नितिन गुस्से से, रचित के पास जाता है और उससे कहता है- जब तुम्हें, मैंने बुलाया था तो तुम क्यों नहीं आए ?
मुझे नहीं आना है और न ही, तुझसे कोई बात करनी है, अपनी फाइल में व्यस्त होते हुए रचित बोला।
तू ,क्या चाहता है ?मैं यहीं पर हंगामा कर दूं, यहाँ,तुझसे तेरे विषय में पूछूं !
इस बात पर रचित अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और बोला -कर हंगामा ! कर...... किसने रोका है? तू क्या समझता है ?मैं, तेरे इस तरह कहने से डर जाऊंगा। मैं भी तो, तेरी सारी पोल खोल दूंगा और लोगों को भी पता चलना चाहिए कि तू कितना धोखेबाज है,कातिल !है।
देख !तू मुझ पर आरोप लगा रहा है ,तू जानता है, मैंने वह सब कुछ जानबूझकर नहीं किया था ।
हां ,तू तो बड़ा'' दूध का धुला'' है, तू कुछ करता ही कहां है ? जब वे लोग, मुझे पीट रहे थे तूने जब भी कुछ नहीं किया। अरे मुझे तो, तुझे दोस्त कहते हुए भी अब शर्म आती है , तू कभी मेरा दोस्त था,रचित कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित हो गया और उसका स्वर भी तेज हो गया। उस समय पुस्तकालय में गिने -चुने दो -चार छात्र ही थे। सभी उस दोनों को देखने लगे।
सॉरी !कहकर नितिन ने उसका हाथ पकड़ा और वहां से दूर ले गया और उससे पूछा -क्या अब मैं तेरा दोस्त नहीं रहा , तू क्या मुझे गुंडा समझता है ? इसमें मेरी क्या गलती थी ? रचित को समझाते हुए ,उससे कहता है - तुझे क्या लगता था ? मैं अकेला आठ -दस लड़कों से भिड़ जाऊंगा,जब अकेला तू उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका तो मैं ही क्या कर लेता ? मेरे पास तो कुछ साधन भी नहीं था और वे लोग डंडे और हॉकी लिए हुए थे।
तब तू भाग कर, सहायता लेकर तो आ सकता था या नहीं , तूने मुझे ढूंढने का भी प्रयास नहीं किया और न ही मेरे घर वालों को मेरे विषय में कुछ बताया। बेचारे ! कितने परेशान हो रहे होंगे ?
तुझे तो जैसे,उनका बहुत ख़्याल था ,अब तो तू जिन्दा है ,तब भी तू उनसे मिला नहीं और न ही, उन्हें बताया कि तू कहाँ है ? मेरी सोच ,मैं उन्हें कैसे बताता ? कैसे उनसे कहता -कि तू अब इस दुनिया में नहीं रहा,नहर के पानी में बह गया है , जबकि मैं ये भी नहीं जानता था कि तू जिंदा भी है या नहीं। वे मुझसे पूछते -'किन लोगों ने उसे नहर में धक्का दिया ,मुझे तो ये भी नहीं पता चला कि तुझे उन्होंने धक्का दिया था या फिर तू स्वयं ही कूद गया था। उन लोगों के विषय में पूछते ,तो मैं क्या जबाब देता ?तूने तो हमसे कभी कोई ज़िक्र नहीं किया कि तूने उनसे कोई पैसा लिया है। जब तू जिंदा था, तो इतने दिनों तक कहां रहा ? मुझसे मिला भी तो दुश्मन की तरह।
तू तो, मेरा तब से ही दुश्मन हो गया था, जब तू, मेरे साथ नहीं था, और चुपचाप सब तमाशा देख रहा था।मैं तुझे सहायता के लिए पुकार रहा था। कम से कम बाहर जाकर पुलिस को तो खबर कर सकता था कि वहां मार- पिटाई हो रही है वे लोग ही मुझे आकर बचा लेते।
मैं मानता हूँ ,उस समय घबराहट में ,यह बात मेरे दिमाग़ में नहीं आई ,मैं बहुत घबरा गया था, मैंने तुझे ढूंढने का प्रयास भी किया था।
अच्छा, तूने, मुझे ढूंढा था,रचित ने गुस्से और व्यंग्य से कहा - मेरे लिए तो तू नदी में कूद गया होगा। अरे!!! अब तू देखता जा, तू भी नहीं बचेगा ! तू क्या समझता है ? तू मुझे परेशान करके ''चैन की बांसुरी बजाएगा ''तुझ पर तो इतनी धाराएं और केस लगेंगे कि तमाम उम्र भी नहीं छुट नहीं पाएगा।
मुझ पर कौन से केस लगेंगे ? मैंने क्या किया है ?
