दमयंती ने महसूस किया कि शिखा इस घर -परिवार को अपनाना नहीं चाहती है और वो किसी और ही दुनिया में खो रही थी ,ये बात उसके बेटे पुनीत ने उसको बताई ,अब तक वो लोग यही सोच रहे थे कि धीरे -धीरे उसे प्यार और अपनापन मिलने पर,इस घर से लगाव हो जायेगा किन्तु वो तो कुछ ओर ही सोचे बैठी थी ,जब दमयंती ने कहा -तुम अपने दिल की सुनने लगी हो।
दिल की आवाज सुनना क्या गलत है ?शिखा ने उत्तर देने की बजाय स्वयं उससे प्रश्न किया।
नहीं, गलत तो नहीं है किन्तु तुम्हारी उड़ान उतनी ही होनी चाहिए जहाँ तक तुम्हारे पंख साथ दें और तुम सीमा का उलंघन न कर सको।
ये सीमाएं किसने तय की हैं ?हम इंसानो ने हीं न... उड़ने वाले के लिए तो सम्पूर्ण गगन है।
तब उसे अपने पंखों की क्षमता को भी तो परखना चाहिए,ज्यादा ऊँची उड़ान से पंखों के जलने और स्वयं के थक जाने का खतरा होता है,क्यों अपनी जान जोख़िम में डालना ?
ये आप मुझे धमकी दे रहीं हैं।
नहीं ,तुम्हें चेता रही हूँ ,समय रहते ही सम्भल जाना चाहिए ,कोई ऐसी राह चुननी चाहिए जिसमें अपने साथ -साथ अन्य लोगों का भी मान -सम्मान बना रहे। कल यदि तुमने कोई ऐसी हरक़त कर दी ,जो तुम्हें नहीं करनी चाहिए थी ,तब तुम्हारे पिता का सिर तो झुक ही जायेगा।
मैंने आज तक कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया है जिसके कारण मेरे माता -पिता का सिर नीचा हो ,हमेशा मैंने उनका कहना माना है।
किन्तु एक रिश्ता ऐसा होता है ,जो कभी -कभी सब रिश्तों पर भारी पड़ जाता है ,उसके लिए इंसान की बुद्धि भी कार्य करना बंद कर देती है ,उसे अच्छे -बुरे का भान ही नहीं रहता।
ऐसा कौन सा रिश्ता हो सकता है ?सोचते हुए शिखा ने पूछा।
'प्यार का रिश्ता ' हाँ, ये वही रिश्ता है जिस रिश्ते के कारण अपने भी पराये या दुश्मन नज़र आने लगते हैं और मति तो न जाने किस दुनिया में खो जाती है ? प्यार तो हम अपने घरवालों से भी करते हैं किन्तु ये प्यार तो किसी और ही दुनिया की सैर कराता है। भृमित कर देता है ,ये जुड़ाव ऐसा है ,जिसके कारण हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं यहाँ तक कि दुनिया से लड़ने तक का साहस हममें आ जाता है। कुछ समझी या नहीं। शिखा समझकर भी जैसे कुछ समझी नहीं ,उसने न में गर्दन हिलाई। जैसा तुम्हें हमारे तेजस से हुआ। उसके प्रेम की ख़ातिर तो तुम अपने घरवालों के इंकार करने पर भी यहाँ चलीं आईं ,तुम जानती थीं तुम्हारे साथ गलत हो रहा है किन्तु तुमने विरोध नहीं किया क्योंकि तुम्हारे लिए उस समय 'तेजस 'का प्रेम सर्वोपरी था और मेरे लिए ,'ज्वाला 'कहकर वो एकदम से शांत हो गयीं। ऐसा लग रहा था ,जैसे -बोलते -बोलते थक गयीं।
क्या सोच रहीं हैं ?शिखा ने उसकी तरफ देखकर पूछा।
मेरे जीवन की विडंबना देखो !अपने पति ' जगत' को अपने और' ज्वाला' के विषय में बता रही थी और मन ही मन बहुत खुश हो रही थी, क्योंकि उस समय मुझे 'ज्वाला 'के सिवा किसी का सुख -दुःख कुछ नजर नहीं आता था ,मेरी बातें सुनकर ,अचानक ही ' जगत 'उदास हो गए तब मैंने उनसे पूछा -आप उदास क्यों हैं ?
