Mysterious nights [part 60]

कल रात्रि को ,शिखा के साथ जो कुछ भी हुआ उसके कारण उसने, दमयंती को बहुत खरी-खोटी सुनाई , वह चाहती थी, कि जिस तरह वह आहत हुई है , इसी तरह वह अपने शब्दों से ,दमयंती को भी पीड़ा पहुंचाना चाहती थी, इससे ज्यादा वह कुछ कर भी नहीं सकती थी। तब दमयंती, शिखा के कमरे से बाहर आकर पुनीत को बुलाती है और उससे पूछती है -हमने उस लड़की को समय दिया था , तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। 

यह करना जरूरी था, पुनीत ने जवाब कहा, जहां तक मैंने उसको देखा है, उसके मन में अब भाई का कोई ख्याल नहीं था, वह तो किसी और के ही, सपनों में खोई हुई थी। 

तुम, ऐसा कैसे कह सकते हो ? दमयंती ने उससे पूछा। 



मम्मी! अब मैं इतना छोटा भी नहीं रहा हूं , इतना तो समझ ही सकता हूं , जब मैं उसके कमरे में गया था, तब वह किसी के खूबसूरत ख्यालों में,इतना खोई हुई थी, उसे मेरे आने तक पता नहीं चला। रही बात, उसके साथ यह सब करने की, मुझे रोकने वाला तो वहां पर भी कोई नहीं था किंतु फिर भी मैंने, उसे वह सम्मान दिया। आप विश्वास नहीं करेंगी। वह हम में से किसी को भी नहीं चुनती, यह हमारा भ्रम ही था। उसे शीघ्र तोड़ना आवश्यक था। पुनीत ने यह बातें इतनी गंभीरता से कहीं, दमयंती सोचने पर विवश हो गई।

 वह सोचने लगी, मैं इस घर- परिवार को बनाये रखने के लिए, कुछ अच्छा ही सोच रही थी किंतु लगता है, मेरे जीवन में, कोई सीधा काम लिखा ही नहीं है' मुझे टेढ़ी उंगली से ही घी निकालना होगा।' अब तुम जा सकते हो , दमयंती ने उससे कहा -यदि वह हमें धोखा दे रही है, तो इसका परिणाम उसको भुगतना  होगा। 

पुनीत के चले जाने पर, कुछ देर इसी तरह बेचैनी से करवट बदलते हुए बीती, तब दमयंती ने मन ही मन एक निर्णय किया और शिखा के कमरे में पहुंच गई , शिखा अभी भी इसी तरह बैठी हुई थी, वह सोच रही थी-आज बंदिनी आ जाए, तो इन सब लोगों की असलियत में उसके सामने रख दूंगी। कम से कम गांव वालों को तो पता चलेगा, कि मेरे साथ क्या हुआ है ? उसने वहां से निकलने का प्रयत्न भी किया था किंतु जगह-जगह पर पहरा लगा था घर से बाहर निकलने का कोई मार्ग सुझाई नहीं दे रहा था इसलिए वह चुपचाप वापस आ गई। 

जब दमयंती उसके कमरे में आई, तो वह चुपचाप उसे बैठी देखती रही। चलो ,उठो !नहा लो ! और भोजन कर लो ! दमयंती ने उसे आदेश दिया किंतु शिखा ने उसकी बात पर,जैसे ध्यान ही नहीं दिया। तब दमयंती  ने पूछा -आख़िर तुम, क्या चाहती हो ? हम तुम्हारे साथ सख़्ती से पेश आए ! अभी तक हम तुम्हें बच्ची  समझ रहे थे किंतु लगता है , तुम अभी हमें ठीक से नहीं समझी हो। इस तरह रहने से कोई लाभ नहीं होगा, न ही, रोने से कोई लाभ होगा। क्या तुम्हारे ह्रदय में कोई और था ? सीधे और स्पष्ट शब्दों में दमयंती ने उससे पूछा। 

शिखा उसका चेहरा देखने लगी और मन ही मन सोच रही थी- इन्हें कैसे पता चला ? प्रत्यक्ष बोली -यह आप कैसे कह सकती हैं ?

