Shaitani mann [part 111]

इंस्पेक्टर साहब ! देख लीजिये , लड़के का भविष्य खराब हो जायेगा,इंस्पेक्टर के सामने वहां बैठे व्यक्ति ने इंस्पेक्टर को समझाते हुए कहा।  

इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ? मुझे समझाने से बेहतर तो यही था ,आप अपने बेटे को समझाते ,पहले तो यही होता ,वो ये सब न सोचकर, अपनी शिक्षा पर ध्यान देता। मान लीजिये, ये उम्र ही ऐसी है ,उसके मन में ऐसे भाव आ भी गए तो किसी पर कोई जबरदस्ती तो नहीं है। 

नादान है ,बच्चा है ,बचपने में ही गलतियां होती हैं,समझदार होता तो ऐसी गलती कदापि न करता।  


ये कार्य इसने नादानी में नहीं बल्कि बहुत सोच -समझकर किया है। मानसिक रूप से यह उससे बदला लेने के लिए तैयार था। अब कोई लाभ नहीं ,इसने अपना बयान दे दिया है ,आप इससे ही पूछ सकते हैं ,इसने स्वयं ही स्वीकार किया है , ये ऋचा के इंकार करने पर,कुछ दिन बहुत परेशान रहा और एक दिन जब ये लोग बाहर घूमने के लिए जा रहे थे ,तब इनकी 'बस' एक जगह रुकी थी। तब इसने सोचा ,एक बार इससे पूछ लेता हूँ ,हो सकता है ,इसने अपना निर्णय बदल दिया हो। 

इसने अपना बयान कब दिया ? उनके साथ आये वकील ने इंस्पेक्टर से पूछा। 

बस अभी थोड़ी देर पहले ,आप लोग आये थे ,तभी इसने अपना बयान दिया था। 

बयान ,डरा धमकाकर भी लिया जा सकता है, हम इसकी जमानत के कागज़ात लाये हैं। इसकी जमानत हो गयी है। सुधांशु ने वे कागज़ात देखे और बोला -हम अपना कार्य कर रहे हैं ,हमारे आधार पर इसने अपनी कॉलिज की दोस्त ऋचा के साथ बलात्कार किया है और उसका क़त्ल भी किया है। 

लाइए ! सबूत दीजिये !आप ये सब कैसे कह सकते हैं ? इसने उसके साथ बलात्कार किया और क़त्ल भी किया है,आपके पास कोई सबूत है।  

तभी तो मैं कह रहा हूँ ,इसने ये सब नादानी में नहीं बल्कि बहुत सोच समझकर किया है ,हमारे लिए यही तो दिक्कत आ रही है ,इसने कोई ऐसा विशेष सबूत नहीं छोड़ा। 

जब आपके पास कोई सबूत ही नहीं है ,तब आप मेरे बेटे पर कैसे इस तरह इल्ज़ाम लगा सकते हैं ? आप जानते हैं ,हमारा कितना नाम है ,आपके इस तरह के व्यवहार से इसका भविष्य खतरे में पड़ सकता है ,प्रकाश के पिता नाराज होते हुए बोले। 

देखिये !हम मानते हैं ,अभी कोई ठोस सबूत हमारे हाथ नहीं लगा है किन्तु हमारी अब तक की तहक़ीकात से यही पता चलता है ,ये कार्य आपके इस सुपूत का ही है ,अब तो इसने यह सब स्वीकार भी कर लिया है। 

इसने क्या स्वीकार किया है ? अपने बेटे को घूरते हुए ,उसके पापा ने पूछा। 

देखिये !आपने हमारे क्लाइंट को डरा -धमकाकर उसके मुँह से कुछ भी उगलवा लिया ,ये कोई सबूत नहीं है ,अब इसकी ज़मानत हो चुकी है ,हम इसे ले जा रहे हैं, कहते हुए वे लोग कुर्सी से उठकर बाहर निकल गए।

उनके जाने के पश्चात ,इंस्पेक्टर सुधांशु ने शेखर से पूछा -क्या तुम सच कह रहे हो ?इसने बयान दिया था। 

जी सर !जब आप इन लोगों से मिलने बाहर आये थे ,तब ये पहले से ही बहुत डरा हुआ था ,तब इससे मैंने कहा -बड़े अफ़सर आ गए हैं ,वे बहुत ही ख़तरनाक हैं ,अपराधी को बहुत मारते हैं यदि तुम उनकी मार से बचना चाहते हो ,तो तुम अपना बयान दे दो !

