Shaitani mann [part 110]

इंस्पेक्टर सुधांशु ,आज नितिन को पूछताछ के लिए बुलवा ही लेते हैं। पूछताछ के दौरान, वे उससे पूछते हैं  -तुम कॉलेज से, दो महीने की छुट्टी लेकर कहां गए थे  ? नितिन बहाना बनाना चाहता है , पहले तो वह झूठ बोलता है-' कि मैं अपने घर गया था 'किंतु जब इंस्पेक्टर साहब ने उसे बताया- कि हमने पहले ही पता लगवा लिया है कि तुम अपने घर नहीं गए थे। तब वह थोड़ा सा परेशान होने का अभिनय करते हुए ,कहता है -'मानसिक रूप से मैं थोड़ा परेशान था इसीलिए बाहर चला गया था।' 

वही तो हम पूछना चाहते हैं, कि तुम बाहर कहां गए थे ?

शायद देहरादून ! सोचने का अभिनय करते हुए कहता है -नहीं, शायद 'शिमला' गया था अभी ठीक से याद भी नहीं आ रहा। 



तुम्हारी इतनी उम्र भी नहीं हुई है, जो तुम्हें याद न रहे,' शिमला' क्या तुम किसी के साथ गए थे ?

मैं, क्यों किसी के साथ जाने लगा, जिसके साथ मुझे जाना चाहिए या मैं जाना चाहता था, उसने तो मेरा दिल ही तोड़ दिया था, मैं अकेला ही गया था।

एक इंजीनियरिंग का छात्र, दो महीने अकेले वहां रहकर तुम क्या कर रहे थे?

 बस ऐसे ही, अपनी परेशानियों को भूलाने का प्रयास कर रहा था।अब यहाँ रहकर किसी के आगे रो तो नहीं सकता था, एकाएक उसका स्वर तेज हो गया। 

तुम्हारी बात अपनी जगह सही है, यह तो होता है, ''सुख और खुशियां हम दुनिया में बांट लेते हैं किंतु गम में अकेले ही रह जाते हैं। ''ठीक ही तो है, गम किससे बांटने जाएंगे ? कोई साथ नहीं देता। वैसे एक बात पूछनी थी - सौम्या ने बहुत गलत किया। वैसे कम से कम तुम्हें एक बार सौम्या से बात तो करनी चाहिए थी उसने ऐसा क्यों किया ? क्या उसने तुम्हारे व्यवहार में कोई बदलाव देखा ?

यह तो वही बता सकती है, किंतु हां इतना मैं अवश्य जानता हूं, मैं लड़कियों के पीछे नहीं घूमता था, पहली बार उससे ही मिला था और उससे ही धोखा खाया।

 इंस्पेक्टर साहब ,मुँह बनाते हुए बोले -और उससे धोखा खाकर, तुमने सभी लड़कियों को ही बुरा समझ लिया। हो सकता है, उसकी कोई अपनी मजबूरियां हों। बातचीत से तो लगता है, तुम एक अच्छे लड़के हो, हम फिर दोबारा मिलेंगे ! अब तुम जा सकते हो। तभी नितिन उठकर चल दिया, वह अपने को अच्छा और हल्का महसूस कर रहा था , उसे लग रहा था, चलो !जान छूटी , तभी इंस्पेक्टर ने उससे पूछा -रुबीना ! को जानते हो ?

रुबीना, कक्क्क्क कौन रुबीना ? मैं किसी रुबीना को नहीं जानता। आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?

 एक 'रुबीना' नाम की लड़की का भी कत्ल हुआ है, अच्छा एक बात है, मुझे तुमसे सलाह लेनी होगी। 

कैसी सलाह ?

 क्या इंसान प्यार में इस हद तक जा सकता है ? कि वह दूसरे का कत्ल कर दे !

नितिन सोचने लगा, अभी तो मुझे बाहर भेज रहे थे और फिर से मुझसे बातचीत करनी शुरू कर दी।ये चाहते  क्या हैं  ?

