Shaitani mann [part 126]

नितिन, रचित को अपने साथ ,उसी स्थान पर लेकर आता हैं ,जहाँ रात्रि में उसके साथ वो हादसा हुआ था ,उसे क्या मालूम था ?कि अनजाने में ही ,उसके हाथों एक लड़की की जान चली गयी है। रचित को जब पता चलता है ,तो वह बहुत नाराज होता है किन्तु अचानक ही उसका व्यवहार बदल जाता है और वो नितिन से अपनी बाइक लाने के लिए कहता है।

  जब नितिन अपनी बाइक लेकर आ रहा था, तब उसने देखा , कुछ लोग, पुल पर रचित के साथ खड़े हुए थे और कुछ बातें कर रहे थे ,इतने लोग एक साथ देखकर नितिन को कुछ अच्छा नहीं लगा और उसने अपनी बाइक वहीँ रोक दी। मैं तो उन लोगों को जानता ही नहीं था किंतु शायद वे रचित को अच्छे से जानते थे , उनके हाथ में डंडे और हॉकी थी जिन्हें देखकर मैं घबरा गया और एक पेड़ के पीछे छुपकर उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगा।  


सोचा ,जाकर उससे कैसे पूछूं ,कि क्या तू इन लोगों को जानता है ?तभी वे लोग रचित के साथ मारपीट करने लगे ,वे लोग उसे हॉकी और डंडों से बुरी तरह पीट रहे थे।  न जाने ,ये इसे क्यों मार रहे हैं ?क्या मुझे उसे बचाने जाना चाहिए ?मैं आगे बढ़ने की इच्छा से पेड़ की आड़ से बाहर आता हूँ किन्तु वे तो कम से कम आठ -या दस लोग होंगे। तभी उसके मन में विचार आया ,''मैं कोई हीरो नहीं हूँ ,जो मैं इतने लोगों से उसे बचा लूंगा।'' 

तभी उसे रचित का स्वर सुनाई दिया -नितिन !मुझे बचा ,नितिन !मुझे बचा !

वो ,मुझे सहायता के लिए पुकार रहा था। उसकी ये बात, उन लोगों ने भी सुनी तभी एक बोला -मुझे लगता है ,इसके साथ कोई और भी है ,उसे भी ढूंढो और मारो साले को ,ये नहीं तो वो इसके पैसे देगा। उनकी ये बातें सुनकर नितिन को लगा ,रचित तो अपने साथ -साथ मुझे भी पिटवायेगा ,न जाने ,कैसे पैसों की बात कर रहे हैं ?किसी ने मुझे देख लिया तो, इसके कारण ,मैं भी नहीं बचूंगा। इससे पहले की वो लोग ,नितिन को ढूंढते ,नितिन धीरे से अपनी गाड़ी को मोड़ता है।

 उनकी थोड़ी सी लापरवाही से ही ,रचित वहां से भागने का प्रयास करता है। वे उसके पीछे दौड़ते हैं ,न जाने क्या ठानकर आये थे ?उनका स्वर सुनाई दिया ,पकड़ो ! साले को ,भाग रहा है।आज नहीं छोड़ना है।  

 अचानक न  जाने क्या हुआ ? नितिन ठीक से देखा नहीं पाया, उन्होंने उसे धक्का दिया या फिर' रचित 'स्वयं ही उनसे बचने के लिए नहर में कूद गया। एक पेड़ की आड़ से छुपा हुआ नितिन यह सब देख रहा था। रचित के पानी में कूदने के पश्चात, वो लोग कुछ देर तक उसे इधर -उधर देखते हैं ,जब रचित कहीं भी दिखलाई नहीं पड़ा ,तब वो लोग वहां से भाग गए । 

तब नितिन उस पेड़ की आड़ से बाहर आया और पुल पर पहुंचा , उसने रचित को कई आवाजें लगाईं ,पुल से नीचे झाँककर देखा ,नहर के पानी को बहते हुए देखा किंतु उसने रचित को कहीं भी दिखलाई नहीं दिया  ,नितिन ,दूर -दूर तक आँखें गड़ाए देख रहा था।  इस हादसे  से नितिन बुरी तरह घबरा गया था और चुपचाप अपने घर आ गया। उसने किसी से भी इस हादसे का  कोई जिक्र नहीं किया ,उसे डर था, कहीं रचित को खोजते -खोजते पुलिस ,उस लड़की की हत्या के अपराध में उसे ही न पकड़ ले। ये भी हो सकता है ,उन लड़कों ने मेरा नाम सुना है ,वे कहीं मुझ तक न पहुंच जाएँ ,न जाने कौन से पैसों की बात कर रहे थे ?

