नितिन,' रचित' को पहचान लेता है, किंतु रचित उसे पहचानने से इनकार करता है, हालांकि रचित ने अपनी दाढ़ी बढ़ा रखी थी और अपने रूप में थोड़ा बदलाव लाने के लिए एक मोटा चश्मा भी लगाया था किंतु इनके कारण उसके रूप में इतना बदलाव भी नहीं आया था, कि उसका कोई अपना उसे पहचान न सके। तू , 'रचित' ही है, मैं तुझे पहचानने में गलती नहीं कर सकता। तू ,यहां कितने दिनों से रह रहा है ? कब आया और कैसे आया,जब यहाँ था तो तू ,मुझसे क्यों नहीं मिला ? नितिन ने उससे पूछा।
लाइब्रेरियन बने रचित ने नितिन की तरफ घूर कर देखा, और बोला -क्या तू अभी भी ,मेरे सामने बोलने की हिम्मत कर सकता है।
क्यों, मैंने क्या किया ? क्या तू मुझसे नाराज़ है ? वह तो सिर्फ एक हादसा था, मैं कर भी क्या सकता था ?
गुस्से के कारण रचित की आंखें लाल हो गई और एकदम से चिल्लाते हुए बोला -मुझसे पूछ रहा है, कि तेरी गलती क्या है ? उसके इस तरह चिल्लाने पर पुस्तकालय में जो भी छात्र थे वे सभी उन दोनों की तरफ देखने लगे। इस बात का जब दोनों को एहसास हुआ तो रचित एकदम शांत हो गया और बोला - कुछ नहीं, आप लोग अपने काम से काम रखिए !
नितिन भी थोड़ा संभल गया, और उसे लगा कि हमारी बातचीत का यह उचित समय नहीं है और न ही उचित स्थान है, इसीलिए वह रचित से बोला -कल शाम को कॉलेज के बगीचे में आकर मिलना।
रचित ने,नितिन को गुस्से से देखा, उससे पूछा -क्यों ?
तुझसे ,कुछ बातें करनी हैं।
किंतु मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी है, औरआइंदा मुझसे मिलने का प्रयास भी में मत करना चेतावनी देते हुए रचित बोला।
नितिन ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और उस पुस्तकालय से बाहर आ गया। मन ही मन सोच रहा था- यह यहां क्यों आया है ? क्या यह मुझसे नाराज है ?मुझे तो लगा था ,अब ये इस दुनिया में नहीं रहा। तब उसे वह दिन और वह बातें याद आ गई जब नितिन छुट्टियों में अपने घर गया था और रचित को अपने साथ लेकर, उस' शमशान' की तरफ गया था। उसे लग रहा था, जैसे कोई उसकी मोटरसाइकिल से टकराया है और ऐसा ही हुआ भी था। रचित ने, अपने पड़ोस की जिस लड़की का, अपने दोस्तों से परिचय कराया था। वह भी शायद, उसी रास्ते से जा रही थी,यह बात नितिन नहीं जानता था। वह इस अँधेरे, वहां क्या कर रही थी ? किन्तु वह नितिन की बाइक से टकरा गई जिसके कारण उसे बहुत चोटें आईं ,उसकी चीख भी निकली किंतु नितिन ने, उस तरफ देखा ही नहीं, और बुरी तरह ड़र गया क्योंकि उसने सुन रखा था -ऐसे श्मशान में चुड़ैलें अपने शिकार के लिए घूमती रहती हैं। डर के कारण, उसने अपनी मोटरसाइकिल की रफ़्तार और बढ़ा दी, अपने घर भाग गया।
घबराहट के कारण नितिन का गला सूख रहा था,वो समझ नहीं पा रहा था ,क्या उसकी मोटरसाइकिल से कोई इंसान टकराया है या कोई चुड़ैल थी ,आज पहली बार श्मशान की तरफ गया था और ये हादसा हो गया।
इस बात का उसे एहसास था कि कुछ तो ऐसा हुआ है जो सही नहीं था किंतु अंधेरे में शमशान करीब होने के कारण, उसका साहस ही नहीं हुआ कि वह वहाँ वापस जाकर देखे कि उसकी मोटरसाइकिल से कौन टकराया है ? रातभर उसे नींद नहीं आई ,घर में किसी को बताया भी नहीं था ,मम्मी को पता चल गया तो झाड़ -फूंक में लग जाएँगी और डाँटेगी सो अलग ! कहेंगी -'तुझसे उधर से आने के लिए किसने कहा था ? त्यौहार का समय है ,होली -दीपावली पर तंत्र भी बहुत होते हैं ,हो सकता है ,वो कोई चुड़ैल ही होगी ?इसी विचार के साथ नितिन ने अपने को समझाया था।
