नितिन थाने से आ तो गया किन्तु अब थोड़ा परेशान लग रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था। आखिर यह रचित कौन है ? कौन हो सकता है ?सोचते हुए वो आज अपने कॉलिज के पुस्तकालय की तरफ बढ़ रह था।नितिन को, पुस्तकालय की तरफ जाते हुए देखकर, एक लड़का उससे बोला -अरे, नितिन !कहां जा रहे हो ?तुम तो इस ओर कभी गए ही नहीं ,व्यंग्य से वो बोला।
नितिन को, उसका इस तरह टोकना अच्छा नहीं लगा ,किन्तु जबाब तो देना था ,जबाब नहीं दिया तो न जाने क्या सोचने लगे ,वैसे ही आजकल मेरे' ग्रह' कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं ,कुछ नहीं यार !!! लाइब्रेरी की तरफ जा रहा हूं।
क्यों क्या हुआ? अब तो परीक्षाएं करीब हैं, क्या तू अब तक नोटस ही बनाता रहेगा ,पहले नहीं बनाए ,अब तो परीक्षा की तैयारी का समय है।
नहीं, सब तैयार है, बस लाइब्रेरी में ही कुछ काम है, झूठ बोलकर नितिन आगे बढ़ गया।
नितिन' पुस्तकालय 'के अंदर प्रवेश करता है, कुछ छात्र अभी भी वहां बैठे हुए हैं किंतु जिसको देखने के लिए वह गया था, वह वहाँ पर नहीं था। तब नितिन ने एक लड़के से पूछा -हमारे ''लाइब्रेरियन'' कहां पर है ?कहीं दिख नहीं रहे।
अभी कुछ देर पहले तो यहीं थे, हो सकता है, अंदर लाइब्रेरी में गए हों।
क्या, तुम्हें उनसे कुछ काम था ?
हाँ , मेरे नाम पर जो किताबें थीं , वही जमा करनी हैं।
उस लड़के ने नितिन की तरफ देखा, किंतु उसे नितिन के हाथ में कोई भी किताब दिखलाई नहीं दी। तब उसने पूछा - तुम्हारी किताबें कहां है ? कहीं नजर नहीं आ रहीं।
पांच -छह किताबें हैं, क्या उन्हें मैं हाथ में लेकर घूमूँगा ?झुंझलाते हुए बोला। पहले पूछने आया था, क्या आज मेरी किताबें जमा हो जाएगीं, तभी तो लेकर आऊंगा, यदि उन्होंने मना कर दिया तो क्या मैं वापस लेकर जाऊंगा इतनी मोटी और भारी किताबें हैं।
ठीक है, उसने मुँह बिचकाकर कहा- वैसे अब तो सभी को किताबें जमा करने के आदेश मिल चुके हैं ,वैसे उनसे भी पूछ लो !अंदर जाकर ढूंढ लो ! शायद मिल जाए वह लापरवाही से कहकर वहाँ वापस चला गया।
उसके जाने पर नितिन ने एक गहरी स्वांस ली और बुदबुदाया -पता नहीं, लोगों को अपने काम से काम नहीं है, दूसरे का पूछने लग जाते हैं, तुम क्या कर रहे हो, क्यों कर रहे हो बडबडाते हुए नितिन अंदर गया किंतु उसे कहीं भी रचित दिखलाई नहीं दिया। वह पुस्तकालय की अलमारियों से बाहर निकल कर आता है किंतु उसे' रचित' कहीं भी दिखलाई नहीं दिया। मन ही मन सोच रहा था ,कहीं ऐसा न हो ,वह मुझसे बदला लेने यहां आ गया है। ऐसा कैसे हो सकता है ? अपने मन को समझाया, वह तो ढाई-तीन सालों से अपने घर भी नहीं गया।
तभी उसके मन में एक विचार आया ,क्यों न,अपने घर पर ही एक बार फोन करके उसके विषय में पूछ लेता हूं , कि रचित अपने घर पहुंचा है या नहीं। यदि वह अपने घर पहुंच गया तो हो सकता है ,ये वही हो। यह सोचकर वह लाइब्रेरी से बाहर आ जाता है।
नितिन के जाने के पश्चात, रचित न जाने कहां से, पुस्तकालय में आ जाता है, तभी एक लड़की बोली -सर! आप कहां थे ? आपको एक लड़का ढूंढ रहा था।
जानता हूं, हड़बड़ाहट में रचित भूल गया,कि वह क्या कह रहा है ?
