Mitrta ka mahatva or kamiyan

 मित्रता के महत्व को समझने से पहले हमें यह जानना होगा ,''मित्रता ''क्या है ? उसको हम कुछ इस तरह परिभाषित कर सकते हैं -''एक ऐसा साथी जिसके साथ रहकर ,जिससे बातें करके हमें प्रसन्नता का अनुभव हो ,जिस पर हम आँख मूंदकर विश्वास कर सकें ,जिसके साथ हम अपने सुख -दुःख साझा कर सकें।'' ''जीवन में ''बाल्यावस्था'' से लेकर प्रौढ़ावस्था तक हमें बहुत से लोग मिलते हैं किन्तु सभी मित्र नहीं हो सकते।

बाल्यावस्था के मित्रों के संग रह कर उनके साथ खूब मौज -मस्ती होती है ,उनके साथ खेलना ,कल्पनाओं का विस्तार होता है ,दोस्तों के साथ खेल ही खेल में बहुत सारी बातें सीख़ जाते हैं। तरह -तरह के खेल खेलना ,रूठना -मनाना ,हारना -जीतना ,पेड़ों पर चढ़कर आम तोडना ,माली से बचकर भागना ,क्रिकेट के खेल में ,पड़ोसी गांव की टीम को हराने का उत्साह,'सर चढ़कर  बोलता है।'  सब कुछ अच्छी यादें बनकर हमारे जीवन के'' मैमोरी कार्ड ''में  इकट्ठा होता रहता है ,जो जीवन की एक अच्छी यादगार बन जाता है ,जिसको कभी भी याद करके मन तरोताज़ा हो जाता है। कुछ मित्र ऐसे भी बन जाते हैं जो कई बार , परिस्थितिवश  मित्रता का आवरण ओढ़ लेते हैं किन्तु समय आने पर उस मित्रता का असली चेहरा नजर आने लगता है। 


तभी तो आज भी लोग मित्रता का उदाहरण देते हैं -मित्रता हो तो ,''कान्हा और सुदामा ''जैसी ,जो राजा होने पर भी अपने गरीब ब्राह्मण दोस्त के लिए ,अपने सिंहासन को त्याग उन्हें अपने गले से लगा लिया और उनका आदर सत्कार किया। सही बात है -मित्रता !गरीब -अमीर ,ऊंच -नीच अथवा जाति नहीं देखती। बाल्यावस्था में बालक जब विद्यालय जाते हैं ,तो अपने मन -मुताबिक़ मित्र चुन लेते हैं ,जो उसको समझता हो ,जो उसकी भावनाओं की क़द्र करता है ,जिसके साथ रहकर, उससे बातें करके, उसे अच्छा लगता है उसी से दोस्ती हो जाती है। ऐसी दोस्ती का कोई पैसा भी नहीं लगता ,''दिन -दिन बढ़त सवायो। ''

दोस्ती का जीवन में बहुत महत्व है ,जो बातें हम अपने परिवार में भी किसी से अपनी बात कह और कर नहीं सकते ,तब हम अपने विचार अपने उस'' सच्चे मित्र'' को बताते हैं ,जो हमें सही सलाह देता है। हमारी गलतियों पर हमें रोकता है। उससे सभी बातें करके अपने मन में घुमड़ रहे विचारों को एक सही  दिशा चाहते हैं।'' जो हमारी परेशानियों को समझता है और हमारी बातें ध्यानपूर्वक सुनकर उचित परामर्श भी देता है। 

कहने को तो कई दोस्त बन जाते हैं किन्तु''' एक ही सच्चा और सही मित्र मिले जाये तो जीवन संवर सकता है। कई दोस्त होने से ,एक सच्चा और अच्छा मित्र होना अच्छा होता है।'' कई बार बाल्यावस्था के मित्र ही युवावस्था में भी साथ रहते हैं ,तो कई बार नए मित्र बन जाते हैं किन्तु ये निर्णय हमारा अपना होता है कि हमें किसे अपना साथी चुनना है ?एक भी गलत निर्णय हमें हमारे अच्छे मित्र से वंचित कर सकता है। जीवन में रिश्ते तो कई मिलते हैं किन्तु उनको चुनने का हमारा निर्णय नहीं होता ,वे तो स्वतः ही बन जाते हैं किन्तु ये दोस्ती का रिश्ता ही ऐसा रिश्ता है जिसमें  ये निर्णय हमारा अपना ही होता है कि किसे दोस्त बनाना है और किसे नहीं ?

