सुखविंदर के जाने के पश्चात ,एक सिपाही उसके पीछे लग जाता है ,तब इंस्पेक्टर सुधांशु ,'डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी' के करीब जाता है और बोला - मिल लिए ,अपने मित्र से।
जी ,बहुत ही अच्छे आदमी हैं ,देखिये आप! ये मेरी ज़मानत करवाकर ले जायेंगे,ज़्यादा देर यहाँ नहीं रहने देंगे।
हम भी चाहते हैं , कि आप यहां से बाहर निकले, और स्वतंत्र संसार में विचरण करें। वैसे एक बात पूछ सकता हूँ। सुखविंदर जी, आपके मित्र कैसे बने ? वह क्या करते हैं ? आपकी उम्र और उनकी उम्र में तो बहुत अंतर है ,अपने हाथों को आपस में मसलते हुए सुधांशु ने पूछा - एक बात और इन्हें कैसे मालूम हुआ ? कि तुम यहां हो।
अजी, हम 'मन की बात पढ़ लेते हैं,' मुझे लगा ही था कि आप इस तरह के कुछ प्रश्न पूछने आएंगे। दोस्ती के लिए उम्र नहीं देखी जाती। उसमें छोटा बड़ा नहीं देखा जाता, अभी कुछ दिनों पहले हम सफर कर रहे थे उन्हीं दिनों में इनसे हमारी दोस्ती हुई थी।
आपके बड़े अच्छे मित्र बन गए हैं, इतने शीघ्र तो कोई किसी से बात भी नहीं करता।
मैं 'मन की बात पढ़ लेता हूं, मुझे लगा ही था कि अच्छे मित्र साबित हो सकते हैं इसलिए मित्रता कर ली। आप तो जानते ही हैं मैं इधर-उधर भ्रमण करता रहता हूं इसलिए कभी इनसे पूछने का मौका भी नहीं मिला कि ये क्या करते हैं ?
वो तो हम पता लगा लेंगे ,सुधांशु ने सोचा। बड़े अच्छे जवाब दिए आपने, तभी सुधांशु को एक बात ख़टकी, जो बातें उन्होंने कहीं,उनमें एक वाक्य वो बार -बार दोहरा रहे थे। यह वाक्य मैंने पहले भी कहीं, किसी के मुख से सुना है '' मैं मन की बात पढ़ लेता हूं।'' किसी ने तो मुझसे कहा है। सुधांशु बाहर आए और विकास से पूछा -यह वाक्य किसी ने हमें बताया था'' मैं मन की बात पढ़ लेता हूं .''
हां सर ! मुझे अच्छे से याद है , यह बात हम जब नितिन ने पूछताछ कर रहे थे ,तब उसने ही हमें बताई थी जब उसे ट्रेन में कोई व्यक्ति मिला था।
ओह ,हाँ याद आया,कहीं ये डॉक्टर साहब वही तो नहीं ,ये भी दिल की बात पढ़ लेते हैं हँसते हुए सुधांशु ने कहा।
दिल की नहीं सर !'मन की बात !'
हाँ वही ,तब तो इन साहब की पहचान कराने के लिए हमें नितिन को फिर से बुलाना होगा। मुझे लगता है ,अब कड़ियाँ जुड़ती जा रही हैं। डॉक्टर नितिन को ट्रेन में मिला ,जो' मन की बात पढ़ लेता है' और उसने कहा था -तुम्हारा बदला तुम्हें मिलेगा ,हर जगह धोखा है ,ऐसा ही कुछ नितिन से कहा और नितिन नहीं जानता कि उसका हमशक़्ल कौन है ?उन तस्वीरों में वो अपने वहां होने से इंकार कर रहा है। हमें लगता है ,वो वही है किन्तु उसे कुछ भी स्मरण नहीं किन्तु एक बात समझ में नहीं आई। यदि नितिन ने ये हत्याएं की हैं ,या उससे करवाई गयीं है ,इसके पीछे डॉक्टर का क्या उद्देश्य हो सकता है ?आखिर वो क्या चाहता था ?
तभी एक सिपाही थाने में प्रवेश कर सुधाँशु के सामने जाकर खड़ा हो जाता है ,अरे !तुम यहीं हो ,अभी तक गए नहीं,तुम्हें तो उन सरदार जी के पीछे भेजा था।
वहीं से आ रहा हूँ, सर !
इतनी जल्दी कैसे आ गए ?क्या उन सरदारजी का पता चला ?