किस तरह चीखी थी ?उसकी चीख उसे नींद में भी सुनाई दे रही थी ,घबराहट के कारण नींद आँखों में नहीं थी ,कुछ देर आँखें बंद भी होती तो वही चीख उसे सुनाई देने लगती।
अगले दिन नितिन, रचित को साथ ले जाकर शमशान घाट की तरफ देखने जाता है, कि कहीं कोई पशु तो नहीं मर गया ,ऐसा उसने नितिन से बताया। किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी, उनसे पहले ही, पुलिस वहां आ चुकी थी। शायद, किसी ने पुलिस को एक लड़की के मरने की सूचना दे दी थी। रचित उस भीड़ में, उस अनजान लड़की को देखने का प्रयास कर रहा था,जिसे पुलिस की गाड़ी ले जा रही थी। जब उसने उस लड़की को देखा ,तो उसे बहुत गुस्सा आया और नितिन से बोला -तुझमें तनिक भी इंसानियत नहीं है ,तूने एक लड़की की जान ले ली।
नितिन उसे समझा रहा था -देख, भाई !इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैं तो अपने रास्ते जा रहा था अब इस अंधेरे में शमशान घाट पर, डर के मारे वैसे ही मेरा दम सूख रहा था। यह मुझे दिखलाइ नहीं दी, तो मैं क्या कर सकता हूं ? बहुत देर तक दोनों पुलिस को और उस लड़की की लाश को ले जाते हुए देखते रहे, रचित की आंखों में आंसू थे।
नितिन ने भी देखे थे, उसने पूछा -तू क्यों रो रहा है ?
क्या बात करता है ? एक इंसान अपनी जान से गया ,मेरी आँख में आंसू भी न आये ,वो हमारी वही पड़ोसन थी,जो वहां आई थी। तब अचानक ही उसका व्यवहार बदल गया और बोला - मैं पुलिस को सब बता दूंगा। कि इस लड़की की हत्या तूने की है।
देख,तू ये कैसी बातें कर रहा है ?
मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जो भी हुआ है अनजाने में हुआ है इतने अंधेरे में वह मुझको दिखलाई ही नहीं दी।
क्या तेरी गाड़ी में लाइट नहीं थी, चिल्लाते हुए रचित ने पूछा।
यार! लाइट तो थी किंतु वह अचानक ही, सामने आ गई थी। यह मात्र एक हादसा है। रचित क्रोधित होते हुए, आगे- आगे जा रहा था और नितिन उसके पीछे था,मन ही मन सोच रहा था ,क्या इसे ये बात बताकर मैंने गलती कर दी ?तू कहाँ जा रहा है ? मेरी बात तो सुन !!
श्मशान के दूसरी तरफ एक नहर बहती थी ,सोचा था ,अपने मन की बात अपने दोस्त से कहूंगा किन्तु उससे कहकर तो अब लग रहा था ,जैसे उसने मुसीबत मोल ले ली। दोनों लड़ते हुए ,नहर के पुल पर पहुंच गए थे लेकिन नितिन नहीं जानता था कि रचित के मन में क्या चल रहा है ? नितिन उसे समझा रहा था।
तब अचानक ही रचित बोला- मैं तो मजाक कर रहा था, भला मैं अपने दोस्त को कभी पुलिस को दे सकता हूं।कहते हुए वो उस पुल के किनारे खड़ा हो गया और बोला - इस नहर के पानी का बहाव बहुत तेज है,यदि इस नहर में कोई गिर जाता है ,तो उसका पता नहीं चलेगा। न जाने ,ये नहर कहाँ -कहाँ तक जाती होगी ?
उसे सामान्य होते देख ,नितिन उसके क़रीब आया और बोला -क्या तू ,अब मुझसे नाराज़ नहीं है,देख !यह मात्र एक दुर्घटना थी।
नहीं ,जा तू ,अपनी बाइक भी यहीं ले आ ! दोनों यहीं से साथ चलेंगे।
तू यहीं रुक !मैं अपनी बाइक लेकर अभी आता हूँ ,कहकर उसने दौड़ लगा दी, दोनों एकदम से सामान्य हो गए थे।
आखिर रचित के मन में क्या चल रहा था ?क्या उसने नितिन को माफ़ कर दिया था ?जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।