Mysterious nights [part 71]

 क्या सोच रही हो ? चाय पीते समय, शिखा को सोचते हुए देखकर, दमयंती ने उसके कमरे में आकर पूछा। इससे पहले की शिखा कुछ कहती या पूछती , दमयंती बोली -क्या तुम यही सोच रही हो कि कल रात्रि में तुम्हारे पास कोई क्यों नहीं आया ? 

अचानक ही, इस प्रश्न को सुनकर शिखा चौंक गई और बोली -आपने ये कैसे महसूस किया ?

कल मैं, तुम्हारे अंदर एक डर देख रही थी, मैंने देखा था, जब तुम से मैंने कहा था- कि कल रात्रि में कोई आएगा तो तुम बहुत ही परेशान हो गई थीं।


चलो ! कम से कम मेरे मन को तो न समझ सकीं किन्तु मेरी परेशानी को तो समझा, मन ही मन शिखा ने सोचा। वह तो है, आपने सही समझा। अब इसका जवाब भी आपके पास ही होगा। 

 हां मेरे पास ही जवाब भी है। मैंने बच्चों से कहा है, उसके साथ जो तुमने रात्रि में हरकत की है वह उचित नहीं थी उसे अपने आप को और तुम लोगों को समझने का थोड़ा समय देना चाहिए ताकि वह अपने मन को समझा सके कि  वह अब इसी घर की एक सदस्या है तमाम उम्र उसे यहीं रहना है ,वह कहीं भागे  थोड़ी जा रही है। 

दमयंती के मुख से यह शब्द सुनकर, शिखा ने थोड़ी राहत की साँस ली ,अब उसे थोड़ा समय मिल जायेगा ,यह सोचने के लिए कि अब उसे आगे क्या करना है ,क्या नहीं ? क्या आपके बच्चों ने आपसे कुछ नहीं कहा, और आपका कहना मान लिया। 

हां भई, मानना ही पड़ता है, उनकी मां जो हूं। दमयंती यह जानती है, कि उसके बच्चे अपने खानदान के पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं किंतु उन्हें समझाने का प्रयास करती है, लेकिन यह भी जानती है कि अब यह परंपरा उसके खानदान में चलती रहेगी न जाने जैसे- तैसे एक लड़की हाथ लगी है , उसे हाथ से नहीं जाने देना है। और वह यह भी समझती है जब इसे हमारी योजना के विषय में पता चलेगा तो वह क्या करेगी ?क्या सोचेगी ? हो सकता है, सहर्ष मान जाए और यह भी हो सकता है कि बाद में विवाद खड़ा हो। 

क्या सोच रही हैं आपने कोई जवाब नहीं दिया, इसमें कैसा जवाब देना ? जैसा समय आएगा उसी के अनुसार कार्य करना है। अब तुम नहा- धोकर तैयार हो जाओ !

उसके पश्चात क्या आप मुझे आगे की कहानी सुनाएंगी। 

 हां हां क्यों नहीं? इसीलिए तो तुम्हें तैयार कर रही हूं मन ही मन सोचा। अच्छा अभी मैं चलती हूं, तुम तैयार रहना।तभी वो जाते -जाते वापस आईं और बोलीं -कल तुम्हें ठीक से नींद तो आई न.... 

शिखा सोचने लगी ,इन्हें क्या जबाब दूँ ?क्या ये जानती हैं ? मैं रात्रि में यहाँ थी ही नहीं,

शिखा को सोचते देखकर वो मुस्कुराईं और बोलीं - खैर छोडो !अब तुम नहाकर तैयार हो जाओ ! 

 दमयंती को जाते हुए देखकर, एकाएक शिखा ने पूछा -आपसे एक बात पूछ सकती हूं। 

हां ,हां पूछो !क्या पूछना चाहती हो ?जैसे वो पहले से ही तैयार थीं। 

हवेली के पीछे जो बगीचा है, उसमें ऐसा क्या विशेष है? वहां पर क्या किसी देवी -देवता की तस्वीर लगी हुई है ?वैसे मुझे वहां ऐसा कुछ ,दिखा भी नहीं 

उनकी सोच के विपरीत प्रश्न पूछकर शिखा ने दमयंती को चौंका दिया ,और वे बोलीं -क्यों ? तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो ?