अच्छा एक बात बताओ ! कविता, तुम्हारी पार्टी से निकाल कर कहां गई होगी ?

सर !यह बात मैं , कैसे बता सकता हूं ,

 मुझे तो लगता है, वह इस होटल में रुकी थी। 

इंस्पेक्टर के इतना कहते ही, नितिन का चेहरा सफेद पड़ गया और बोला -हो सकता है , यह बात मैं नहीं जानता। 

तुम्हारी दोस्त थी , तुम्हारी पार्टी में आई थी , इस होटल में रुकी थी वह किसके साथ थी ? नितिन के चेहरे पर भाव आ जा रहे थे , और इंस्पेक्टर उन्हें समझने का प्रयास कर रहा था और सोच रहा था यह कहां तक अपने को बचाने का प्रयास करता है ? तब इंस्पेक्टर कहता है - अच्छा, अब तुम जा सकते हो। नितिन ने तुरंत ही, आज्ञा का पालन किया और बाहर निकल गया। 

सर ! आपने उससे स्पष्ट रूप से क्यों नहीं कहा ? कि वह ही उस होटल में था, उस होटल के सीसीटीवी कैमरे में हमने उसे देखा है। 

अभी अपने को बहुत होशियार मान रहा है , अभी यह किसी साधु- सन्यासी का बहाना ले रहा था। इसके होटल में रहने का सबूत हमारे पास है , लेकिन यह होटल से कब निकला ? उसकी जानकारी अभी नहीं है थोड़ी हमें और तहकीकात करनी होगी। अभी तो इसको टटोला है, हो सकता है, यह और भी कुछ गलतियां करें। पूरे सबूत के साथ इसको उठाएंगे, इसे बचने का एक भी मौका नहीं मिलेगा , इतना तो मैं समझ गया हूं। अवश्य ही इसका, किसी न किसी हत्या में भी हाथ है। चलो, विकास ! एक बार उसे'' मड हाउस'' में भी चलते हैं , देखते हैं- कैसा साधु- सन्यासी वहां पर रहता है ? या इसका कोई नया, बहाना है।

सर! ऐसा न हो यह कहीं भाग जाए। 

हम किसलिए हैं ? इस पर नजर रखो !अपना एक आदमी इसके पीछे लगा दो !

इस एरिये को पूरी तरह छान मारो ! इंस्पेक्टर सुधांशु ने अपने सदस्यों को आदेश दिया। 

इसमें यहाँ देखने को है ही क्या ?ये एक मिटटी का कमरा है और कुछ सामान पड़ा है।

 कहीं कुछ तो ऐसा होगा जिसके कारण, हम क़ातिल के करीब पहुंच सकें या फिर कोई ऐसा सबूत मिलेगा कहते हुए उस मिटटी के बड़े से माट को देखने लगा। ये यहां क्यों रखा है ?एक आम मटके से बहुत बड़ा है। आमतौर पर आजकल ऐसे माट कहाँ मिलते हैं ,इस तरह के माट तो बहुत पुराने समय में होते थे।कहते हुए उसे हटाने का प्रयास करता है, वो माट, अपने स्थान से हटने की बजाय घूम गया ,उसके घूमते ही एक दरवाजा बन गया। सभी आश्चर्य से एक -दूसरे को देखते हैं और उस दरवाजे की तरफ बढ़ते हैं। सुधांशु के इशारे पर दयाराम और विकास उस दरवाजे के अंदर प्रवेश करते हैं। वहां सीढियाँ बनी हुई थीं ,इस तरह इन खेतों के मध्य में यह झोंपड़ी तो ठीक है किन्तु इस तरह गुप्त रास्ता बनाया हुआ है ,ये आश्चर्य की बात थी। वहां पर अंधेरा था इसीलिए उन्होंने अपने-अपने  फोन की लाइटें जलाकर रौशनी कर ली थी। सीढ़ियों से धीरे -धीरे सतर्कता के साथ आगे बढ़ रहे थे।   



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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