अब इंस्पेक्टर सुधांशु ने, इस केस की कार्यवाही में तेजी कर दी है। तब उसकी छानबीन उसी ''मड हाउस ''से फिर से आरम्भ होती है और वहां पर एकदम से छापा मारने पर उन्हें एक व्यक्ति मिला,जिसने गेरुए वस्त्र पहने हुए थे ,खिचड़ी दाढ़ी बढ़ी हुई थी ,देखने से पढ़ा -लिखा नजर आ रहा था। तब वह व्यक्ति अनजाने में ही,इस तरह पकड़े जाने पर हतप्रभ होते हुए ,कहता है -आप लोग यहां क्या करने आये हैं और मुझे इस तरह क्यों पकड़ रहे हैं ?
यह बात तो हमें आपसे पूछनी चाहिए इस तहखाने में आप क्या कर रहे हैं ? इस तहखाने की छानबीन तो हमने पहले भी की थी किंतु उस समय तो आप नहीं थे, अब आप, यहां कैसे आए ?या फिर अबकि बार छुपने का मौका नहीं मिला।
उसने उनके प्रश्नों का कोई जबाब नहीं दिया और बोला देखिए ! आप यह सही नहीं कर रहे हैं, मैं तो एक सन्यासी हूं। आपको मुझसे क्या मिलेगा ?अपने शब्दों का वह नाप तौलकर प्रयोग कर रहा था।
वही तो हम आपसे पूछना चाहते हैं, आपको इस तहखाने में ऐसा क्या मिल रहा है ?जो आप जंगल, अथवा हिमाचल छोड़कर, इस पुराने घर और तहखाने में छुपे हुए हैं। आपने ऐसा क्या किया है ? जो अपने को छुपा रहे हैं।
मैं छुप नहीं रहा हूं , मैं यहां साधना कर रहा हूं।सन्यासी को जहाँ एकांत मिल जाये वहीं उसका तपोवन बन जाता है।
साधना तो आप, ऊपर कमरे में भी कर सकते थे और कर भी रहे थे , वहीं रहते, फिर छुपने की क्या आवश्यकता थी ? यहाँ कौन सा एकांत है ?कॉलिज के तहखाने में रहने का आपका उद्देश्य क्या है ?
मैं छुप नहीं रहा था।
तब आपको कैसे पता चला ?यहाँ पर कोई तहखाना है ,क्या आप यहां पहले भी आ चुके हैं।
नहीं बच्चा !हम तो जानते ही नहीं थे ,ये तो मात्र संयोग था।
कोई बात नहीं ,ये भी मात्र एक संयोग है , हम किसी क़ातिल की तलाश में यहाँ आये और आप मिल गए जबरन ही उसे पकड़कर पुलिस वाले अपने साथ ले जा रहे थे ।
देखिये !यह सब सही नहीं है ,वो लगभग घिसटते हुए बोले।
क्या सही है और क्या गलत है ?ये तो अब थाने जाकर ही पता चलेगा। इंस्पेक्टर सुधांशु को यह बात पता भी नहीं थी जिस व्यक्ति की तलाश में वो , इधर-उधर घूम रहे हैं ,वह व्यक्ति हमें वहीं पर मिल जाएगा। वो तो मात्र संयोग ही था ,आज अचानक ही रचित की जानकारी के लिए उन्होंने छापा मारा था लेकिन यहां तो मामला ही कुछ और था। एक अनजान शख्स, जो उस तहखाने में छुपा हुआ था। इंस्पेक्टर सुधांशु को अब तक इस केस में इतनी जानकारी तो हो गई थी इस उम्र का व्यक्ति , इस केस में अपना क्या रोल अदा कर सकता है ? पता नहीं, उन्हें अचानक से न जाने क्या सूझा और वो बोले -''डॉ चंद्रकांत त्रिपाठी'' आप कहां थे ?हम लोग बहुत दिनों से आपको ढूंढ़ रहे थे।
अचानक ही व्यक्ति, अपना नाम सुनकर सचेत हो गया, और मन ही मन प्रसन्न भी हुआ कि उसे कोई जानता है तब वह बोला -इंस्पेक्टर साहब !क्या आप मुझे जानते हैं ?