जितनी भी हत्याएं हो रही हैं ,वे सब तू ही तो कर रहा है अभी तो पुलिस को तेरे कुछ ही, फोटो मिले हैं मेरे पास बहुत सारी तस्वीरें हैं जिनमें तू ऐसे -ऐसे तरीके से हत्याएं कर रहा है।
मैंने , किसी की भी, हत्या नहीं की है ,घबराकर नितिन थोड़ा नर्म पड़ गया।
क्यों, क्या तूने हमारे पड़ोस की लड़की की हत्या नहीं की ?
वह हत्या नहीं हादसा था, अब तुझे, उससे इतनी हमदर्दी कैसे हो गयी, तब तो तू उसको कह रहा था -'यह बहुत इतराती है, ज्यादा बात नहीं करती है।
तो क्या हुआ? मैं उससे प्यार करने लगा था, रचित जोश में बोला।
क्या ?? यह बात तूने, हमें पहले क्यों नहीं बताई ,आश्चर्य से नितिन ने पूछा ।
मुझे भी कहां पता था ? किंतु तुम जैसे दोस्तों से तो, दोस्त न ही हो, तो बेहतर है।
अब तू मुझसे नाराज ही रहेगा , या मेरी बातों का कोई जवाब भी देगा।
मुझे तेरी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं देना है, तू होता कौन है ? जो मैं तुझे जवाब दूंगा।
कम से कम इतना तो बतला सकता है, तू अब तक कहाँ था ? और अपने घर वालों से अब तक क्यों नहीं मिला है।
तुझे, मुझसे और मेरे घर वालों से क्या मतलब ?
क्यों मतलब क्यों नहीं है ? जैसे तेरे घर वाले हैं, वैसे ही मेरे..... इससे पहले की नितिन अपना वाक्य पूरा करता
रचित जोर से चिल्लाया - मेरे घर वालों का तू अपने जुबान से नाम भी नहीं लेगा,क्रोध से उसकी आँखें लाल हो रहीं थीं।
मैं नाम नहीं ले रहा हूं, मैं तो उनसे पूछ रहा था- कि क्या अब तक रचित आया है या नहीं। उन्हें एक उम्मीद तो बंधी हुई थी -' कि तू , वापस आएगा। उनसे यह बात कहकर कि' तू नहर में कूद गया है या तुझे किसी ने नहर में धक्का दे दिया है ,मैं उनकी उम्मीद कैसे तोड़ देता ?यह तो मैं नहीं जानता था ,तेरी खबर पाकर उनका क्या हाल होता ?किंतु जब तू जिन्दा वापस आता ,तो वे मुझे झूठा समझते। उन्हें अब तक एक उम्मीद तो है कि न जाने कहां चला गया है ?वापस आएगा ,वे इसी प्रतीक्षा में हैं।
तेरे हिसाब से तो मुझे मर ही जाना चाहिए था, क्यों क्या कहता है ? तीखे तेवर दिखलाते हुए रचित बोला।
भला, मैं क्यों चाहूंगा कि तू मर जाए मैंने तो उस दिन भी तुझे बहुत ढूंढा था किंतु मुझे, तू कहीं भी दिखलाई नहीं दिया और मैं घबराकर चुपचाप अपने घर आ गया अब तू मुझे बता सकता है तू अब तक कहां था और यहां कैसे आया ?
क्यों ?मुझे तुझे क्यों सफाई देनी है ?मैं कुछ भी नहीं बताऊंगा ,मेरा तुझसे कोई मतलब नहीं रह गया है।
तभी एक व्यक्ति उन दोनों के करीब आता है और उन दोनों से कहता है -तुम क्यों लड़ रहे हो ?
अचानक दोनों दोस्तों की लड़ाई में ये तीसरा कौन आ गया ?क्या रचित, नितिन को बताएगा ?कि वो अब तक कहाँ था ?''सुखविंदर'' जी का क्या रहस्य है ? क्या इन सबके पीछे रचित का हाथ है या फिर ''डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी ''इसके पीछे हैं। चलिए आगे बढ़ते हैं।