हम जानते हैं, तुम' तेजस' को पसंद करने लगी थीं, किंतु इतना प्रगाढ़ प्रेम भी नहीं हुआ था, कि तुम उसके बिना जी नहीं सकती थीं या जीवन में अब तुम किसी के विषय में सोचोगी ही नहीं , इसलिए हमने तुम्हें अपने आपको संभालने का अवसर दिया ताकि तुम अपने मन को समझ सको ! इस घर की बहू बनकर आई थी और इस घर की बहू बनकर ही रहो !

नहीं, मुझे इस घर की बहू बनकर नहीं रहना है और न ही, आपके किसी बेटे से विवाह करना है। 

तभी हम पूछ रहे थे, क्या तुम्हारे मन में कोई और है ? तभी शिखा के मन में नरेंद्र का ख्याल आ गया, लेकिन यह ख्याल उसका अपना था, उसे क्या मालूम ?नरेंद्र कहां है और क्या कर रहा है ? उसका विवाह हुआ है या नहीं , यह तो उसकी अपनी सोच थी। तब वह दमयंती से बोली -नहीं, मेरे मन में कोई नहीं था। 

कोई बात नहीं, जिस बेटे से गलती हुई है, उस गलती को हम सुधार सकते हैं , हम उससे तुम्हारे विवाह की तैयारी करवाते हैं। 

नहीं, मुझे विवाह नहीं करना है, मुझे मेरे घर भेज दीजिए !

अब तुम अपने घर तभी जा सकती हो ,जब इस घर को अपना लोगी और ये घर तुम्हें अपना लेगा। तुम, इतने दिनों से जिसकी तलाश कर रहीं थीं ,आज तुमको हम उस घर की एकता और इस घर के कुछ रहस्य जो तुम जानना चाहती थीं ,हम तुम्हें बतलायेंगे। अब तुम शीघ्र ही अपने आपको सम्भालो ! हमारी नजरों में ये तुम्हारा अपमान नहीं है ,ये उनका अधिकार है जो तुम देना नहीं चाहतीं थीं। आज अगर 'तेजस' जिन्दा होता तो क्या तुम उसके साथ नहीं सोतीं ?

ये कैसी बेहूदा बात है ?तब वो मेरा पति होता ,शिखा गुर्राते हुए बोली ,उसका बस चलता तो वह उस पाखंडी औरत के बाल नोंच लेती किन्तु क्या कर सकती है ? उम्र से बड़ी होने के साथ -साथ, इस घर की मालकिन है ,हो सकता है ,इसके नाराज होने पर यह मुझे और प्रताड़ित करे या करवाए इसीलिए शिखा इस दुःख में भी अपने को नियन्त्रित किये हुए थी। 

दमयंती बोली -तुम ,ये समझो !तुम बिन विवाह के विधवा भी हो गयीं और अब बिन विवाह तुम्हारी ''सुहागरात ''भी मन गयी। न जाने, उसके मन में क्या विचार चल रहे थे ,अचानक बोली -''जिसकी किस्मत में जो लिखा होता है ,वो तय है ,तुम कितना भी उस किस्मत से लड़ लो !किन्तु होता वही है ,जो तुम लिखवा कर लाये हो '',कहते हुए दमयंती थोड़ा उदास हो गयी और बोली -तुम्हारे घरवालों ने ,तुम्हारे विवाह को लेकर कितने सपने सजाये होंगे ?तुमने भी अपने जीवन साथी को लेकर न जाने क्या -क्या सोचा होगा ?किन्तु आखिर में क्या हुआ ?इस जीवन में होने वाली घटनाओं से समझौता करना ही पड़ता है। तकदीर के आगे झुकना ही पड़ता है। 

पता नहीं,ये क्या पहेलियाँ बुझा रही हैं ?तब बोली -नहीं ,मैं ऐसा नहीं होने दूंगी ,किस्मत के सहारे मैं नहीं बैठ सकती ,गलती आपके बच्चों ने की है ,इसमें किस्मत कहाँ से आ गयी ? उनकी गलतियों को किस्मत का नाम मत दो ! 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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