़ कराने के लिए आया हूँ।
पहले तो अध्यापक तैयार नहीं हुए, उनमें झगड़ा तो अवश्य होता था किंतु ऐसा कार्य नहीं कर सकते थे।तब मामा जी ने पूछा -अपने मन के अंदर झांककर देखो !वो क्या चाहता है ? दवाइयां खाकर तमाम उम्र ऐसे ही बितानी है या फिर एक झटके में ही ,इसका इलाज चाहते हैं।
ये सब कैसे होगा ?
आपको पता भी नहीं चलेगा और समस्या समाप्त हो जाएगी,उन्हें आश्वस्त करते हुए मामा जी ने कहा।
ये कैसा डॉक्टर है ?ऐसा इलाज कौन करता है ?मुझे तो लगता है ,इस डॉक्टर को भी इलाज़ की आवश्यकता है ,मुझे लगता है ,ये खुद ही बीमार है ,विकास बोला -अपनी पत्नी का गुस्सा भी उसी की बीवी पर उतारना चाहते था।
बीमार तो होंगे ही ,पहले इतने परिश्रम से पढ़ाई की किन्तु मामी ऐसी जो सारा दिन मामा को परेशान करती ,उनकी इतनी 'आय' भी नहीं थी,वे कहतीं - तुम्हें क्या पागलों का डॉक्टर ही बनना था ?पागलों का डॉक्टर बनने की क्या आवश्यकता थी ?पहले अपना ही इलाज़ कर लेते ,इस तरह के ''वाक्य बाण ''चलातीं थीं ,रचित ने बताया।
हाँ ,बेचारे !डॉक्टर साहब !अपनी पत्नी पर ही वश नहीं चला तब दूसरे की पत्नी का इलाज कैसे बताते ?वे तो स्वयं ही पत्नी द्वारा पागल बना दिए गए थे ,सुधांशु बोला -अच्छा बताओ !आगे क्या हुआ ?
तब उन्होंने पूछा -ये आप कैसे करेंगे ? तब मामा जी ने उन्हें अपने वश में कर लिया और उनसे पूछा। अपने दिल की बात कहो! तुम कहना क्या चाहते हो ? करना क्या चाहते हो?
उसने जवाब दिया मैं चाहता हूं यह मेरी जिंदगी में ना रहे मैं उससे बहुत ही तंग आ चुका हूं वे मामा के सम्मोहन में तो थे, मामा ने उन्हें इजाजत दे दी अपनी पत्नी को मार कर गायब कर दो !
तब प्रोफेसर साहब ने, ऐसा ही किया, किंतु जब वे मामा के सम्मोहन से बाहर आए, तो वे अपने उस घर में अपनी पत्नी को ढूंढ़ रहे थे। उन्होंने मामा जी से बताया -न जाने मेरी पत्नी कहाँ चली गयी है ?घर में कहीं नहीं है।
ये क्या हुआ ? ये कैसा डॉक्टर है ?उसने आगे क्या -क्या किया चलिए पता लगाते हैं