ग़म के साथी भी हैं , बहुत ,
इंसानों जैसी फितरत नहीं,
जो ग़म में भी साथ छोड़ दें।
ग़म में एकांत सुहाता,भले हीअकेला हो
अपने आप से मिलने का मौका आता है।
चहुँ ओर ''अंधकार'' ही नजर आता है।
तब उम्मीदों के दिए भी वही जलता है।
ग़म के तम में,अक़्ल तेज, कभी अलसाता है।
ग़म के अंधेरों में,रौशनी कहीं नजर आती है।
बेचैनियों से भरा जीवन नश्वर नजर आता है।
मानव छल दिखला ,रिश्तों को दिखलाता है।
जीवन के भटकाव में, वहीं कोई राह सूझती है।
दुख का भार किसी न किसी मंजिल पर पहुंचे।
धोखे के ग़म से जीव संभल और संवर जाता है।
कष्ट देता बहुत , साथ कोई नजर नहीं आता है।
जीवन की उलझी डोर को, एकांत सुलझाता है।
सुख में सब साथी , तो कुछ साथी गम के भी हैं।
विश्वास, धोखा, बेचैनी, एकांत,तिमिर सुहाता है।
''अश्रु' नहीं छोड़ते साथ, ''जी'' बहुत घबराता है।