तब वह बोले -तुम्हें केक भेजने वाले से कुछ जुड़ाव महसूस हुआ था,न... वही जुड़ाव तुम्हें यहां खींच लाया।
क्या मतलब मैं कुछ समझी नहीं, वैसे तो ज्वाला ही वहां जाता रहता था किंतु उस दिन मैंने ही तुम्हें पहली बार अपने होटल में देखा था और तभी मुझे तुम अच्छी लगने लगी थीं। और मैंने ही तुम्हारे लिए केक भेजा था और तुमने समझा वह' ज्वाला' ने तुम्हारे लिए भेजा है।
दमयंती को आश्चर्य हुआ और अविश्वास से बोली-किंतु मैंने तो मैनेजर से केक भेजने वाले का नाम पूछा था।
मैंने उससे पहले ही कह दिया था कि उसे किसका नाम लेना है ,मुझे क्या मालूम था ?कि तुमसे मेरा रिश्ता इस तरह से जुड़ जाएगा। दिल पर किसी का जोर नहीं होता ,न ही मेरे दिल पर है और न ही तुम्हारे दिल पर है। तुम 'ज्वाला'को पसंद करती हो ज्वाला भी तो मेरा ही भाई है हम दोनों का रक्त एक ही है , हो सकता है इसी कारण आकर्षक बना हुआ है। तुम अब भी ज्वाला से मिल सकती हो, बातें कर सकती हो , मेरी तरफ से कोई तुम पर कोई प्रतिबंध नहीं है। मैं चाहता हूं, तुम खुश रहो !
' जगत' के इस तरह के विचार सुनकर, मैं अचंभित रह गई उनके मन में कोई भी घृणा या द्वेष की भावना नहीं थी। आजकल ऐसा कहां होता है ?
तुम मुझे अपना समझो या न समझो किन्तु मैं तो तुम्हें अपना मान चुका हूँ ,जबसे मुझे पता चला था कि तुम मेरी पत्नी बनने वाली हो। मैं अपने आपको दुनिया का सबसे भाग्यशाली पुरुष समझ रहा था ,जब तुम्हारे रिश्ते की बात मुझसे हुई थी किन्तु ये नहीं जानता था ,ये मात्र एक' गलतफ़हमी' ही है।
दमयंती मन ही मन सोच रही थी ,मेरा दिल किसके लिए धड़कने लगा था ?उस केक भेजने वाले के लिए या फिर उस मॉल वाले के लिए ,प्रत्यक्ष तो 'ज्वाला 'को ही देखा था। हो सकता है ,उससे पहले 'जगत 'को देख लेती तो क्या ''जगत ''की हो जाती ?अब मैं कहाँ जाऊँ पति जो छुप -छुपकर मुझसे प्यार करता रहा। वो प्रेमी जिसे मेरी कोई परवाह ही नहीं। एक बार भी मेरे लिए आकर खड़ा नहीं हुआ ,मेरे लिए आवाज नहीं उठाई,तो क्या मेरा प्यार कमज़ोर है ?उसे बांधकर भी न रख सका ,जो बंधना चाहता है ,उसे ढ़ील दी हुई है तब भी उसी डोर से बंधा है।
दमयंती अपने को दोेराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी ,उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। जगत उसके लिये आशा के दिप जलाये खड़ा था ,दूसरी तरफ दमयंती बड़ी उम्मीदों से ज्वाला की राह तक रही थी।
क्या सोच रही हो ?दमयंती को खिड़की से बाहर,झांकते देखकर जगत ने पूछा।
देख रही हूँ, बाहर चांदनी खिली है ,अंधियारे में भी सबकुछ साफ ,स्पष्ट नजर आ रहा है ,अंदर इतनी रौशनी होने पर भी ,एक अंधियारी गली है जिसमें मैं कहीं खो सी गयी हूँ। अपने आपको ढूंढने का प्रयास कर रही हूँ ,जितना अपने आपको खोजती हूँ उतनी ही उलझती जाती हूँ।
ये जीवन ही उलझन भरा है ,जिसे हम पाना चाहते हैं ,वो पास होकर भी दूर नजर आता है।
सही कह रहे हैं ,हम सभी एक डोरी से बंधे हैं यदि दूसरे को अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हैं ,उसके साथ -साथ ओर रिश्ते भी खींचे चले आते हैं किन्तु जिससे हम जुड़ना चाहते हैं या अपने क़रीब चाहते हैं ,उसके और हमारे मध्य रिश्तों का ही नहीं ,भावनाओं का भी फासला नजर आता है। वे दूरियां तय करने में न जाने किस पगडंडी से गुजरना पड़ेगा ?