एक भी गलत दोस्त चुन लिया तो कई बार हम ख़तरे में भी पड़ सकते हैं इसीलिए दोस्ती भी सोच -समझकर करनी चाहिए।'' दोस्ती का नाम लेना ही नहीं ,देना भी होता है।'' जैसे आप किसी का विश्वास पाना चाहते हैं ,उसी तरह वो भी आपसे ऐसी ही उम्मीद रखता है किन्तु ऐसी दोस्ती में कोई शर्त नहीं होती ,बस एक -दूसरे की भावनाओं और प्रेम को समझना आना चाहिए।

 दोस्ती का रिश्ता सिर्फ लड़के ,लड़के में ही नहीं होता ,आज के समय को देखा जाये तो दोस्ती का रिश्ता लड़के -लड़कियों में भी क़ायम हो सकता है।यह बात अलग है कि वे उस दोस्ती को कोई और नाम देना चाहते हैं क्योंकि वह रिश्ता भी '' प्रेम और विश्वास'' पर ही टिका होता है।'' यदि एक सच्चा दोस्त ,सच्चा जीवन साथी बन जाये तो जीवन की पटरी समतल धरातल हो या फिर जीवन के कंटक भरे रास्ते सहजता से पार हो सकते हैं'' किन्तु कुछ लोग दोस्ती और प्रेम अलग -अलग मानकर चलते हैं। यह उनकी अपनी सोच है। 

दोस्ती की कोई शर्त नहीं होती ,यह आवश्यक भी नहीं कि यदि किसी से दोस्ती है तो प्रतिदिन उससे मिला जाये या उससे बातें ही हो। जीवन में अन्य कार्य भी होते हैं ,अनेक समस्याएं भी आती हैं, जिनसे इंसान को रूबरू होना पड़ता है। परेशानी में ,अपना दोस्त ही याद आता है ,कई बार तो ऐसा हुआ है ,युवावस्था के पश्चात दोस्त विवाह करके अपने घर -संसार में व्यस्त हो जाते हैं। महीनों तो क्या सालों मिलने का अवसर ही नहीं मिलता। आजकल तो फोन आ गए हैं किन्तु दोस्ती तो वर्षों पहले भी होती थी ,जब फोन ही नहीं थे। 

इसी बात पर दोस्ती  पर एक सच्चा क़िस्सा स्मरण हो आया ,कॉलिज के दोस्त सभी अपने घर-संसार में व्यस्त हो गए। उनमें एक कुछ पैसे वाला था किन्तु उसने कभी भी दोस्ती के मध्य पैसे को नहीं आने दिया। देर -सवेर चुपचाप अपने दोस्तों की सहायता कर दिया करता था। ये समय ऐसा था ,जब सब अपने जीवन की पटरी को अपने परिवार के साथ सुचारु रूप से चलाने में व्यस्त थे। सभी दोस्त अच्छी नौकरियों पर लग चुके थे ,न जाने क़िस्मत ने साथ नहीं दिया उनका वो अमीर प्रिय दोस्त किसी नौकरी पर नहीं लग पाया ,घर -परिवार उसका भी था। महंगाई और खर्चों के कारण ,अब उसके परिवार वालों ने अपने उस बेरोजगार बेटे को उसके परिवार सहित घर से बाहर कर दिया ,उन्हें लग  रहा था ,इसे एहसास होगा -''कि जीवन में कमाना कितना आवश्यक है ?तभी ये पैसे के महत्व को समझेगा।'' 

ऐसे में वह बहुत परेशान रहा ,कुछ लोगों से उधार लेकर कोई रोजगार करना चाहा ,अब उसका अपने  दोस्तों  से कोई सम्पर्क नहीं था। उस समय चिट्ठियां होती थीं,वे भी  बिना पते के नहीं जा सकती थीं। उस व्यक्ति की हालत दयनीय थी किन्तु अपने किसी दोस्त से उसने सम्पर्क करने का प्रयास भी नहीं किया ,जो  सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहता वो अब कैसे अपने दोस्तों से अपनी हालत पर तरस खाने को कह सकता है ? 

