आज नितिन को थाने में ही बुला लिया गया,पुलिस को शक़ तो है ,कि इन हत्याओं में नितिन का हाथ हो सकता है। उन स्थानों पर नितिन के मौजूद होने की तस्वीरें भी हैं किन्तु नितिन इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा है। इंस्पेक्टर सुधांशु को भी लगता है, हो सकता है हमें कोई गलतफहमी हो गई है, जबकि सबूत तो यही साबित कर रहे हैं कि नितिन ही उन हत्याओं का अपराधी है। तब सुधांशु सोचता है ,कहीं उसे कोई फँ साने का प्रयास तो नहीं कर रहा है, जब तक हम, उस बात की तह तक नहीं पहुंच पाएंगे तब तक नितिन को कुछ नहीं कह सकते। तब वह नितिन से पूछता है- मैंने तो सुना है कोई सन्यासी भी तुम्हें मिला था। कॉलेज के पीछे उस ''मिटटी के घर में'' !
हां सर !यह बात सही है। उस समय वह हवन कर रहा था,जब मैं उस स्थान पर पहुंचा।
उसने तुमसे कुछ कहा था।
नहीं सर !
तुम्हें उसका हुलिया याद है या नही, सुधांशु ने पूछा।
सर! उसने, उस समय हवन के माध्यम से इतना धुआँ कर रखा था, मैं कुछ देख ही नहीं पा रहा था। उसने बैठने का इशारा किया और मैं चुपचाप वहां बैठ गया।
यानी तुमने उसके चेहरे को ध्यान से नहीं देखा, कहीं वह तुमसे जो ट्रेन में मिला था वही व्यक्ति तो नहीं था। इस बात पर तुमने ध्यान दिया या नहीं।
मुझे तो नहीं लगता, वह होगा अपने होंठ सिकुड़ते हुए नितिन बोला।
हमने कॉलेज के तहखाने से, एक व्यक्ति को पकड़ा है , जो वहीं ''पुस्तकालय '' में काम करता है , वह तो इस विषय में कुछ भी नहीं जानता है, क्या तुमने उसे कभी देखा है ?
मैं 'लाइब्रेरी' कभी गया ही नहीं, कभी आवश्यकता पड़ती भी थी तो मैं अपने दोस्तों से पुस्तक मंगवा लेता था इसीलिए उसे पहचानने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ,मैंने उसे कभी देखा ही नहीं।
इसे दोस्तों और पार्टियों से समय मिले, तभी तो यह लाइब्रेरी जाए , मुस्कुराते हुए विकास बोला। नितिन उसका व्यंग समझ रहा था किंतु ऐसे में वह उनसे कुछ कह भी तो नहीं सकता था चुपचाप बैठा उनकी बातें सुनता रहा।
उस तहखाने का रास्ता तो सबसे पहले तुम्हें ही पता चला ,तुम तो उस तहखाने में कई बार जा चुके हो ,तुमने वहां क्या देखा ?
सर! ये सब आपसे किसने कहा ? मैं तो एक बार ही गया था। उस व्यक्ति का नाम क्या है ? कहीं उस पुस्तकालय में वही ''अनजान अपराधी '' तो नहीं।
नहीं, वह नहीं हो सकता क्योंकि तुमने जिस इंसान की पहचान बताई है उसके आधार पर वह तो हो ही नहीं सकता , वह तो लगभग तुम्हारी ही उम्र का होगा या एक दो साल ऊपर नीचे उसने अपना नाम' रचित 'बताया है।
'रचित' नाम को सुनते ही नितिन एकदम से चौंक गया। उसकी इस अवस्था को देखकर, तीनों भी सचेत हो गए और सोचने लगे -लगता है ,यह अवश्य ही, उस व्यक्ति को जानता है किंतु नितिन से कुछ नहीं कहा।
तब इंस्पेक्टर सुधांशु बोला -क्या तुम' रचित' को जानते हो ?
नहीं सर ! अभी तो आपको बताया, मैं कभी लाइब्रेरी ही नहीं गया फिर उसे कैसे जानूंगा ?