 कल मैंने हरिराम चाचा को उधर जाते हुए देखा था, वहां एक पेड़ के नीचे हाथ जोड़कर बैठे हुए थे जैसे किसी से क्षमा याचना कर रहे हैं। 

दमयंती, शिखा की बात सुनकर, वापस लौट कर आई और उसकी तरफ गहरी नजरों से देखते हुए बोली -तुम कुछ ज्यादा ही,ताक -झांक नहीं करने लगी हो। कोई क्या करता है, उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए तुम अपने काम से काम रखा करो  !! अचानक ही  वे नाराज हो गईं और वहां से चली गईं । शिखा मन ही मन सोच रही थी, मैंने उनसे ऐसा क्या कह दिया ? जो इस तरह से नाराज हो गईं। वैसे कहती हैं -'इस घर को अपना लो !अपना समझो !''जब मैं कुछ पूछती हूँ तो अपने काम से काम रखने के लिए कहती हैं। ख़ैर मुझे क्या ?कहना और करना दोनों ही अलग चीजें हैं ,कहते हुए उसने कंधे उचकाए और अपने वस्त्र उठाकर नहाने चली गयी। 

दमयंती ने तुरंत ही हरिराम को संदेश भिजवाया। आज ऐसा क्या हो गया ,जो इस समय मुझे बुलवाया है ?हरिराम के मन में प्रश्न उठा। जब हरिराम घर पहुंचा तो दमयंती वहां नहीं थी ,हरिराम !तुम्हारी मालकिन कहाँ हैं ?

वहीं अपने कमरे में हैं। 

आज और इस वक़्त !सोचकर हवेली के उन कमरों की तरफ बढ़ गया ,जहाँ पहले ही पर्दा टंगा था।  हरिराम के कमरे में, दमयंती बैठी हुई थी, दमयंती का चेहरा देखकर हरिराम समझ गया कि वह उससे नाराज है। क्या कुछ हुआ है ? जो तुमने मुझे , इस तरह यहाँ बुलवाया है ,दमयंती सोच में बैठी हुई थी ,उसके करीब जाकर पूछा -क्या नाराज हो, मुझे अचानक इस तरह यहां क्यों बुलवा भेजा ?आज क्या बात है ?दिन में ही.... मुस्कुराते हुए दमयंती के करीब आकर बिस्तर पर बैठ गए। 

क्या, तुम अभी भी इस बात को दिल से लगाए हुए बैठे हो, क्या तुम उस बात को भूल नहीं सकते ?गंभीर स्वर में दमयंती ने पूछा। कल तुम्हें बहू ने देख लिया था और मुझसे इस विषय में पूछ रही थी। 

तब तुमने क्या कहा ?दमयंती के जूड़े को खोलते हुए बोले। 

कहना क्या था ? उसे मैंने डांट दिया, कि अपने काम से काम रखो !

सही तो किया, इस घर में कुछ ऐसी बातें हैं जिन बातों की  उसको जानकारी नहीं है और वह जानने का प्रयास करेगी , उसे पता भी, नहीं होना चाहिए,दमयंती के सामने बैठकर बोले। 

मैं तो पता नहीं होने दूंगी, किंतु तुम लोग जो, कभी-कभी ऐसी हरकतें कर जाते हो, जिन्हें देखकर वह  मुझसे प्रश्न पूछेगी, तब मैं क्या जवाब दूंगी ?

यदि वह इस घर को अपना लेती है, इस घर को अपना बना लेती है, इस घर के लड़कों को अपना लेती है, तो फिर उसे कुछ भी बात पता चल जाए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता , उससे पहले उसे तुम्हें तैयार करना होगा, दमयंती की गोद में लेटते हुए हरिराम ने कहा।  

हरिराम की पगड़ी को उतार उसके बालों को सहलाते हुए ,बोली -वह तो मैं कर ही रही हूं किंतु तुम लोग भी अपनी भावनाओं पर थोड़ा नियंत्रण रखो !

मैंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया है, इस बात को तुम ऐसे भी कह सकती थीं, उस पेड़ के नीचे उनका बचपन बीता है अपनी यादों को स्मरण करके और अपने पिता को स्मरण करके उस पेड़ के हाथ जोड़ रहे थे इससे उन्हें सुकून मिलता है क्योंकि अपने पिता के साथ हमारा वहां बचपन बीता है।  

तभी दमयंती बोली -यह तो अच्छा है उसने अभी तक, सासू मां और आपके पिता के विषय में नहीं पूछा।अब ये बात कहकर हमारे लिए एक नया प्रश्न खड़ा हो जायेगा।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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