एक बार किसी विवाह में उसका एक दोस्त मिला ,दोनों मित्र मिलकर प्रसन्न हुए  ,उसके मित्र ने उसका हालचाल पूछा ,तब बोला - सब ठीक है ,अपने मित्र से अपनी माली हालत छिपा गया। न जाने क्यों उसके मित्र को लगा ,कुछ तो है ,जो ये छुपा रहा है ,उसने अपने मित्र से कहा -अब इतने दिनों पश्चात मिले हैं ,क्या भाभीजी और बच्चों से नहीं मिलवाएगा। 

इस बात पर उसका मित्र चुप हो गया और सोचने लगा -मेरा किराये का छोटा सा घर ,अब ये तो अफ़सर बन गया है ,इसे कैसे साथ लेकर जाऊंगा ?

अपने मित्र को सोचते देखकर वो बोला -नहीं ले जाना चाहता है तो कोई बात नहीं ,तू परेशान मत हो !मुझे तो आज ही वापस जाना होगा ,कहते हुए ,उसने अपने मित्र को अपने घर का पता दिया और बोला -जब भी अपने मित्र से मिलने की इच्छा हो तो निसंकोच चले आना। 

पता लेकर भी, उसका दोस्त दुखी था कि पहली बार उसने घर आने की इच्छा ज़ाहिर की मैं उसे बुला न सका ,इसी अफ़सोस में डूबा वह घर पहुंचा। घर पहुंचकर ,उसकी पत्नी ने बताया -आपके कोई मित्र आये थे और ये पचास हज़ार रूपये देकर गए हैं और कह रहे थे ,इनसे अपना व्यापार  बढ़ाओ !और पैसे की आवश्यकता होगी तो मुझे बता देगा।  ये पैसे लौटाने की चिंता न करे ,जब होंगे ,तब आराम से दे देगा ,कोई जल्दी नहीं है और उससे कहना  -''उसके दोस्त अभी जिन्दा हैं ,उसके साथ हैं।''इतना सुनकर वह समझ गया कि वही आया होगा ,मेरे घर तो जैसे कृष्णा आये और चले गए ,सोचकर उसकी आँखों में आंसू आ गए। 

इस कहानी को बताने का उद्देश्य यही था ,कि बिछुड़ने पर भी ,दोस्ती कभी समाप्त नहीं बल्कि उम्र और समय के साथ ये रिश्ता और मजबूत होता चला जाता है। दोस्ती वही है जो बिना कहे दोस्त की बात को समझ जाये। सच्चा दोस्त,अपने दोस्त के हाव -भाव ,व्यवहार से सब समझ जाता है ,फिर चाहे प्रतिदिन मिलें या फिर महीने अथवा वर्ष में, दोस्ती का रिश्ता प्रगाढ़ और मजबूत रहता है। 

''अच्छी दोस्ती जीवन भर का बीमा है '',वहीं दूसरी तरफ यदि किसी से गलत व्यक्ति से दोस्ती हो जाती है तो उसका ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ जाता है। गलत दोस्त ग़ुमराह कर देता है ,गलत राहें सुझाता है ,गलत मार्ग की तरफ ले जाता है। दोस्ती का अनुचित लाभ भी उठाता है। कई बार लड़कियां ऐसे गलत दोस्तों का साथ पाने के कारण फंस जाती हैं क्योंकि लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक भावुक होती हैं। ऐसा नहीं कि गलत दोस्तों की संगत में लड़कियां ही फंसती हैं ,लड़के भी फंस जाते हैं इसीलिए दोस्ती के लिए बहुत ही सोच -समझकर दोस्त चुनना चाहिए। कई बार ''मतलबी दोस्त'' , जब उन्हें लगता है ,उसका दोस्त परेशान है तो उसकी सहायता करने की बजाय ,''पीठ दिखाकर भाग जाते हैं। ''ऐसे दोस्तों से बेहतर है बिना दोस्ती के ही जीवन  व्यतीत  किया जाये। 

व्यभिचारी दोस्त -ऐसे दोस्तों का कभी साथ नहीं करना चाहिए क्योकिं उनकी दृष्टि में व्यभिचार भरा होता है। ऐसे लोग अपने आस -पास तो क्या ,अपने दोस्त के परिवार की महिलाओं को भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे। ऐसे दोस्तों के कारण कभी -कभी उनका खुशहाल घर -संसार बर्बाद होने में समय नहीं लगता। उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि अपने दोस्त  की इज्ज़त को भी वह अपनी इज्ज़त समझे।

अंत में यही कहूंगी -''एक सच्चे  और अच्छे मित्र  का जीवन में बहुत महत्व है ,वहीं यदि एक भी गलत मित्र मिल जाये तो जीवन नर्क भी बन सकता है। '' 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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