इस नाम के किसी व्यक्ति को जानते हो।
अबकि बार नितिन सचेत हो गया और बोला -नहीं, मैं किसी को भी नहीं जानता किंतु उसके चेहरे स्पष्ट नजर आ रहा था ,अवश्य ही यह झूठ बोल रहा है ,कुछ बात तो अवश्य है।
अच्छा ! अब तुम जा सकते हो पढ़ाई में मन लगाना ! अपने इस केस के लिए तुम्हारी मदद की आवश्यकता हो सकती है।
सर ! यह आप क्या कह रहे हैं ? इस तरह बार-बार बुलाने पर , कॉलेज के छात्रों को और अन्य लोगों को लगता है जैसे कातिल मैं ही हूं, मैंने ही वे हत्याएं की हैं , इस तरह से तो पढ़ाई में बहुत दिक्कत आती है बहुत परेशानी होता है।
तुम्हें आगे की परेशानी से बचाने के लिए ही तो हम ये सब कर रहे हैं वरना सारे प्रमाण तुम्हारे विरुद्ध हैं देखो! अभी तो बातें ही हो रहीं हैं ,यदि कुछ साक्ष्य ऐसे मिल गए तो तुम्हारा बचना मुमकिन नहीं। हमारा प्रयास तो यही है कि तुम अपने घर के इकलौते बेटे हो, तुम पर कोई आंच न आये इसीलिए ये छानबीन पूछताछ चल रही है विकास ने उसे समझाया।
देखो !इस केस को सुलझाने में तुम हमारी जितनी सहायता करोगे ,उतने शीघ्र ही, हम तुम्हें भी मुक्त कर देंगें, हम पर भी ऊपर से बहुत दबाब बना हुआ है। इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। प्रकाश पर भी, केस चल रहा है और फिर से छानबीन हो रही है वह अपना अपराध स्वीकार कर चुका था किंतु शेखर को कुछ भी बताने से इंस्पेक्टर सुधांशु ने उसे इशारे से मना कर दिया। अच्छा तुम जाओ !
नितिन उठकर जाने लगा ,तभी जैसे उसे कुछ याद आया,वह वापस लौटकर आया। सर ! एक बात बताऊँ !
हाँ कहो !
ऋचा की एक सहेली थी ,सुनंदा ! वह भी इस केस पर रौशनी डाल सकती है ,वो तो हमेशा से ही उसके साथ रहती थी।
हाँ -हाँ वो हम देख लेंगे ,अब तुम जाओ !विकास ने जबाब दिया नितिन के जाने पर विकास बोला -सर !समझ नहीं आ रहा ,आप इसे पकड़ते क्यों नहीं ? इस तरह प्यार से ये कुछ भी कुबूलने वाला नहीं है। हवालात में दो डंडे खाता, सब उगल देता।
ये बात तो मैं भी समझता हूँ ,किन्तु तुमने देखा नहीं, कितने आत्मविश्वास से बात कर रहा है ? मुझे तो लगता है या तो इसे फंसाया जा रहा है इसके विरुद्ध प्रमाण छोड़े जा रहे हैं ,या फिर बात कुछ और है। बस यही हमें पता लगाना है यदि ये इतनी लड़कियों का हत्यारा होता तो पुलिस को देखकर ,अभी तक भाग गया होता।
सर !कुछ लोग बड़े कलाकार होते हैं ,हमारे साथ ही रहेंगे और अपना भेद नहीं देंगे ,आपको ध्यान है ,दो साल पहले जो केस था ,अपराधी हमारी आँखों के सामने ही था।
कोई बात नहीं ,अभी हमें इस लड़के को यही दर्शाना है कि हमें उस पर कितना विश्वास है ? बाद में जब लगेगा ,सबकी जड़ यही है ,दबोच लेंगे साले को ,ये 'रचित' का नाम सुनकर चौंक गया था अवश्य ही ये उस पुस्तकालय के कर्मचारी को जानता है या उस नाम से कोई घटना जुडी है ,इसके पीछे हमारा एक आदमी चौबीसों घंटे इसके पीछे रहना चाहिए।