Patti padhana

सुलेखा शीघ्र ही, अपने घर पहुंच जाना चाहती थी, वह चाहती थी, कि नवीन के घर आने से पहले ही, वह  अपने घर पहुंच जाए किंतु आते समय ,उसको कोई ऑटो नहीं मिला,और रास्ते में बहुत भीड़ भी थी इस कारण से उसे देर हो गई। मन में अनेक चिंताएं घर कर गई थीं।  नवीन आएंगे तो क्या सोचेंगे? न जाने कहां गई है ? व्यर्थ में ही परेशान होंगे। वैसे तो मैं अपनी पड़ोसन से कह कर आई हूं, मैं अपनी सहेली के घर जा रही हूं, यदि मुझे आने में देर हो जाती है, तो तुम उन्हें, घर की चाबी दे देना ! परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, मैं शीघ्र ही घर वापस आ जाऊंगी। 

तुरंत ही विचार आया, पड़ोसन भी तो कम नहीं, न जाने, उन्हें क्या 'पट्टी पढ़ा' दे ? वैसे तो मेरे सामने बड़ी भली बनती है किन्तु उसे मैं' एक आँख भी नहीं सुहाती' ,उसे तो अपने मौहल्ले में कोई भी ''एक आँख नहीं सुहाता''उसका काम दुनिया के जितने भी छड़े [कुंवारे लड़के ] हैं ,उनसे प्यार से काम करवाती रहे किन्तु जिनकी बीवियां हैं ,उनसे कुछ कह नहीं पाती, किन्तु उनके घरों में'' आग लगाने'' का कार्य अच्छा करती है।ख़ैर अब जो भी होगा ,देखा जायेगा।   

 आज सुलेखा की सहेली के बेटे का जन्मदिन था, उसने बहुत खुशामद की थी कि तुझे मेरे घर आना ही होगा। मैंने उसे मना भी किया था। मैं नहीं आ पाऊंगी, किंतु उसे बुरा लगा और बोली -ऐसी भी क्या बात है? जो तू नवीन को छोड़कर, थोड़ी देर के लिए भी नहीं आना चाहती,वो कोई 'दूध पीता बच्चा है। ''जो तुझे ही उसके लिए सब काम करने होते हैं।  उस समय तो नवीन अपने दफ्तर में गए होंगे और तू यहां आ सकती है, पवित्रा की बात मुझे उचित लगी इसलिए मैं उसके बेटे के जन्मदिन में, उपहार लेकर पहुंच गई।


 नवीन को इस तरह पार्टियों में जाना अच्छा नहीं लगता है। वे बाहर का खाना भी, कम हीं खाते  हैं । सहेली होने के नाते, पवित्रा ने नवीन को बुलाया भी नहीं था तब मैं अकेली ही , उसके यहां चली गई। उसके यहां, काफी बच्चे आए हुए थे वह बच्चों का ही कार्यक्रम था किंतु उसने मुझे अपनी सहायता के लिए बुला लिया था। मुझे नवीन से बताना भी याद नहीं रहा, कि मैं आज अपनी सहेली के बेटे के जन्मदिन पर जाऊंगी। जरूरत ही महसूस नहीं हुई, सोचा था -जब तक वो आएंगे, तब तक मैं, वापस घर आ जाऊंगी। 

ऑटो के कारण मुझे आने में देर हो गई ,मुझे नवीन के लिए बहुत बुरा लग रहा था ,मुझे उसे फोन पर बता देना चाहिए ,यही सोचकर,फोन करने लगी किन्तु मेरे फोन का बेलेंस ही ख़त्म हो गया था। मुझे बताकर आना चाहिए था फिर मन को समझाया पड़ोसन से मैं कह कर आई हूं, शीघ्र ही आ जाऊंगी।

 तभी वाले ने, ऑटो रोका और बोला -मैडम !आपका घर आ गया। उसने शीघ्र ऑटो वाले को पैसे दिए और अपने फ्लैट की तरफ जाने के लिए तेजी से कदम बढ़ा दिए। जब वह अपने फ्लैट पर पहुंची, तो नवीन आ चुका था।वो नवीन को देखकर मुस्कुराई किंतु नवीन ने उसे देखकर अनदेखा कर दिया। सुलेखा जानती थी कि नवीन को आते ही चाय की तलब लगती है इसीलिए वह चुपचाप रसोई घर में जाती है और चाय बनाने के लिए गैस पर रख देती है। चाय बनाकर नवीन के सामने रखती है और कहती है -मैंने बहुत जल्दी आने का प्रयास किया, किंतु मैं आ नहीं पाई, बाजार में बहुत भीड़ थी। सोच रही थी- जब तक आप आएंगे उससे पहले ही मैं पहुंच जाऊंगी किंतु ऐसा नहीं हो पाया जबरन ही मुस्कुरा कर अपनी बात रख रही थी किंतु नवीन सुबह का अखबार पढ़ने में व्यस्त थे। वो एकदम शांत थे।

 सुलेखा समझ नहीं पा रही थी वह अखबार पढ़ रहे हैं या नाराज हैं। तब वह बोली -आपने मुझसे पूछा नहीं, मैं कहां गई थी ?

