Shaitani mann [part 129]

रचित और नितिन अभी आपस में लड़ ही रहे थे, तभी एक अनजान व्यक्ति उनके मध्य आता है ,जो बहुत देर से उनकी बातें सुन रहा था ,जिस पर अभी तक दोनों का ध्यान ही नहीं गया था। तब वो बोला -तुम दोनों आपस में क्यों लड़ रहे हो ?रचित ने उसे देखा, और सोचा - इस व्यक्ति को तो अक्सर मैंने कॉलेज में घूमते हुए देखा है ,न जाने, कौन है ? तुम कौन हो ?तुम्हें हमारी बातों से क्या मतलब है ? उस पर नाराज होते हुए रचित ने पूछा - क्या अब तक तुम हमारी बातें सुन रहे थे ?

हां, मेरा यही काम है,वो एकदम सही और स्पष्ट बोला - तुम्हारे विषय में पता लगाना और अब चलो ! तुम्हें मेरे साथ थाने चलना होगा, वहीं पर  सब, बता देना कि तुम अब तक कहां थे और क्या कर रहे थे ? और यहां क्यों आए हो ?


मुझे कहीं नहीं जाना है, झुंझलाते हुए रचित कहता है,और मैं थाने क्यों जाऊँ ? मैंने क्या किया है ? 

चलना तो तुम्हें पड़ेगा,मुस्कुराकर आँखें घुमाते हुए वो बोला - चल सकते हो, तो प्यार से चलो !वरना मुझे जबरदस्ती करना भी आता है। 

रचित ने उसकी तरफ देखा, वह 6 फुट का तगड़ा जवान था, उसके सामने रचित अपने को बहुत ही बौना महसूस कर रहा था रचित को लगा, कि यह हमारे विषय में जानता ही क्या है? और बोला - चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूं, देखता हूं ,तुम्हारे सर क्या कहते हैं ?तब नितिन की तरफ देखकर बोला -क्या, तुम्हारे साहब !ने इसे नहीं बुलाया। 

जब इसे बुलाएँगे ,तो इसे ले जाऊंगा ,अभी फिलहाल तुम ही मेरे साथ चलो !

थाने पहुंचकर, सुधांशु ने उसका बड़े अच्छे से स्वागत किया और बोला -आइये , बैठिए सर !

 मुझे यहां क्यों बुलाया गया है ? क्या आपने मेरे पीछे अपना आदमी लगा रखा है ?ऐंठते हुए रचित ने पूछा। 

हाँ ,तुम्हारी सुरक्षा के लिए ,हमें लगता है ,शायद तुम्हारी जान को ख़तरा हो सकता है। 

खतरा !कैसा ख़तरा ?मुझे भला किससे ख़तरा हो सकता है ?कहते हुए ,रचित कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। 

आप परेशान क्यों होते हैं ?हम हैं ,न... बैठिये !हम आपकी सुरक्षा के लिए ही तो हैं ,कहते हुए शेखर ने उसके कन्धों पर बैठने के लिए दबाब बनाया। 

आप कहां से हैं,आपने हमें यह कभी बताया नहीं। 

जी ,वो.... वो.....मैं उत्तर प्रदेश के एक शहर से हूँ,वैसे इसकी जरूरत तो नहीं थी।  

यहाँ आपकी नौकरी कैसे लगी ?

मतलब !

मतलब यही है ,किसी की सिफ़ारिश से लगी या बाक़ायदा इम्तिहान पास किया। 

ये क्या बात हुई ? मैं इस पद  के योग्य था ,सो नौकरी लग गयी। 

न जाने, कितने योग्य और अनुभवी लोग नौकरी के लिए घूमते रहते हैं ,उनकी भी इतनी जल्दी नौकरी नहीं लगती,ख़ैर !आप क़िस्मत वाले हैं।  हमने तो सुना है ,जो तुम्हारी  जगह पर तुमसे पहले था ,अचानक ही नौकरी छोड़कर चला गया और इन लोगों ने मजबूरी में तुम्हें रख लिया। 

ये मैं क्या बता सकता हूँ ?कि उनकी क्या मजबूरी थी ,या मेरी योग्यता ने उन्हें ,मुझे रखने पर मजबूर कर दिया। 

इससे पहले कहाँ काम करते थे ?