क्या, आप जानते थे ? क्या आप जानबूझकर उस लड़के से नहीं मिले, उस लड़की ने आश्चर्य से रचित से पूछा।
हां, वह अपनी किताबें जमा करने के लिए आया होगा , किंतु मैं, गोदाम में चला गया था कोई बात नहीं बाद में आ जाएगा ,अपनी बात को संभालते हुए रचित बोला।
बहुत दिनों के पश्चात'' गोविंद विला'' में फोन की घंटी बजती है। फोन नितिन की मम्मी ने ही उठाया था फोन उठाते ही,बोलीं -हैलो !
मम्मी !मैं नितिन !
जब उन्हें पता चला कि नितिन का फोन है तो उनकी शिकायतों का पिटारा खुल गया और बोलीं -बहुत दिनों पश्चात तुझे अपने माता-पिता की याद आई। क्या तुझे पढ़ाई में इतना भी समय नहीं मिलता, कि अपने घर वालों को फोन करके एक बार पूछ ले, कि वह कैसे हैं ? जब हम फोन करते हैं ,तो तू कहीं न कहीं व्यस्त रहता है ,तू, कितना बदल गया है ? कम से कम हमारी नहीं तो अपनी ख़ैर - खबर तो दे ही दिया कर पद्मिनी जी उससे नाराज होते हुए बोलीं।
मम्मी आप भी न.... जाने क्या बातें लेकर बैठ जाती हैं? यह तो पूछा नहीं, कि मैंने किस लिए फोन किया है ?
हां, बता किस लिए फोन किया है ? अपने मतलब के लिए ही तो फोन किया होगा। पैसे भिजवाने हैं, बता ! कितने पैसे भेजें ?
आप ताने मारना बंद करेंगी या नहीं , किस काम के लिए मैंने फोन किया है ? पहले वह काम तो सुन लीजिए।
हां, बता ! किस लिए फोन किया है ?
मैं यह पूछना चाह रहा था , क्या 'रचित 'अपने घर अभी लौटा है या नहीं।
अपनी सोच के बिल्कुल विपरीत, नितिन को अपने दोस्त के विषय में पूछते सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ और पूछा -क्यों , आज तुझे उसकी चिंता क्यों होने लगी ?
आप फिर से कैसी बातें कर रही हैं ? अपना दोस्त है , अचानक ही, उसकी याद आई उसके घर वालों का क्या हाल हो रहा होगा ? सोचा, एक बार फोन करके पूछ लूँ ,शायद वह अपने घर वापस लौट आया हो ।
अपनी सम्पूर्ण शिकायतें भूलकर द्रवित, होते हुए वो बोलीं - नहीं, बेचारा ! न जाने कहां चला गया है ? उसके माता-पिता उसकी याद में परेशान हैं,वो जिंदा भी है या....... इससे पहले कि वह और कुछ भी कहतीं नितिन ने पहले ही फोन काट दिया।
नितिन के इस तरह फोन काटने पर उन्हें उस पर क्रोध आया, अपने मतलब के लिए ही फोन करता है , एक बार भी यह नहीं पूछा -मम्मी, आप कैसी हैं? चलो, मेरी तो छोड़ो !अपने पापा के लिए भी नहीं पूछा। बच्चे थोड़ा क्या पढ़- लिख जाते हैं ?अपने माता-पिता को भी भूल जाते हैं बड़बड़ाते हुए पद्मिनी जी अपने कमरे से बाहर आईं।
अब नितिन आश्वस्त हो गया कि यह' रचित' मेरा दोस्त 'रचित' नहीं हो सकता।
नितिन यह नहीं जानता था, कि अब उसकी एक-एक हरकत पर किसी की नजर है, वह किसी की नजर में, आ चुका है, कोई उसका पीछा कर रहा है।
अगले दिन, उस ''मड हाउस '' से निकलते हुए , कुछ पुलिस वालों ने उस तहखाने पर छापा मारा। जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। उस तहखाने की छानबीन में वहां से, उन पुलिस वालों को एक आदमी मिला, जो पहले वहां नहीं मिला था। पुलिस को देखकर, वह आदमी हड़बड़ा गया ,अधेड़ उम्र का वह व्यक्ति पढ़ा -लिखा लग रहा था और हुलिए से कोई बाबा !
तब वह उनसे बोला -आप लोग कौन हैं और मुझे क्यों पकड़ रहे हैं ?