आज तो जैसे इंस्पेक्टर सुधांशु, ठानकर ही आया था कि वह नितिन से उसका अपराध स्वीकार करवा कर ही रहेगा किंतु नितिन तो, तुरंत ही मुकर गया- मुझे, समझ नहीं आ रहा था, इंस्पेक्टर साहब !आप यह क्या कह रहे हैं ? तब वह परेशान होते हुए कहता है -इंस्पेक्टर साहब !मैं मानता हूं, मैं उस समय कुछ दिनों के लिए, यहाँ से दूर ,इन सबसे दूर चला गया था किंतु इस सब का अर्थ यह तो नहीं है कि मैंने लड़कियों की हत्या की है ,क्या मैं आपको हत्यारा नजर आता हूँ ?उसने इंस्पेक्टर की नजरों से नजरें मिलाकर पूछा।
हत्या ही नहीं ,उनका बलात्कार भी हुआ है ,गुस्से चिल्लाते हुए सुधांशु उससे बोला - तुम' रुबीना' के साथ होटल में क्या कर रहे थे ?
मुझे नहीं मालूम !रुबीना कौन है ?मैं किसी रुबीना को नहीं जानता। तब इंस्पेक्टर के इशारे पर विकास ने मेज पर एक लड़की की तस्वीर वहां रख दी ,उसे देखकर नितिन बोला - मैंने इस लड़की को देखा तो है लेकिन उससे मेरी कैसे मुलाकात हुई ,क्यों हुई ? मुझे कुछ भी याद नहीं है।
ऐसे कैसे याद नहीं है ? जब तुमने उससे बातें की हैं , तो किस तरह याद नहीं है ? ख़ैर, यह सब छोड़ो ! अच्छा यह बताओ ! तुम क्या किसी पलाश को जानते हो ?नहीं ,पलाश ,को तो तुम अच्छे से जानते ही होंगे।
नहीं, मैं किसी भी पलाश को नहीं जानता हूँ , नितिन के इतना कहते ही, इंस्पेक्टर सुधांशु ने उसके सामने कुछ तस्वीरें रख दीं जिनमें एक लड़का उसके जैसा ही था। इसे जानते हो, यह कौन है ?
नितिन बड़े ध्यान से उन तस्वीरों को देख रहा था ,उसके चेहरे पर भाव आ जा रहे थे ,कुछ देर पश्चात बोला -नहीं ,मैं इसे नहीं जानता किन्तु मेरे जैसा ही दिखता है।
इंस्पेक्टर को उस पर बहुत गुस्सा आ गया और बोला -ये ,तुम ही हो,क्या तुम्हारे पास ऐसे कपड़े नहीं हैं।
हाँ ,मैं यही देखकर परेशान था ,सोच रहा था,कपड़े भी मेरे जैसे ही हैं किन्तु तब भी सर !यह मैं नहीं हूं। मैं यहां कैसे आ सकता हूं ? मैं कभी उधर गया ही नहीं, आपने इस तस्वीर के पीछे का दृश्य देखा ! मैं यहाँ क भी गया ही नहीं। मैं नहीं जानता, यह कौन सी जगह है ?परेशान होते हुए नितिन बोला। इंस्पेक्टर की टीम के सभी लोग, यह जानकर आश्चर्य चकित रह गए। जहां से उन्हें यह तस्वीरें मिली थीं इसके कॉलेज के आसपास की थी नितिन का कथन था कि वह कभी वहां गया ही नहीं,ऐसा कैसे हो सकता है ?
इंस्पेक्टर ने नितिन को, समझाते हुए कहा -इस लड़के का नाम पलाश ! है।
यह सुनकर, नितिन ने एक लंबी गहरी सांस ली, और बोला -वही तो.... ये मैं हो ही नहीं सकता। वह समझ गया, चलो ! मेरी शक्ल का दिखता है किंतु यह कोई और ही लड़का है।
इंस्पेक्टर परेशान था, यदि यह नितिन नहीं है तो इसका 'हमशक्ल' लड़का यह कौन हो सकता है ?