तब इसने क्या बताया ?

सर ! कातिल तो यही है ,इसने ऋचा को चिढ़ाने के लिए सुनंदा ,कविता ,स्वेता जो भी लड़कियां उस समूह में गयीं थीं। उनकी परवाह कर रहा था ,उनका ध्यान रख रहा था। तब एक जगह बस से उतरकर इसने ऋचा से भी पूछा -तुम मेरे विषय में क्या सोचती हो ?मैंने तुम्हें सोचने का समय भी दिया। 

तब ऋचा ने जबाब दिया -तुम्हें मैं पहले भी मना कर चुकी हूँ ,तुम मुझे दिखाने के लिए ये जो हरकतें कर रहे हो ,इससे मुझ पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा इसीलिए  ये अच्छे बनने का ढोंग मेरे सामने न ही करो तो ठीक ही रहेगा। 

उस समय प्रकाश को बहुत गुस्सा आया ,उसे जो एक उम्मीद थी वह भी टूट गयी थी। तब इसने मन ही मन निर्णय लिया जब ये मेरी न हो सकी तो इसे जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं ,जब ये लोग उस बगीचे में पहुंचे। तभी से वो योजना बना रहा था ,उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। एक जगह जब रात्रि में वो लोग रुके ,और उसने वो मगरमच्छों वाली झील देखी ,तब उसकी योजना बन चुकी थी और इसने अपनी योजना के तहत ऋचा से कहा -' मेरी गलती है ,जो मैंने तुम्हारे विषय में बिना जाने ,या तुम्हारी सोच के बिना जाने, अपनी भावनाएं व्यक्त कर दीं। कोई बात नहीं ,तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है और निर्णय लेने का अधिकार है किन्तु हम दोस्त बनकर तो रह सकते हैं या नहीं। 

कुछ देर तक ऋचा ने सोचा और बोली -हाँ -हाँ क्यों नहीं ?किन्तु मैं भी तुमसे माफी मांगना चाहती हूँ कि मेरे कारण तुम्हारा दिल दुखा ,ऐसा नहीं कि तुम अच्छे नहीं हो या मुझे पसंद नहीं हो ,ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हारे पिता बहुत पैसे वाले हैं किन्तु मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की हूँ। मैं पढ़ -लिखकर ,नौकरी करके अपने पापा का सहारा बनना चाहती हूँ। अभी मैं प्यार और शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती। 

कोई बात नहीं, हम अच्छे दोस्त बनकर तो रह सकते हैं, प्रकाश ने उसे सांत्वना दिया लेकिन उसके मन में क्या चल रहा है ? यह तो बस वही जानता था। शाम के समय जब सब अपने 'टैंट ' की तैयारी कर रहे थे। तब प्रकाश धीरे से ऋचा के करीब आया और बोला -क्या तुम जानती हो ? उस तालाब में बहुत  बड़े -बड़े मगरमच्छ हैं। 

हाँ..... यह बात तो मैं जानती हूं , गाइड ने हमें यही सब पहले ही बतला दिया था। 

उसके करीब ही एक बहुत सुंदर, झाड़ियां और चट्टान है ,वह तुमने नहीं देखी होगीं बहुत ही खूबसूरत है, सुना है , रात्रि  में जब उन्हें देखते हैं , तो वहां का नजारा कुछ और ही होता है। झील में चांद की, परछाई आती है और चांद की चांदनी में , वहां का नजारा अद्भुत होता है।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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