हां हां बड़े अच्छे तरीके से, सुधांशु बोला -आप ''डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी'' हैं, जो एक मनोवैज्ञानिक हैं ।
बहुत सही, कहते हुए उसने पुलिस वालों की तरफ देखा और सीधा तनकर खड़ा हो गया क्योंकि उसके नाम को एक पहचान मिल गई थी।
आइये , बैठिए ! कहते हुए सुधांशु ने अपने सामने रखी कुर्सी पर उनसे बैठने के लिए आग्रह किया और बोले -इतने दिनों से आप कहां थे ? आपके बच्चों तक को मालूम नहीं है कि उनके पिता कहां है ?
अब तक डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी को लगा कि कोई तो है ,जो उसे जानता है और यह उसके सम्मान में बातें चल रही है। तब वह बोले -आंखों के मध्य अपनी तर्जनी उंगली को लगाते हुए, गहन चिंतन का अभिनय करते हुए बोले -आप तो जानते ही हैं मैं एक 'मनोवैज्ञानिक 'हूँ। मैं लोगों के मन की बातें पढ़ लेता हूं समझ लेता हूं, उन पर अध्ययन करता हूं किंतु धीरे-धीरे मेरा मन इस चीज से ऊब गया और मैं आध्यात्म की तरफ बढ़ने लगा।
सुधांशु उसकी बातें ध्यान से सुन रहा था ,शेखर और विकास भी समझ नहीं पा रहे थे कि इंस्पेक्टर क्या करना चाहते हैं ?जिसको बुलाते हैं उसको बड़े आदर के साथ सामने की कुर्सी प्रस्तुत कर देते हैं। इंस्पेक्टर चाहते थे- कि ऐसा डॉक्टर को लगना चाहिए था कि उनकी बात ध्यान से सुनी जा रही है और उसे ऐसा लग भी रहा था तब वह बोला -मन के भावों को समझना, बहुत गहन अध्ययन का विषय है। इस संसार में भांति -भांति के प्राणी होते हैं, सबके मन में अलग विचारधाराएं चलती रहती हैं , सब की सोच अलग होती है सबके पास मन है, हृदय है, ज्ञान है लेकिन सब न जाने किस चीज से, आकर्षित होकर उसके पीछे भागते हैं। पहले मुझे लगता था-' अर्थ' के पीछे भागते हैं , किंतु मैंने अपने अध्ययन में पाया , लोग अपने मन की इच्छाओं के पीछे भागते हैं मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए उनका मन उनसे जो करवाता है वह करते हैं इसीलिए मैंने सोचा -इस मन को नियंत्रित करने का ही कोई ऐसा माध्यम होना चाहिए जिससे हम उसको अपने वश में कर सकें , हम उसके वश में नहीं बल्कि वह हमारे वश में हो।
वह सब बातें तो ठीक हैं , यह सब तो आप घर बैठकर भी कर सकते थे, सुधांशु ने उनकी बातों पर ध्यान देते हुए, और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए आदर के साथ पूछा।
आपकी बात अपनी जगह सही है, किंतु घर पर वह लोग आते हैं, जो मरीज हैं, जिन्हें मेरी जरूरत है। किंतु मुझे ऐसे लोगों से भी मिलना था जो मुझसे अंजान थे, मुझे उनकी जरूरत थी। ताकि मैं अपने अध्ययन का विषय उन्हें बना सकूं।
यह तो अच्छी बात है, किंतु यह समझ नहीं आ रहा है, यह चोला पहनने का क्या कारण हो सकता है ?
यह चोला पहनने का कारण तो सिर्फ लोगों का विश्वास जीतना ही है , क्योंकि इसी चोले को देखकर, लोग सम्मान करते हैं और उस पर विश्वास करते हैं।
उनकी बातें सुनकर सुधांशु को एक बार भी नहीं लगा कि ये मानसिक रूप से, बीमार हैं।
अब आप हमें यह बताइए ! आप उस तहखाने में क्या कर रहे थे ? किसी अन्य स्थान पर भी तो जा सकते थे। आपने इस स्थान को ही क्यों चुना ?
यह प्रश्न पूछने पर वो एकदम से खामोश हो गए, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह इस तरह अचानक चुप क्यों हो गए ?