जी सर !पता चल गया ,वो अभी किसी वकील के दफ्तर में है।
कुछ पता चला,सरदार जी कहाँ रहते हैं और क्या करते हैं ?
सब पता चल गया ,वो सरदार जी है ,ही नहीं ,
क्या ???
जी सर !उसके पश्चात जो कुछ भी ,उसने बताया तीनों की आँखें फैलती चली गयीं। अब तो इस सबको इकट्ठा करना ही होगा ,इन्होंने हमें बहुत घुमाया है ,अब घूमने की इनकी बारी है ,सुधाँशु गुस्से से बोला।
नितिन बगीचे में ,रचित की प्रतीक्षा कर रहा था ,बहुत देर तक प्रतीक्षा करता रहा ,तभी एक व्यक्ति आकर बोला -आपको, इंस्पेक्टर साहब ने बुलाया है।
अब ये क्या नई मुसीबत है ,बुदबुदाते हुए नितिन कहता है -अब क्या हुआ ?क्यों बुलाया है ?
उन्हें कोई आदमी मिला है ,उसकी पहचान करवाना चाहते हैं।
नितिन की भौंहें सिकुड़ गयीं और मन ही मन सोचा -कौन हो सकता हैं ? तुम चलो !मैं आता हूँ ,कहते हुए अपने कमरे की तरफ गया और जूते पहनकर बाहर आ गया। सम्पूर्ण रास्ते में यही सोचता रहा ,न जाने कौन मिला होगा ?
नितिन ने जैसे ही थाने में प्रवेश किया सभी उसकी प्रतीक्षा में थे ,उसको देखते ही बोले -हमें एक आदमी मिला है ,जरा देखकर बताना ,वो जो तुम्हे ट्रेन में सन्यासी मिला था ,कहीं ये वही तो नहीं।
चलिए !देख लेते हैं ,वैसे इतने दिनों की बात हो गयी मालूम नहीं, पहचान भी पाउँगा या नहीं।
हाँ ,हाँ ,अभी इतने दिन भी नहीं हुए ,चलकर देख लो !हो सकता है ,तुम अपने गुनहगार को पहचान सको।
मेरा गुनहगार कैसे ?
तुम आगे चलो तो सही सब पता चल जायेगा,तब वे लोग नितिन को दूर से ही उस साधु बने डॉक्टर को दिखाते हैं ,नितिन उसे ध्यान से देखता है और कहता है -यही तो है ,ये आपको कहाँ से मिले ?
तुम जिस तहखाने और उस मिटटी के घर का ज़िक्र कर रहे थे ,ये उसी तहखाने में छुपा हुआ था शेखर बोला।
क्या ?तब तो ये वही साधु भी हो सकते हैं ,जिन्हें मैंने हवन करते हुए पहली बार उस घर में देखा था।
ये बात सही हो सकती है ,किन्तु ये मेरा पीछा क्यों कर रहे हैं ?मैंने इनका क्या बिगाड़ा है ?क्या आपने पता लगाया ?ये कौन हैं ?
हाँ ,तुम्हें ये जानकर तुम्हें आश्चर्य होगा ,ये कोई साधु -सन्यासी नहीं ,वरन' डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी' हैं ,जो एक मनोवैज्ञानिक हैं।
क्या ?नितिन आश्चर्य से कहता है -तभी ये मन की बात समझ जाते हैं।
इसी मन की बात को पढ़ने के कारण ही तो हम, इनके मन के क़रीब पहुंच सके ,शेखर बोला। अब इनसे हमारी पूछताछ चलेगी ,आख़िर ये तुम्हारे पीछे क्यों थे और तुम्हारे पीछे आने का इनका उद्देश्य क्या था ?अच्छा एक बात बताओ !क्या तुम्हें नींद में चलने की बीमारी है ?
नहीं ,तो सर !
क्या तुम्हें कुछ एहसास होता है ,तुम कुछ कार्य कर रहे हो लेकिन पता नहीं क्यों कर रहे हो ?अथवा करने के पश्चात कुछ भी स्मरण नहीं रहता।
यही तो सर!मेरे दोस्तों को भी मुझसे यही शिकायत है किन्तु मैं नहीं जानता ,मैंने उनके साथ क्या किया और क्यों किया ?
अच्छा अब तुम जा सकते हो ?सुधांशु बोला।
नितिन के जाने के पश्चात ,विकास बोला -मुझे तो नहीं लगता ,ये इतना सीधा है ,जितना अपने को दिखलाने का प्रयास कर रहा है।