मुझे पूछने की आवश्यकता है, जब तुमने ही बताने की आवश्यकता महसूस नहीं की , तुम्हारी इच्छा है तुम कहीं भी आ जा सकती हो, रुखे स्वर में नवीन बोला।

यह आप कैसी बातें कर रहे हैं ? मैं आपको बताना चाहती थी किंतु बता नहीं पाई और अचानक ही मुझे जाना पड़ गया, क्या आप मुझसे नाराज हैं ?

 मैं भला क्यों नाराज होऊंगा, मैं तुम्हारा लगता ही क्या हूं ? मैं कमाने की मशीन ही तो हूं। तुम्हारी अपनी जिंदगी है, तुम कहीं भी आ जा सकती हो , तुम पर कोई बंधन भी नहीं , आजकल तो महिलाओं के बहुत कानून बन गए हैं, यदि तुम्हें कुछ कह दिया तो तुम तो, जेल में चक्की पिसवा दोगी। 

सुलेखा को नवीन से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी, उसने आज तक तो उससे ऐसा कुछ भी नहीं कहा था फिर आज ऐसे, 'अंगारे क्यों उगल रहा है ?' तब वह नवीन के पास आकर बोली -क्या कुछ हुआ है ?

क्या मुझे कुछ होने का इंतजार करना चाहिए ? आजकल महिलाएं अपने को न जाने क्या समझे बैठी हैं ? न जाने कहां- कहां घूमती हैं ? पति तो बेचारा पागल है, दिन भर एक विश्वास पर, पैसा कमाने निकल जाता है। 

नवीन के ऐसे शब्द सुनकर, सुलेखा को रोना आ गया और सोचने लगी- मैंने तो ऐसा कुछ कहा भी नहीं, मैं तो बताने ही वाली थी, फिर ये इस तरह कटु शब्द क्यों बोल रहे हैं ? तभी उसे खिड़की में से उसकी पड़ोसन झांकती हुई दिखलाई दी , तभी उसे ध्यान आया, मैंने विश्वास भी किया तो किस पर , यह तो ऐसी ही है, किसी के घर में ''आग लगाने से''चुकती नहीं है। न जाने  इसने नवीन को क्या पट्टी पढ़ाई है ? जो वह मुझसे इस तरह से, व्यवहार कर रहे हैं और ऐसे बोल रहे हैं।

 उसे अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था, इससे तो वह चाबी गार्ड को ही देकर चली जाती तो ही बेहतर रहता किंतु इस समय नवीन के मन में उसने क्या भरा था ?जिसके कारण वो उखड़ा हुआ लग रहा था  इसीलिए सुलेखा ने बात करना उचित नहीं समझा और सोचा जैसे ही, इनका मन शांत होगा, तो मैं इन्हें सब बात ठीक से बतला दूंगी और ये भी कहूंगी -कोई कितनी भी पट्टी पढ़ाये ?किसी की बातों में नहीं आना चाहिए ,और सबसे पहले उससे पूछो !जो तुम्हारा अपना और विश्वसनीय है। एक गलत सलाह भी घर बर्बाद कर सकती है किंत इस समय जबरदस्ती बात को बढ़ाना झगड़े को निमंत्रण देना है जिसकी प्रतीक्षा वो पड़ोसन कर रही होगी। 

रात्रि में भोजन के पश्चात ,सुलेखा ने बड़े प्यार से ,नवीन के क्रोध का कारण जानना चाहा ,तब नवीन बोला -तुम्हारी पड़ोसन ने कुछ इस अंदाज में मुझसे कहा ,तुम्हें तो जैसे मेरी कोइ  क़द्र ही नहीं है ,और मैं एक ऐसा इंसान हूँ ,जिसको ये भी मालूम नहीं है ,उसकी पत्नी कहाँ आ जा रही है ?अब तुम ही बताओ !कोई सुबह का थका -हारा आदमी अपने घर आकर ऐसी बातें सुनेगा तो उसे क्रोध आएगा या नहीं। 

पड़ोसन कुछ भी कह रही हो, किन्तु तुम्हें मुझ पर तो विश्वास है या नहीं ,अपना मन शांत करके कम से कम मेरे आने की प्रतीक्षा तो करते ,वो जो कुछ भी कह रही थी ,कहने देते या उसे वहीं रोक देते ,तुम्हें बताने की कोई आवश्यकता नहीं है ,जब वो आ जाएगी अपने आप ही बता देगी। ऐसी औरतें ही तो 'घरों में आग लगाती हैं'' और हम उन्हें मौका देते हैं।अब आगे से मुझसे कोई भी शिकायत हो, आप मुझसे सीधे बात करिये !कल को कोई भी उल्टी -सीधी 'पट्टी पढ़ा देगा ''तो आप मान जायेंगे।मैं मानती हूँ ,जल्दबाज़ी में मैं आपको बता नहीं पाई किन्तु आप मेरी प्रतीक्षा तो कर लेते अथवा  मुझे फोन करके ही पूछ लेते ,मैं कहाँ हूँ ,मुझे भी एहसास होता आपको मेरी फिक्र है ,इतनी बात ही नहीं बढ़ती। 

अच्छा बाबा !मेरी गलती हुई जो मैं पड़ोसन के सीखाने  में आ गया ,अब और भाषण नहीं  कहते हुए उसने अपने प्यार से ,सुलेखा के होंठ बंद कर दिए।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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