 यहां तक कि जब उसके दादाजी भी उससे रचित के विषय में पूछ रहे थे, उसने उनसे भी कुछ नहीं बताया किन्तु उनकी सवालिया निग़ाहें अक़्सर उसका पीछा करती हैं।  

अब यह न जाने यहां क्यों आया है ? नितिन अपने विचारों से बाहर आ सोच रहा था -आख़िर ,इसके मन में क्या है ?कहीं यह मुझसे बदला लेने तो यहां नहीं आया है।

एक सरदार जी ,डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी से मिलने आता है ,वह इधर -उधर देखता है ,और जब देखता है ,सभी अपने कार्यों में व्यस्त हैं ,तब वो डॉक्टर से कहता है -मामा जी !आप चिंता न करें , मैं आपको शीघ्र ही  छुड़वा लूंगा। मैंने एक वकील से बात की है।  

भांजे ! वह तो मैं जानता हूं, तू  मुझे शीघ्र ही छुड़वा लेगा किंतु तुझे यहां नहीं आना चाहिए था किसी को भी भनक लग गई तो ये लोग, तेरे पीछे पड़ जाएंगे।

 मुझे तो मजबूरी में आना ही पड़ता, आपके घर में भी किसी को मालूम नहीं है, कि आप यहां पर हैं और मेरे घर पर तो किसी को मालूम ही नहीं है, कि मैं कहां पर हूँ ? अभी हमारा उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है किंतु अब पुलिस हाथ धोकर हमारे पीछे पड़ गई है। न जाने, कैसे ,इन्हें आप पर शक हो गया है ?

शक -वक कुछ नहीं है, वह तो उन लोगों को मैं उस तहखाने में मिल गया इसलिए अंदाजा लगा कर यहां ले आए।मेरे विरुद्ध इनके पास कोई सबूत नहीं है।  अभी आपने इनसे कुछ बताया तो नहीं है।

 नहीं, तेरा मामा हूं। ऐसे -ऐसों का इलाज करता हूं ,ये मुझे क्या पकड़ेंगे ?

 अच्छा अभी मैं चलता हूं , ज्यादा देर यहां पर ठहरना ठीक नहीं, यह कहते हुए व्यक्ति बाहर जाने लगता है।

 इंस्पेक्टर सुधांशु की दृष्टि  उस व्यक्ति पर पड़ती है।  उसे लगा शायद मैंने  इसे कहीं तो देखा है, यह अपने  अपने को डॉक्टर का मित्र बता रहा था लेकिन उम्र से तो जवान लग रहा है।इसे कैसे पता चला ?कि डॉक्टर यहां है।  मुझे लगता है, इसने दाढ़ी और पगड़ी हमें गुमराह करने के लिए लगाई है,हमसे अपनी पहचान छुपाना चाहता है, आखिर यह कौन हो सकता है ? विकास एक बार जरा पता लगाना कि ये सरदार जी कौन है ? इसने डॉक्टर से मिलने से पहले अपना क्या नाम बताया था ?स्मरण करते हुए सुधांशु ने विकास से पूछा। 

सुखविंदर !

हां, तो इस सुखविंदर को गलतफ़हमी के सुख से रहने दो ! इसे पता नहीं चलना चाहिए कि कोई इसका पीछा कर रहा है, या उसके विषय में पता लगाने का प्रयास कर रहा है।

आखिर डॉक्टर से मिलने ये नया उसका दोस्त कौन आया है ?डॉक्टर को मामा जी क्यों कह रहा है ?क्या इंस्पेक्टर का शक़ सही है ?सरदारजी के भेष में कोई और ही है ,आइये !आगे जानने का प्रयास करते हैं।  



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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