अब उसने एक तस्वीर और निकाली, जिसमें एक लड़का सुनहरे बालों में था यह तस्वीर उन्हें छानबीन के दौरान एक जौहरी के यहां से मिली ,अब तुम इस बात को क्या कहोगे कि तुम इसे भी नहीं जानते ?इंस्पेक्टर ने पूछा।
हां, सर! मैं इसे भी नहीं जानता, यह तो कोई बहरूपिया लग रहा है।
तभी शेखर ने एक लड़की की तस्वीर नितिन के सामने रखी ,अब तुम क्या कहोगे ?सुधांशु ने पूछा। न ही तुम, इस लड़की को जानते हो, जो उसके साथ है, नितिन उन तस्वीरों को देखकर परेशान तो हुआ कि वह तस्वीर उसके जैसी ही लग रही थीं किंतु वह फिर भी उसे पहचानने से इनकार कर रहा था। इंस्पेक्टर सुधांशु को बहुत गुस्सा आया वह मन ही मन सोच रहा था-कि या तो यह लड़का बहुत चालाक है या हमें यह बेवकूफ बना रहा है सभी तस्वीरें इसकी है किंतु यह इन्हें देखकर भी, अपनी मानने से इंकार कर रहा है उन दिनों इसका फोन नंबर और उसकी लोकेशन यही बताती थी , कि यह वहीं था, गुस्सा तो बहुत आया , मन तो कह रहा था कि इसे अभी लॉकअप में डाल दे।
तब वह नितिन से कहता है -अब तुम जा सकते हो, अपने दोनों दोस्तों को भेज देना। नितिन के चले जाने के पश्चात,सुधांशु कहता है - यह क्या हो रहा है ?कुछ समझ नहीं आ रहा या तो यह लड़का बहुत चालाक है, या फिर इसके हमशक्ल होने का कोई अन्य फायदा उठा रहा है।
सर! देखने से तो यह लड़का वही लगता है, किंतु जब इसने अपराध किया है तो यह सब बात को कैसे स्वीकार कर लेगा ?मेरा तो मानना है ,इसे लॉकअप में लेजाकर इससे ठीक से पूछताछ करते हैं। दो -चार डंडों में ही सम्पूर्ण सच्चाई उगल देगा। यह सब ढोंग कर रहा है, विकास ने सुझाव दिया।
शायद तुम सही कह रहे हो, किन्तु ये इस कॉलिज का छात्र है कोई भी निर्णय लेने से पहले हमें ठीक से जाँच -पड़ताल करनी होगी। इसके भविष्य का भी सवाल है ,इसके पीछे अपने आदमी लगा दो ! चाहे यह कितना भी चालाक क्यों न हो ?कुछ न कुछ गलती तो करेगा ही।
कुछ देर पश्चात अपने आप ही,' दयाराम' उनके लिए चाय लेकर आ जाता है,लीजिये साहब !चाय पी लीजिये।
चाय को देखकर, सुधांशु कहता है -हां, इसकी बहुत आवश्यकता थी, दयाराम सबके हाथों में एक -एक प्याली थमा देता है। चाय पीते हुए तब सुधांशु उससे पूछता है -दयाराम !तुम यहां कितने वर्षों से नौकरी कर रहे हो ?
साहब ! यहां मुझे नौकरी करते हुए लगभग 25 वर्ष हो गए हैं, उसकी बात सुनकर सुधांशु को फिर से एक उम्मीद जगी और बोला -फिर तो तुम जानते ही होंगे पुस्तकालय के पीछे एक सुरंग बनी हुई है, जो बाहर कॉलेज के पीछे खेतों की तरफ जाती है।
हां साहब ! वह सुरंग तो बहुत पुरानी है, जो इस कॉलेज के मालिक हैं ,व खेत भी उन्हीं के हैं उन दिनों जब यह कॉलेज बन रहा था तब सामान लाने ले जाने में दूसरे रास्ते से बहुत परेशानी हो रही थी तब उन्होंने यह रास्ता बनवाया था। कॉलेज बन जाने के पश्चात, इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ी इसीलिए वहां का दरवाजा बंद कर दिया गया। पूरी तरह इसीलिए बंद नहीं करवाया था ताकि जब भी इसकी आवश्यकता पड़े तो खोल दिया जाये।
किंतु वहां तो कुछ लोग आ जा रहे हैं ,सुधांशु ने उसे बताया।
यह क्या कह रहे हैं ?साहब !वहां से भला कौन जाएगा ? यह बात तो हमको भी मालूम नहीं है।
कॉलेज में एक सुरंग है, यह बात किस-किसको मालूम होगी ? जब यह कॉलेज बन रहा था, तो जो भी लोग यहां पर थे, उस समय पर , वे तो लगभग सभी जानते हैं। कुछ की बदली हो गई ,कुछ चले गए ,अब यहाँ तो कोई एक- दो ही जानता होगा।
सुधांशु के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी और वह दयाराम से बोला -प्रिंसिपल साहब ,से कहकर मुझे उन लोगों की सूची चाहिए जो लोग उस समय पर यहां नौकरी कर रहे थे।
जी साहब !वह सूची ढूंढ कर मैं आपको लाकर दूंगा।