जी.... इससे पहले कहीं काम नहीं किया है , पहली ही नौकरी है। 

बहुत अच्छे !पहली ही नौकरी बड़े शान से मिल गयी, वैसे तुम्हारा घर किस शहर में है ?हमें तुम्हारे घरवालों से कुछ बातें करनी होगी। 

क्यों ,किस विषय में,क्या बात करनी है ? अचानक रचित परेशान हो गया। 

क्यों ?क्या कोई परेशानी है ?

आप मेरे परिवार को इस सब में मत घसीटिये !वे बेचारे !भोले हैं ,पुलिस को देखकर घबरा जायेंगे। मेरे विषय में वो कुछ नहीं बता पाएंगे। 

क्यों ?

क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है ,कि मैं कहाँ हूँ ?

क्या मतलब ?

दरअसल ,बात यह है ,मैं खेलते समय नहर में गिर गया था ,तब... से वो लोग मेरे विषय में कुछ नहीं जानते हिचकिचाते हुए बताया। 

क्या मतलब ?तुम अपने घरवालों के लिए 'गुमशुदा 'हो। 

जी ,जब तुम जिन्दा हो तो, अपने घरवालों से मिलने क्यों नहीं गए ?यहाँ रहकर नौकरी क्यों कर रहे हो ?

सर ! मैं सोच रहा हूँ ,कुछ पैसे जोड़कर जाऊंगा ,ताकि उन्हें बता सकूँ मैं कमाने के लिए बाहर चला गया था।

 कहाँ ?

वो तो अभी मैंने कुछ सोचा नहीं। 

वैसे तुमने हमें बताया नहीं ,तुम्हारा घर किस शहर में है ,लखनऊ के पास एक शहर'' सीतापुर'' है। 

तभी विकास बोल उठा ,उधर का तो इसी कॉलिज में एक लड़का नितिन भी है। 

नितिन का नाम सुनते ही रचित बौखला गया ,क्या तुम उसे जानते हो ?

जी... जी... नहीं ,

आश्चर्य है ,एक ही शहर के होकर भी एक -दूसरे को नहीं जानते ,वो भी तो उसी कॉलिज में है। 

होगा ,इतने छात्र हैं ,अब मैं सबकी कुंडली तो लिए नहीं फिरता हूँ ,वो लापरवाही से बोला। 

हाँ ,ये तो है ,दुनिया में इतने लोग हैं ,हर किसी से जान -पहचान तो नहीं हो पाती ,एक शहर में रहकर भी ,हम जान नहीं पाते ,हमारे पड़ोस में कौन रह रहा है ?विकास बोला। 

अच्छा !एक मिनट सुधाँशु ने रचित की तरफ इशारा किया ,क्या तुम बता सकते हो ? ये कौन है ?कहते हुए सुधांशु ने कम्प्यूटर पर उभर आई एक तस्वीर की तरफ इशारा किया। 

रचित ने उठकर उस तस्वीर को देखा तो उसका चेहरा सफेद पड़ गया और बोला -नहीं ,नहीं तो... इसे मैं कैसे जानूंगा ? वैसे ये कक कौन है ?

हाँ ,सही तो कह रहा है ,कई बार इंसान अपने आपको ही नहीं पहचान पाता है ,शेखर बोला। इस सरदार जी को कैसे जानेगा ? क्या तुम ''डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी ''को जानते हो ?

रचित ने नजर उठाकर ऊपर देखा तीनों उसके इर्द -गिर्द खड़े थे ,वो घबरा रहा था किन्तु उसने एक गहरी साँस ली और बोला -न.. नहीं तो ,ये कौन हैं ?

अभी तो तुम्हें बताया ,डॉक्टर हैं। 

ओह !हाँ !

इन्होंने हमें सब बता दिया है ,एकदम से शख़्त लहज़े में सुधाँशु अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोला -अब तुम हमें सब ठीक -ठीक और सही बताओगे या तुम्हारा भी इलाज़ करना होगा जैसे उनका किया ,अब झूठ बोलने से कोई लाभ नहीं ,हमें सब पता चल गया है ,''सुखविंदर जी''तुमने वकील को लाने में और उनकी ज़मानत करने में  बहुत देर कर दी। 

उनकी बातें सुनकर रचित कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और घबराकर बोला -आपने मेरे मामा जी के साथ क्या किया ?      

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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